सीबीआई का आरोप है कि नई आबकारी नीति बनाने और लागू करने में नियमों की अनदेखी की गई। इस नीति से शराब कारोबारियों को बेहिसाब लाभ पहुंचाया गया। सीबीआई के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि नई आबकारी नीति लागू करने से पहले ही इसे शराब कारोबारियों तक पहुंचा दिया गया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दाहिना हाथ माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शराब घोटाले में 5 दिन के लिए सीबीआई रिमांड पर हैं। सीबीआई ने सिसोदिया को 19 फरवरी को पूछताछ के लिए बुलाया था। लेकिन उन्होंने एक सप्ताह का समय मांगा और 26 फरवरी को पेश हुए। इसके बाद सीबीआई ने उनसे 8 घंटे तक पूछताछ की। इसमें उन्होंने सहयोग नहीं किया, तो जांच एजेंसी को उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। सीबीआई जांच और अपनी गिरफ्तारी के विरुद्ध सिसोदिया ने सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई। लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगी।
सिसोदिया की ओर से कांग्रेस के नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शीर्ष अदालत में पक्ष रखा था। सिंघवी की दलील पर शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप से गलत परंपरा की नींव पड़ेगी। सिंघवी की दलील पर मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि घटना के दिल्ली में होने का मतलब यह नहीं है कि आप सर्वोच्च न्यायालय आ जाएं। अर्णब गोस्वामी और विनोद दुआ का मामला इससे बिल्कुल अलग था। प्राथमिकी रद्द कराने और जमानत के लिए याची को उच्च अदालत जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय में याचिका खारिज होने के बाद अब आम आदमी पार्टी उच्च न्यायालय का रुख करेगी। सिसोदिया यह दलील देकर गिरफ्तारी से बचने की कोशिश कर रहे थे कि उनके पास वित्त विभाग है (उस समय था) और अभी बजट भी पेश करना है।
केजरीवाल तक पहुंची आंच!
दरअसल, सिसोदिया की गिरफ्तारी पर आआपा की तिलमिलाहट का कारण यह है कि प्रवर्तन निदेशालय भी मनी लांड्रिंग के कोण से शराब घोटाले की जांच कर रहा है। जेल में बंद केजरीवाल के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन से भी इस घोटाले के संबंध में पूछताछ हो चुकी है। हाल ही में ईडी ने केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार को भी पूछताछ के लिए बुलाया था। ईडी का आरोप है कि विभव ने शराब घोटाले के आरोपियों को केजरीवाल से मिलवाया था। इसलिए आशंका जताई जा रही है कि देर-सवेर इसकी आंच अरविंद केजरीवाल तक भी पहुंच सकती है।
2 फरवरी को दिल्ली स्थित राउज एवेन्यू अदालत ने ईडी के आरोप-पत्र पर संज्ञान लिया। इसमें ईडी ने कहा है कि शराब घोटाले के एक आरोपी विजय नायर ने दूसरे आरोपी समीर महेंद्रू को बताया था कि नई आबकारी नीति केजरीवाल ने तैयार की थी। ईडी इस मामले में 9 लोगों को गिरफ्तार कर चुका है। इसलिए पार्टी को लगता है कि किसी भी समय केजरीवाल की बारी आ सकती हैे। इसलिए पार्टी ने आक्रामक रुख अपनाते हुए उपराज्यपाल को भी लपेटना शुरू कर दिया। आआपा का कहना है कि उपराज्यपाल की अनुमति से कमीशन बढ़ाया गया।
केजरीवाल के साथ पंजाब सरकार की भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि वहां भी दिल्ली की तर्ज पर आबकारी नीति लागू की गई है। नई नीति से वहां भी दिल्ली की तरह छोटे शराब कारोबारियों को बाहर कर दिया गया। और खास बड़े कारोबारी ही मैदान में रह गए हैं। विपक्षी दल इसमें घोटाले की आशंका जताते हुए सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। दिल्ली शराब घोटाले की आंच तेलंगाना तक पहुंच चुकी है। सीबीआई तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी और विधान परिषद सदस्य के. कविता से भी पूछताछ कर चुकी है। उनके पूर्व सीए बुच्ची बाबू को गिरफ्तार किया जा चुका है।
सीबीआई के आरोप
सीबीआई का आरोप है कि नई आबकारी नीति बनाने और लागू करने में नियमों की अनदेखी की गई। इस नीति से शराब कारोबारियों को बेहिसाब लाभ पहुंचाया गया। सीबीआई के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि नई आबकारी नीति लागू करने से पहले ही इसे शराब कारोबारियों तक पहुंचा दिया गया। इसके बाद शराब कारोबारियों की ओर से व्हाट्सएप पर सुझाव मिले, जिनके आधार पर नई नीति में बदलाव किए गए। सीबीआई का कहना है कि सिसोदिया नियमित रूप से शराब कारोबारियों के संपर्क में थे और जैसे ही जांच शुरू हुई, सिसोदिया सहित घोटाले में शामिल 36 आरोपियों ने अपने फोन बदल लिए और सबूत मिटा दिए। ईडी के अनुसार, 100 करोड़ घूस लेन-देन के सबूत न रहें, इसलिए ऐसा किया गया। शराब घोटाले में सिसोदिया को मुख्य आरोपी बनाते हुए सीबीआई ने 17 अगस्त, 2022 को प्राथमिकी दर्ज कराई। इसके बाद सीबीआई ने उनके घर सहित 31 ठिकानों पर छापेमारी की। उनके कार्यालय से कम्प्यूटर भी जब्त किया। आरोप है कि प्राथमिकी दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर सिसोदिया ने 3 फोन और एक सिम कार्ड बदल लिया। 20 अगस्त को सिसोदिया ने 3 फोन का इस्तेमाल किया। इस तरह, अगस्त से सितंबर 2022 के बीच उन्होंने 18 फोन बदले। वहीं, इस घोटाले के दूसरे आरोपियों ने 140 फोन बदले, जिनकी कीमत करीब 1.38 करोड़ रुपये बताई जाती है। सीबीआई यह जानना चाहती है कि इतने फोन क्यों बदले गए? जो फोन बदले गए, उनका डेटा कहां है?
आरोप है कि शराब पर लागत केवल 20 प्रतिशत थी और जो 80 प्रतिशत मुनाफा हुआ वह राजस्व खाते में न जाकर सीधे विक्रेता की जेब में गया। फिर वहां से आआपा के कोष में गया। एक आरोपी सनी मारवाह के पिता के एक स्टिंग आॅपरेशन ने इस घोटाले की कलई खोली। इसमें मारवाह के पिता ने बताया कि केजरीवाल की नई आबकारी नीति से आआपा को मोटी कमाई हुई और राजस्व को तगड़ा नुकसान हुआ है। मारवाह के अनुसार, पहले लाइसेंस जारी करने में दलाली ली गई। इसके बाद ठेकेदारों का कमीशन 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया और इसका 6 प्रतिशत कालेधन के तौर पर सिसोदिया के पास पहुंचाया गया। तो क्या पंजाब विधानसभा चुनाव में कमीशन का पैसा लगाया गया? विपक्ष का आरोप है कि आआपा नेताओं और आबकारी अधिकारियों ने शराब माफिया से घूस में मोटी रकम ली।
इन सवालों के जवाब चाहिए
सीबीआई यह जानना चाहती है कि जब नई आबकारी नीति में कोई गड़बड़ी थी ही नहीं तो उन्होंने इसे खत्म कर पुरानी आबकारी नीति को क्यों लागू किया? रवि धवन समिति ने जो सुझाव दिए थे, उन्हें क्यों नहीं माना गया? नई नीति में मनमाना तरीके से बदलाव क्यों किए गए? समिति द्वारा मना करने के बावजूद काली सूची में शामिल कंपनियों को लाइसेंस क्यों दिए गए? नई नीति में बदलाव कर शराब निर्माताओं को शराब बेचने की अनुमति दी गई और उन्हें एमआरपी के बजाए अपनी तय कीमतों पर शराब बेचने की खुली छूट क्यों दी गई? किस हिसाब से 12 प्रतिशत कमीशन तय किया गया? मनीष सिसोदिया ने मई 2021 में नई आबकारी नीति बनाई और इसे नवंबर 2021 में लागू भी कर दिया गया। नई नीति लागू करने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई? नई नीति बनाते समय क्या सिसोदिया की एक्साइज कमिशनर और दो अन्य एक्साइज अधिकारियों से कोई चर्चा हुई। क्या सिसोदिया ने दानिक्स के अधिकारी सी. अरविंद को फोन कर मुख्यमंत्री केजरीवाल के यहां आने के लिए कहा था? कारोबारी अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा और अर्जुन पांडे के साथ सिसोदिया के कैसे संबंध हैं? क्या कैबिनेट में निजी कंपनियों को ठेका देने पर कोई चर्चा हुई थी? ऐसे ढेरों सवाल हैं, जिनके जवाब सीबीआई को चाहिए।
ऐसे हुआ घोटाला
केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर, 2021 को नई आबकारी नीति लागू की। इसमें शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए शराब पीने की उम्र सीमा 25 वर्ष से घटा कर 21 वर्ष कर दी गई। साथ ही, ड्राई डे (अवकाश के दिन) की संख्या 23 से घटाकर 3 की गई और शराब की होम डिलिवरी सहित रात 3 बजे तक शराब बेचने की अनुमति दी गई। यही नहीं, मंदिर, स्कूल, मॉल के पास भी ठेके खोले गए। नई नीति के तहत दिल्ली को 32 जोन में बांटा गया और हर जोन में अधिकतम 27 ठेके खोले जाने थे। इस तरह, शराब के कुल 849 ठेके खोले गए। पुरानी आबकारी नीति में जहां 60 प्रतिशत शराब ठेके सरकारी और 40 प्रतिशत निजी थे, वहीं नई नीति में शराब बिक्री की कमान पूरी तरह निजी हाथों में सौंप दी गई। न्यूनतम 500 वर्ग फीट में दुकानें खोली गई जिन इलाकों में शराब की बिक्री अधिक थी, वहां भारी छूट के साथ एक के साथ दो बोतल मुफ्त जैसे लालच दिए गए। इसके अलावा, शराब माफिया को लाभ पहुंचाने के लिए एक्साइज ड्यूटी को घटाकर 1.8 रुपये कर दिया गया, जो पुरानी नीति में 223.89 रुपये थी।
वैट को 106 रुपये से घटाकर 1.9 रुपये कर दिया गया तो ठेकेदारों का कमीशन 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया। इस तरह, नई नीति में मनमाने बदलाव का परिणाम यह हुआ कि शराब की ब्रिकी बढ़ी। इससे शराब विक्रेताओं को बेहिसाब मुनाफा हुआ और 3,500 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ। इतने से भी सब्र नहीं हुआ तो दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 के दौरान कोरोना के नाम पर 144 करोड़ रुपये का लाइसेंस शुल्क कैबिनेट की मंजूरी के बिना ही माफ कर दिया गया। केजरीवाल सरकार ने दावा किया था कि नई नीति से 3,500 करोड़ रुपये का राजस्व लाभ होगा। बाद में आय में 27 प्रतिशत की वृद्धि के साथ लगभग 8,900 करोड़ रुपये की प्राप्ति का भी दावा किया। केजरीवाल ने यह दावा भी किया कि उन्होंने देश की सबसे अच्छी और सबसे पारदर्शी नीति बनाई। इसमें कोई घोटाला नहीं हुआ। लेकिन हुआ इसके उलट। नई नीति से राजस्व घटता गया और शराब विक्रेताओं का मुनाफा बढ़ता गया। बड़ी कंपनियों की मोनोपॉली कायम हुई। आरोप है कि सिसोदिया ने उपराज्यपाल की अनुमति के बिना कई फैसले लिए और जब उपराज्यपाल ने सीबीआई जांच के आदेश दिए तो केजरीवाल ने नई नीति खत्म कर पुरानी नीति को लागू कर दिया।
ऐसे खुली पोल
आरोप है कि शराब पर लागत केवल 20 प्रतिशत थी और जो 80 प्रतिशत मुनाफा हुआ वह राजस्व खाते में न जाकर सीधे विक्रेता की जेब में गया। फिर वहां से आआपा के कोष में गया। एक आरोपी सनी मारवाह के पिता के एक स्टिंग आॅपरेशन ने इस घोटाले की कलई खोली। इसमें मारवाह के पिता ने बताया कि केजरीवाल की नई आबकारी नीति से आआपा को मोटी कमाई हुई और राजस्व को तगड़ा नुकसान हुआ है। मारवाह के अनुसार, पहले लाइसेंस जारी करने में दलाली ली गई। इसके बाद ठेकेदारों का कमीशन 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया और इसका 6 प्रतिशत कालेधन के तौर पर सिसोदिया के पास पहुंचाया गया। तो क्या पंजाब विधानसभा चुनाव में कमीशन का पैसा लगाया गया? विपक्ष का आरोप है कि आआपा नेताओं और आबकारी अधिकारियों ने शराब माफिया से घूस में मोटी रकम ली।
केजरीवाल का दांव
सीबीआई शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट पर कार्रवाई कर रही है, जिसे उन्होंने उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंपा था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सिसोदिया ने शराब विक्रेताओं को लाभ पहुंचाया, जिससे राजस्व का नुकसान हुआ। इसके बाद उपराज्यपाल ने सीबीआई जांच की सिफारिश की। लेकिन पोल खुलने के डर से हमेशा की तरह केजरीवाल ने इसे भी राजनीतिक रंग देना शुरू किया। उन्होंने एक ट्वीट कर कहा, ‘शराब माफिया बीजेपी की साजिश नाकाम! बीजेपी दुकानदारों को डरा कर 1अगस्त से दिल्ली में वैध शराब दुकानें खत्म कर अवैध शराब का धंधा चलाना चाहती है। हम ये नहीं होने देंगे। हमने फिलहाल नई नीति बंद कर सरकारी दुकान खोलने के आदेश दिए हैं ताकि दिल्ली में कोई अवैध शराब न बेच पाए।’
केजरीवाल कहते हैं, ‘मनीष सिसोदिया एक ईमानदार, देशभक्त और साहसी व्यक्ति हैं। उन्हें फर्जी और झूठे केस में फंसा कर गिरफ्तार किया गया है।’ पर वे कितने ईमानदार हैं, यह तो सीबीआई और ईडी की जांच के बाद ही पता चलेगा। कहना न होगा कि आआपा का (दिल्ली) की जनता के दुख दर्द से कोई वास्ता नहीं रह गया है और पूरी पार्टी ‘ईमानदारी’ का फर्जी ढोल पीट रही है। जनता पिसती है तो पिसे!
सिसोदिया के इस्तीफे का मतलब
हालांकि केजरीवाल बहुत मंझे हुए खिलाड़ी हैं। सिसोदिया भले ही उनके अत्यन्त करीबी हैं, लेकिन उनसे किनारा करने में उन्होंने जरा भी देर नहीं की। इसलिए सिसोदिया ने ‘नैतिकता’ के आधार पर जब इस्तीफा दिया, तो केजरीवाल ने उसे तत्काल मंजूर कर लिया। उधर, मनी लांड्रिंग मामले में 9 माह से जेल में बंद सत्येंद्र जैन ने भी इस्तीफा दे दिया। सवाल यह है कि विपक्ष जब सत्येंद्र जैन का इस्तीफा मांग रहा था, तब केजरीवाल ने उनसे इस्तीफा क्यों नहीं लिया? जैन से जेल विभाग तो ले लिया, लेकिन मंत्री बनाए रखा। दूसरा सवाल, सिसोदिया ने जो इस्तीफा लिखा है, उसमें तारीख नहीं है। यानी इस्तीफे की पटकथा पहले से ही तैयार थी। केजरीवाल को पूरा विश्वास था कि सर्वोच्च न्यायालय से सिसोदिया को राहत मिल जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसलिए इस्तीफे का दांव चला गया।
बहरहाल, केजरीवाल सरकार में कुल 6 मंत्री थे, जिनके पास 33 विभाग थे। 18 विभाग तो अकेले सिसोदिया के पास थे। केजरीवाल ने अपने पास कोई विभाग नहीं रखा। दो मंत्रियों के जेल जाने के बाद अब मंत्रिमंडल में चार मंत्री बचे हैं। इसलिए पार्टी के कुछ नेता मंत्रिमंडल में शामिल होने की होड़ में हैं। लेकिन लगता नहीं कि केजरीवाल उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करेंगे। वे बखूबी जानते हैं कि यदि वे ऐसा करेंगे तो पार्टी में असंतोष उभर सकता है। कारण, ऐसे लोगों की सूची लंबी है, जो स्वयं को वरिष्ठ मानते हैं और शुरू से केजरीवाल के साथ जुड़े हुए हैं।
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