इस मानसून में उत्तराखंड के पांच सौ करोड़ का धंधा पानी में बह कर यूपी चले जाने वाला है, जिसमें दो सौ करोड़ रुपए सरकार के राजस्व के भी हैं। विश्वास नहीं है तो गौला नदी की तरफ आकर एक नजर एलिफेंट कॉरिडोर पर डाल लीजिए। वन मंत्री और विभाग के अधिकारी इस ओर जरा सा भी गंभीर रुख अपनाएं तो सरकार की कमाई हो जाएगी। नहीं तो नदी का पानी इसे यूपी पहुंचा देगा।
उत्तराखंड को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाली गौला नदी में पहाड़ों से आने वाला रेता, बजरी, पत्थर हल्दू चौड़ के पास एलिफेंट कॉरिडोर में एक पहाड़ के रूप में जमा हो गया है। कॉरिडोर से खनन की अनुमति नहीं है क्योंकि वन्यजीव खासकर हाथी यहां से आते जाते हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) इस कॉरिडोर की निगरानी करता है। पिछले 15 सालों में यहां से खनन नहीं हुआ और करीब तीस लाख घन मीटर रेत बजरी, बोल्डर यहां पहाड़ जैसा जमा हो गया है।
इस रेता बजरी के पहाड़ से गौला नदी का तेज वेग टकराने के साथ-साथ किनारे के खेतों की जमीन का भूकटाव शुरू कर दिया, जिसकी रोकथाम के लिए चैनल बना दिए गए। चैनल बन जाने से वन्य जीवों का रास्ता सुगम होने के बजाय और भी बाधित हो गया। नतीजा ये भी हुआ कि हाथी अब कॉरिडॉर से नहीं जाते, बल्कि नीचे से जाकर खेतों को नुकसान पहुंचाने लगे हैं। एलिफेंट कॉरिडोर में अब ऊंचे टीले बन गए हैं। मानसून की बारिश के बाद गौला में तेज बहाव आएगा जो इस टीले को अपने साथ बहाकर यूपी ले जाएगा। यानी उत्तराखंड का राजस्व भी यूपी पहुंच जाना है।
वाइल्डलाइफ के चीफ वार्डन के द्वारा केंद्र से अनुमति लेकर खनन की अनुमति दी जानी है, जिसकी फाइल पिछले पांच साल से आगे नहीं बढ़ पा रही है। बताया जा रहा है कि इसकी वजह वन विभाग के अधिकारियों में आपसी मनमुटाव है। पिछले दो सालों से वन विभाग के उच्च पदों पर आपसी खींचतान की वजह से सरकार को राजस्व का नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही साथ जो योजनाएं चल रही थीं उन पर भी ग्रहण लग गया है।
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