बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में पिछले 5 साल से बसे और लगातार बढ़ते जा रहे रोहिंग्या मुसलमानों के शिविर में भीषण आग लगने से बस्ती का एक बड़ा हिस्सा राख के ढेर में बदल गया है। ये रोहिंग्या मुस्लिम 2017 में म्यांमार में हिंसा से बचने के लिए भागकर बांग्लादेश के इस शिविर में रह रहे हैं। कॉक्स बाजार का यह शिविर बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती बताया जाता है। यहां बसे रोहिंग्याओं को अनेक सेकुलर संगठन और संयुक्त राष्ट्र की ओर से मानवीय सहायता दी जा रही है।
मीडिया में आए समाचारों के अनुसार, कल कॉक्स बाजार के इस शिविर में लगी भीषण आग से हजारों रोहिंग्या सड़क पर आ गए हैं। प्लास्टिक की चादरों और लकड़ी की बल्लियां से बनी रोहिंग्याओं की बस्ती के एक बड़े हिस्से के जलने के पीछे के कारणों का पता नहीं चला है। माना जा रहा है कि किसी झुग्गी में आग जलाते वक्त कोई लापरवाही हुई है।
बांग्लादेश के दमकल विभाग के एक अधिकारी, इमदादुल हक का कहना है कि शिविर में लगी आग में किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है। बांग्लादेश में कार्यरत संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था ने ट्वीट करके बताया है कि राहतकर्मी फौरन आग पर काबू पाने में जुट गए। संस्था की तरफ से पीड़ितों को हर तरह की मदद दी जा रही है।
कॉक्स बाजार के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रफीकुल इस्लाम का कहना है कि शिविर के इस अग्निकांड में किसी की जान जाने का समाचार नहीं है। लोगों का सामान जरूर जला है। उनके हिसाब से आग पर जल्दी ही काबू पा लिया गया। इस अग्निकांड में कॉक्स बाजार का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ है।
म्यांमार में मजहबी उन्मादी रोहिंग्या मुस्लिमों के हाथों वर्षों तक उत्पीड़न सहने के बाद, वहां के बौद्धों ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्रतिकार करना शुरू किया था। 2017 में बौद्धों के प्रचंड आक्रोश से बचने की गरज से लगभग 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश भाग आए थे। ये रोहिंग्या तभी से बांग्लादेश में डेरा डाले हुए हैं।
स्थानीय अधिकारियों के आकलन के अनुसार, 2,000 से ज्यादा झुग्गियां जल कर खाक हो गई हैं। बांग्लादेश में शरणार्थी राहत तथा प्रत्यावर्तन आयोग से जुड़े मोहम्मद शमसुद्दोजा का कहना है कि अग्निकांड में करीब 10,000 लोग प्रभावित हुए हैं, और बचे—खुचे माल—असबाब के साथ सड़क पर आ गए हैं। हालांकि इस शिविर में आग पहली बार नहीं लगी है। इसी बस्ती में जनवरी 2022 तथा मार्च 2021 में ऐसी ही भीषण आग लग चुकी है। उस वक्त इसमें 15 लोग मारे गए थे और 10,000 से ज्यादा झुग्गियां खाक हुई थीं।
उल्लेखनीय है कि म्यांमार में मजहबी उन्मादी रोहिंग्या मुस्लिमों के हाथों वर्षों तक उत्पीड़न सहने के बाद, वहां के बौद्धों ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्रतिकार करना शुरू किया था। 2017 में बौद्धों के प्रचंड आक्रोश से बचने की गरज से लगभग 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश भाग आए थे। ये रोहिंग्या तभी से बांग्लादेश में डेरा डाले हुए हैं। समय—समय पर इनके द्वारा वहां उत्पात भी मचाया जाता है, जिससे स्थानीय मुस्लिम आबादी का रहना मुश्किल होता रहा है।
इनकी हरकतों से त्रस्त बांग्लादेश सरकार कई बार उन्हें वहां से म्यांमार वापस भेजने की कोशिश कर चुकी है, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली है। 2021 में म्यांमार में सत्ता सेना के हाथ में जाने के बाद से तो ऐसा होता संभव नहीं दिख रहा है। लेकिन इतना तो तय है कि बांग्लादेश के संसाधनों पर इन रोहिंग्याओं के आने के बाद से तेजी से दबाव बढ़ा है। इनकी वजह से कई तरह की दिक्कतें भी पेश आ रही हैं।
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