हर वर्ष होली के पांचवें दिन देहरादून में झंडा मेला आयोजित किया जाता है। देहरादून के झंडे मेला का 347 साल का गौरवपूर्ण इतिहास है। इस वर्ष ये मेला 12 मार्च यानि आज से शुरू हो रहा है। इस मेले में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंच चुके है।
सिखों के सातवें गुरु हरराय महाराज के बड़े पुत्र गुरु रामराय महाराज ने वर्ष 1675 में चैत्र मास कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन देहरादून में पदार्पण किया था, कहते है उनके घोड़े का पांव यहां मिट्टी में धंस गया था जिसके बाद उन्होंने यहीं अपना डेरा दून घाटी में डाल लिया और ये स्थान डेरा ए दून कहलाया । ठीक एक वर्ष बाद 1676 में इसी दिन उनके सम्मान में उत्सव मनाया जाने लगा और यहीं से झंडेजी मेले की शुरूआत हुई और यह मेला दूनघाटी का वार्षिक समारोह बन गया।
कहते है गुरु महाराज ने अपने पिता से अलग होकर अपना संप्रदाय चलाया था। जिसकी वजह से उन्हे सिख समाज से अलग मान्यता मिली हुई है। उनके लिखे ग्रंथ में सिख गुरुओं के विचार के साथ साथ अपने विचार भी संग्रहित है।
जब वे देहरादून आए तब ये दून घाटी का एक छोटा-सा गांव हुआ करता था। जिसे डेरा ए दून कहते थे बाद में इसका नाम देहरादून पड़ा। यहां मेले में देशभर से श्रद्धालु पहुंचते थे, और इतने लोगों के लिए भोजन का इंतजाम करना आसान नहीं था। तब श्री गुरु रामराय महाराज ने दरबार में सांझा चूल्हे की स्थापना की उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकी दरबार साहिब में कदम रखने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा न लौटे। ये सांझा चूल्हा आज भी जलता है और इसकी लौ आज तक नही बुझी।
गुरु राम राय संस्था के सैकड़ों स्कूल, डिग्री कॉलेज, हॉस्पिटल और अन्य सेवा कार्य भी चलते है।
पंजाब के संसार सिंह ने चढ़ाया दर्शनी गिलाफ
इस बार श्री झंडेजी पर दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का मौका पंजाब के परिवार को मिला। परिवार की सुख-समृद्धि के लिए संसार सिंह ने 30 साल पहले श्री झंडेजी पर गिलाफ चढ़ाने की मन्नत मांगी थी। संसार सिंह इस समय अपनी बेटी के पास अमेरिका में हैं। उन्हें जब पता चला कि इस बार गिलाफ चढ़ाने के लिए उनके परिवार का नंबर आया है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने अमेरिका से ही झंडे जी के आरोहण का प्रसारण देखा।
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