लोकशिक्षण के साथ जीवन को आनंदित व सात्विक ऊर्जा से भरने के लिए सनातन धर्म में विविध पर्वों की आधारशिला रखी गई थी। इनकी मूल विशिष्टता इनमें निहित लोकतत्वों की जीवन्तता व वैज्ञानिकता का अनूठा समन्वय है। होली के एक सप्ताह बाद मनाई जाने वाली अष्टमी भी लोकपर्व है। इस शीतला अष्टमी पर स्वच्छता और आरोग्य की देवी माता शीतला की पूजा की जाती है।
मौसम में बदलाव की इस अवधि में संक्रामक रोगों का प्रकोप अधिक होता है, इसलिए स्वस्छता का इस दौरान काफी ध्यान रखा जाता है। स्कंद पुराण में शीतला माता की महत्ता के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है
वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालड्कृतमस्तकाम।।
अर्थात गर्दभ पर विराजमान दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से स्पष्ट है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी (झाड़ू) तथा सूप होने का शिक्षण है कि लोगों को सफाई के प्रति विशेष रूप से जागरूक होना चाहिए क्योंकि स्वच्छता रहने से ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में चेचक, खसरा, दाह, ज्वर, पीतज्वर और नेत्रों के रोग आदि दूर रहते हैं। व्रत रखने से अर्थ स्वच्छता बरतने से है।
भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट है। शीतला माता का पूजन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें दही- बताशा तथा बासी हलवा-पूड़ी आदि का भोग लगाया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में अर्पित करते हैं और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में इसे वितरित करते हैं। उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्योहार बसौड़ा नाम से प्रचलित है। शास्त्रीय मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाना चाहिए। यह ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं। इस व्रत में रसोई की दीवार पर हाथ की पांच अंगुली घी से लगायी जाती है। फिर उस छापे पर रोली और चावल लगाकर देवी माता के गीत गाये जाते हैं। इसके साथ, शीतला स्तोत्र तथा कहानी सुनी जाती है। रात में मां की प्रतिमा के आगे जोत जलाकर मां की आरती की जाती है। बासी भोग प्रसाद देवी मां को अर्पित कर श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है। आयुर्वेद की मान्यता के अनुसार शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने के लिए शीतला माता का अनुष्ठान बेहद उपयोगी माना जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से शीतला अष्टमी का पर्व होली के बाद मौसम में आने बदलाव के लिए तैयार होने का संदेश देता है। इस पर्व से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है। सेहत की रक्षा के लिए सर्वमान्य नियम है कि जब भी मौसम में बदलाव हो तो व्यक्ति को अपने रहन-सहन व खानपान में ऋतु अनुसार परिवर्तन कर लेना चाहिए ताकि हम रोग शोक से बचे रहें।
शीतला माता के लोकप्रिय मंदिर
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