‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 दृष्टि और दिशा’’ शीर्षक के तहत भारतीय भाषाओं के महत्व को उजागर किया गया है। जननी और जन्मभूमि के ही समान हमारी मातृभाषा भी सर्वोपरी है। भाषा के ही आलोक में हमारी संस्कृति और सभ्यता फली-फूली है।
शिक्षा क्षे़त्र में काम करने वाली देश की सबसे महत्वपूर्ण संस्था शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के महासचिव अतुल भाई कोठारी द्वारा संपादित पुस्तक ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारतीयता का पुनरुत्थान’’ जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में निहित व्यापक संभावनाओं को वर्णित करती है। इस पुस्तक में शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य करने वाले अनेक शिक्षाविदों के विचारोत्तेजक लेखों का संकलन है। यह पुस्तक भारत सरकार द्वारा जारी की गयी नई शिक्षा नीति-2020 को समझने का एक सरलतम और सहज माध्यम है जिसमें शिक्षा नीति से जुड़े विविध विषयों और उनके महत्व पर विस्तार से चिंतन व चर्चा की गयी है। इस पुस्तक में कुल अठारह लेख हैं, जो शिक्षा नीति के समाधानों पर विस्तृत चर्चा करते हैं।
‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 दृष्टि और दिशा’’ शीर्षक के तहत भारतीय भाषाओं के महत्व को उजागर किया गया है। जननी और जन्मभूमि के ही समान हमारी मातृभाषा भी सर्वोपरि है। भाषा के ही आलोक में हमारी संस्कृति और सभ्यता फली-फूली है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 देश का भविष्य है। यह मैकाले की शिक्षा नीति की तरह चेतना शून्य नहीं है। इसमें मनुष्यता की बात निहित है। इसमें सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्ति व जीवन के उद्धार की बात की गयी है। इसमें बहुभाषिकता एवं त्रिभाषा सूत्र का वर्णन है। बहुभाषिकता भारतीय संस्कृति का मूल स्वभाव है। भाषा के माध्यम से कला और सांस्कृतिक संवर्धन का लक्ष्य निहित है। संस्कृति बोध मात्रभाषा में ही संभव है।
पुस्तक- राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारतीयता का पुनरुत्थान
संपादक- अतुुल कोठारी
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
पेज-182, मूल्य-400
यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों व शिक्षाविदों ही नहीं वरन आम जनमानस के लिए भी उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक साबित होगी। यह नीति उच्च शिक्षा के जरिये समग्र विकास और सवावलंबन की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यह ज्ञान के एकीकृत और व्यापक ढांचे की संस्तुति करती है जिसमें बौद्धिक विकास, सृजनात्मक चिंतन और नैतिक बोध शामिल है। यह नीति क्षेत्र, जाति, पंथ भाषा आदि के अवरोधों से दूर गुणवतापूर्ण शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करते हुए एकल विश्वविद्यालयों को बहुविषयक विश्वविद्यालयों में तब्दील करने की बात करती है।
इसमें ज्ञान की लचीली और अंतर-विषयक संरचना विकसित करने का उद्देश्य निहित है, जिसके जरिए उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर भी बढने की संभावना है। इसमें नवाचार आधारित शिक्षण और भारत केन्द्रित शोध भी शामिल है। उच्च शिक्षा के अंतराष्ट्रीयकरण को भी विशेष महत्व दिया गया है। यह नीति भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित है।
ऑनलाइन शिक्षा द्वारा उच्च शिक्षा में समता एवं समग्रताः राष्ट्रीय दृष्टिकोण एवं रणनीतियां शीर्षक में शिक्षा नीति प्रौद्योगिकी सक्षम शिक्षा के द्वारा उच्च शिक्षा के लोकतंत्रीकरण की बात है। सकल नामांकन अनुपात की दर इसके माध्यम से बढने की संभावना है। शिक्षा से गायब भारतीयता को पुनः स्थापित करने का प्रयास है। समाज के अंतिम जन को सशक्त बनाने की दिशा में एक प्रयास है।
भारत में कृषि शिक्षा का भविष्य शीर्षक हमारे नीति निर्माताओं के गहन चिंतन को दर्शाता है, जिन्होंने कृषि विश्वविद्यालयों को बहुविषयक एवं नॉलेज हब में परिवर्तित करने की बात की है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि ही यहां के जीवन का आधार है। कुल मिलाकर यह पुस्तक शिक्षा नीति को लेकर मील का पत्थर साबित करने की बात को चरितार्थ करती है। शिक्षण संस्थाओं में अध्ययन अध्यापन करने वालों के लिए यह बेहद उपयोगी पुस्तक है। साथ ही शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में काम करने वाले विद्वानों के लिए यह रोडमैप है।
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