भारत देश में महिला विमर्श पर चर्चा करने से पूर्व एक बात का स्मरण करना बहुत आवश्यक हो जाता है, की हम जिस भारत वर्ष में रहते हैं, उसकी संस्कृति की जड़ें ऐसे इतिहास से सिंचित हैं जिसमे वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक में महान विदुषी महिलाएं एवं वीरांगनाएं समाज का मुख्या अंग रही हैं। वैदिक काल में जिन विदुषी महिलाओं की चर्चा होती है उनमें गार्गी, सूर्या, अपाला, लोपामुद्रा, रोमशा आदि के नाम प्रमुख हैं। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से 30 नाम महिलाओं के हैं। स्त्रियाँ वेद शिक्षित तथा युद्धकला में भी निपुण हुआ करती थीं। इसी प्रकार मध्यकाल में मीरांबाई, देवलरानी, रूपमती, चारुमती जैसी विदुषी एवं अहिल्याबाई होळकर, चांदबीबी, रानी चेन्नम्मा, रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं एवं कुशल शासकों के उल्लेख बहुतायत में मिल जाते हैं। क्रमशः यदि आधुनिक काल की भी बात आ जाये तो हमारा इतिहास विदुषी एवं वीरांगनाओं से भरा पड़ा है। महाराष्ट्र की आनंदी बाई जोशी ने १८८६ में विदेश जाकर डॉक्टरी की शिक्षा प्राप्त कर पहली महिला डॉक्टर बनी, जबकि उस समय भारत में अंरेजों ने अतिक्रमण कर रक्खा था और शिक्षा का नाश करने के पुरजोर प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आज के राजनितिक युग में भी स्वर्गीय सुषमा स्वराज जैसी अनेकों महान विदुषी स्त्रियों ने भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी अपनी धाक जमाई। भारत में विदेश सेवा संस्थान आज सुषमा स्वराज जी के नाम से सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विस के रूप में चल रहा है। तो यह बात हमें समझने की आवश्यकता है की कम से कम हम भारत वासियों को विदेशी कम्युनिस्ट आकाओं (माओ, मार्क्स, लेनिन आदि), के विचारों से चलने वाले मुट्ठी भर लोगों के वामपंथी संगठनों से महिला विमर्श की दिशा और दशा क्या हो यह सुनने की कदापि आवश्यकता नहीं है जिनका इतिहास ही महिलाओं पर अत्याचार के उदाहरणों से भरा है हो।
सुषमा स्वराज जी की चर्चा आयी तो यह भी बताते चलें की सुषमा स्वराज जी छात्रों एवं युवाओं के बीच कार्य करने वाले एवं छात्रों में राष्ट्र पुनर्निर्माण के ध्येय को लेकर चलने वाले राष्ट्रवादी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (अभाविप) की एक प्रखर कार्यकर्ता रही हैं। यह वहीं सगठन है जो छात्रों के बीच भारतीय सांस्कृतिक एकात्मता की भी बात करता है, और इस सांस्कृतिक एकात्मता के विचारों में भारतीय सांस्कृतिक महिला विमर्श एक महत्वपूर्ण अंग है। अन्य छात्र संगठनो एवं वामपंथी गुटों से अलग छात्रों के मध्य विश्वविद्यालय परिसरों में अभाविप की छवि केवल समस्याओं को लेकर लकीर पीटने की न होकर समाधान केंद्रित कार्य करने की है। उसी प्रकार महिला विमर्श को लेकर भी विद्यार्थी परिषद् ने महत्वपूर्ण समाधान केंद्रित कार्यों को पूर्णता की ओर पहुंचाया है।
मिशन साहसी
दिसंबर २०१२ में जब निर्भया काण्ड हुआ तब अभाविप ने निर्भया को न्याय दिलाने के लिए किये आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। जिसके फलस्वरूप २०२० में दोषियों को फांसी की सजा हुई साथ ही उससे पहले २०१३ में महिलाओं के विरुद्ध इसप्रकार के अपराध पर लगाम लगाने हेतु निर्भया एक्ट भी पास हुआ। उस समय अभाविप ने महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के विरुद्ध एक स्थाई समाधान सोचने की ओर काम करना शुरू किया। जिस समय वामपंथी संगठन अपने छद्म महिलावाद के माध्यम से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में मात्र “जस्टिस जस्टिस” चिल्ला कर अपनी राजनैतिक फायदे की रोटी सेकने का इंतजार करते रहते थे, उस समय विद्यार्थी परिषद् सोच रहा था की महिलाओं के साथ अपराध हो ही क्यों! क्यों ही उन्हें न्याय के लिए संघर्ष करने की नौबत आये!
शिक्षा सुरक्षा स्वास्थ्य एवं स्वावलम्बन के बहुउद्देश्य के साथ छात्राओं को साहसी और आत्मनिर्भर बनाने और उनके विरुद्ध होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के उद्देश्य के साथ ६ मार्च २०१८ को अभाविप ने विशाल मिशन साहसी की नींव रक्खी। इस कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाओं को आम जीवन में आसानी से प्रयोग करने योग्य लेकिन अधिक प्रभावी आत्मरक्षा के गुर सिखाने का महाअभियान प्रारम्भ हुआ। देश के सैकड़ों शहरों कस्बों गावों में विद्यार्थी परिषद् के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं ने, छात्रों को रोज मर्रा के उपयोग में आने वाली वस्तुओं, जैसे पेन, एटीएम कार्ड, दुपट्टा आदि का प्रयोग कर प्रभावी आत्म रक्षा करते हुए हमलावर को धूल चटा देने के गुर सिखाये। इस अभियान के पोस्टरों की एक टैग लाइन इस अभियान के महिलाओं की किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भरता समाप्त करने के उद्देश्य को चरितार्थ करती नज़र आयी। टैग लाइन थी : “नेक्स्ट टाइम व्हेन यू नीड हेल्प, कॉल योर सेल्फ”, अर्थात अगली बार यदि तुम्हें सहायता की आवश्यकता हो तो स्वयं से सहायता मांगना। अब तक देश भर में मिशन साहसी के माध्यम से अभाविप १२ लाख से अधिक महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दे चुका। सबसे सुन्दर बात यह है की इस अभियान को सफल बनाने के सहयोग में केवल छात्रा कार्यकर्ता ही नहीं छात्र कार्य कार्यकर्ता भी कंधे से कन्धा मिला कर कार्य कर रहे हैं।
ऋतुमती अभियान
महिलाओं से सम्बंधित विषयों में मेन्सुरल हाइजीन या ऋतुचर्या से सम्बंधित समस्याओं की चर्चा मुख्यरूप से की जाती रही है। यह विषय महिलाओं के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सबसे प्रमुख विषय रहा है। वामपंथियों ने सदा से इस विषय को खूनी लाल रंग के नकारत्मकता फैलाने वाले पोस्टरों के माध्यम से बहुत ही अधिक दुष्प्रचारित किया और अपने फेक फेमिनिस्म के दानव को वर्षों से संतुष्ट करने का काम किया है। वास्तव में यह ऋतुचर्या ही वह शारीरिक कार्यकी है जो महिलाओं को मातृत्व जैसा सर्वोपरि बनाने वाला स्थान दिलाती है और संसार में मानव के सृजन का कारण है। इतनी पवित्र प्रक्रिया को लेकर भारतीय ग्रंथों में सैकड़ोंअति महत्वपूर्ण उद्धरण मिलते है। परन्तु जानकारी के अभाव में बहुत सारी महिलाओं को इससे सम्बंधित गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को झेलना पड़ता है। विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं ने यह बीड़ा उठाया की इलीट वर्ग से दूर बस्तियों में रहने वाली महिलाओं के मध्य ऋतुचर्या से सम्बंधित जागरिकता एवं आवश्यक सुविधाएं पंहुचा कर एक स्थाई समाधान तक पंहुचा जाना चाहिए; एवं इस महत्वपूर्ण सृजन की स्त्रोत्र घटना के सम्बन्ध में वामपंथियों द्वारा फैलाये गए दुष्प्रचार को समाप्त करना चाहिए। इस प्रकार २०२० में दिल्ली के कालका जी से प्रारंभ हुआ ऋतुमति अभियान। इस अभियान में दिल्ली की बस्तयों में जाकर विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं ने ऋतुचर्या एवं उससे सम्बंधित हाइजीन एवं स्वस्थ्य विषयों पर चिकित्सकीय विशेषज्ञों की सहायता लेते हुए जागरूकता का अभियान चलाया और आवश्यक सुविधाएँ जैसे सेनेटरी पैड आदि वितरित करने का अभियान शुरू किया। हज़ारों महिलाओं को इस अभियान के माध्यम से लाभ मिलना शुरू हुआ। प्रेरित हो कर अन्य छात्र छात्राएं और महिलाएं विद्यार्थी परिषद् के इस अभियान में सहयोग करने के लिए जुड़ने लगे। देखते-देखते यह दिल्ली प्रदेश के एक हिस्से से शुरू हुआ अभियान सम्पूर्ण भारत में अभाविप के द्वारा एक महाअभियान के रूप में फ़ैल गया। आज देश की हज़ारों बस्तियों तक ऋतुचर्या से सम्बंधित जागरूकता फैली है और इस अभियान से लाभ प्राप्त करने वाली महिलाओं ने स्वयं भी इस अभियान में जुड़कर अन्य महिलाओं के मध्य भी जागरूकता फ़ैलाने का काम किया।
इस प्रकार जब वामपंथी संगठन छात्रों के मध्य महिला विषयों पर नकारात्मक नरेटिव बनाने और पुरुषों को केवल गालियां देने और दोषी ठहराने को ही फेमिनिस्म के रूप में परिभाषित करने में जुटे थे तब अपने अनेकों अभियानों के माध्यम से विद्यार्थी परिषद् के छात्र और छात्रा कार्यकर्ताएं कंधे से कन्धा मिला कर एक साथ महिला विमर्श के सम्बन्ध में सकारात्मक एवं प्रायोगिक परिवर्तन करने में और महिला विमर्श से सम्बंधित समस्याओं को एक चुनौती की तरह लेकर समाधान तक पहुँचाने में पूर्ण मनोयोग से लगे थे। अभाविप का महिला विमर्श मात्र विमर्श की चर्चा तक सीमित नहीं है बल्कि समस्या को समाधान तक पहुंचा कर, पूर्णता तक पहुंचने का महिला विमर्श है। इसी वजह से पिछले ७५ वर्षों में वर्ष प्रति वर्ष शैक्षिक संस्थानों में विद्यार्थी परिषद् की प्रासंगिकता भी बढ़ती ही गयी है और आज यह विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन बन गया है जो किसी समस्या का नकारात्मक राग अलापने के बजाये राष्ट्र शक्ति, छात्र शक्ति के माध्यम से उस समस्या को समाधान तक पहुँचाने वाले एवं शैक्षणिक परिसर में सकारात्मकता फ़ैलाने वाले संगठन के रूप में स्थापित हुआ है।
– अम्बुज मिश्र
(लेखक जेएनयू में शोधार्थी हैं)
टिप्पणियाँ