आठ मार्च को पूरे विश्व ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। महिलाओं को लेकर तमाम बातें की गईं। कई वादे इरादे निर्धारित किए गए हैं। और न जाने क्या-क्या कहा गया होगा। परन्तु इसी बीच भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से दो ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जो बहुत ही अधिक चौंकाने वाले हैं। ये दोनों ही वीडियो महिलाओं की आजादी को लेकर ऐसा कथानक रचते हैं, ऐसा दृश्य रचते हैं, जो कहीं से भी सभ्य नहीं कहा जा सकता है।
एक वीडियो जिसे 4 मार्च को एक यूजर ने twitter पर अपलोड किया, उसमें एक बच्चे से एक व्यक्ति प्रश्न करता दिखाई दे रहा है कि “दस गुनाहगार औरतें कौन सी हैं?” तो उसमे वह बच्चा कहता हुआ दिखाई दे रहा है कि वह हैं, बेपर्दा औरत, तेज जबान औरत, दीन का मजाक उड़ाने वाली औरत, चुगल खोर औरत, अहसान जतलाने वाली औरत, खाविंद की ना फ़रमानी करने वाली औरत, बाल खोलकर चलने वाली औरत और बगैर जरूरत के घर से बाहर निकलने वाली औरत!
https://twitter.com/effucktivehumor/status/1631918806313365504
यह वीडियो इसलिए और भी अधिक चौंकाने वाला है क्योंकि इसमें बच्चे के दिमाग में भरा जा रहा है कि क्या अच्छी औरतें हैं? अच्छी का निर्धारण कौन करेगा? जो बच्चा अभी से यह कह रहा है कि बेपर्दा वाली औरतें गुनाहगार औरतें हैं, और बाल खोलकर चलने वाली औरतें गुनाहगार औरतें हैं, तो क्या वह कभी यह समझ पाएगा कि ईरान में आखिर लड़कियां क्यों अपनी जान दे रही हैं? वह क्यों विरोध कर रही हैं? उसके मन में बालपन से ही यह प्रक्षिप्त कर दिया है कि बेपर्दा औरतें दरअसल गुनाहगार होती हैं और अपने खाविंद की नाफ़रमानी करने वाली औरतें गुनाहगार होती हैं। खाविंद को लेकर अफगानिस्तान से भी एक बहुत ही हैरान करने वाला वीडियो सामने आया है। इसमें एक मौलाना अहमद फ़िरोज़ अहमदी यह कह रहा है कि यदि घर में आग भी लगी है और शौहर ने जिस्मानी इच्छा जाहिर की है, तो भी बीवी को इंकार नहीं करना चाहिए। अगर वह खाना पका रही है और शौहर हमबिस्तर होने की इच्छा जाहिर करता है तो उसे इंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वही उनका कार्य है।
https://twitter.com/MeghUpdates/status/1633036422176444416
खाविंद की हम बिस्तर होने की इच्छा को तब भी औरत मना नहीं कर सकती है जबकि वह ऊँट पर बैठी हो। इस विषय में भी एक मौलाना का वीडियो वायरल हुआ था। ऊँट पर बैठने का अर्थ था प्रसव के अंतिम दिन। यह उस अफगानिस्तान का वीडियो है, जहाँ पर हाल ही में महिलाओं पर तमाम तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं। यहाँ तक कि महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन मानते हुए महिलाओं के गर्भनिरोधक उपायों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया है। तालिबान के अनुसार गर्भनिरोधकों का महिलाओं द्वारा विरोध एक पश्चिमी षड्यंत्र है। अफगानिस्तान में तमाम प्रतिबन्ध महिलाओं पर लगाए जा चुके हैं, जिनकी अब गिनती ही शायद संभव नहीं होगी। कल जब पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया गया तो क्या किसी ने इन तमाम महिलाओं के विषय में चिंता की?
या फिर इस बात को लेकर चिंता की कि जो जहर बच्चों के दिल में भरा जा रहा है, वह क्या प्रभाव उत्पन्न कर सकता है? वह कितना प्रभावित कर सकता है? संभवतया नहीं!
इन तमाम महिलाओं को विमर्श से बाहर क्यों कर दिया है, जिन्हें सार्वजनिक पटल से अनुपस्थित पहले ही किया जा चुका है? बहरहाल महिला दिवस पर ऐसे दो वीडियो का सामने आना और उस पर मौन रह जाना, बहुत कुछ कहता है क्योंकि इन्हीं दिनों ईरान में बच्चियों को जहर देने के मामले भी सामने आ रहे हैं, जब वह तालीम पाने की राह में आगे बढना चाहती हैं। प्रश्न यही है कि इन पीड़ाओं पर बोलना कब आरम्भ किया जाएगा?
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