रंगभरी एकादशी के दिन जैसे-जैसे दिन ढलना शुरू हुआ वैसे-वैसे बाबा के भक्त धाम की ओर चल पड़े। टेढ़ीनीम महंत आवास से निकलकर माता गौरा की पालकी पहली बार स्वर्णमयी गर्भगृह में विराजमान हुई। काशीवासियों और भारत के कोने-कोने से आये भक्तों ने मां गौरा और बाबा संग जमकर होली खेला।
बोल बम और हर हर महादेव के साथ अबीर गुलाल और फूलों की वर्षा करते हुए जब श्रद्धालु बाबा दरबार में पहुंचे तब पूरा परिसर शिव मय हो गया था। श्रद्धालु, परिसर में बज रहे डमरू वादन पर खूब थिरके। जब पालकी पर सवार होकर भोलेनाथ परिसर में पहुंचे तो एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु, बाबा की पालकी की ओर चल पड़े। कोई अबीर गुलाल चढ़ाकर तो कोई स्पर्श करके अपने आप को धन्य समझ रहा था। पालकी आगमन के बाद बाबा की आरती उतारी गई। आरती के पश्चात सभी दरवाजे दर्शनार्थियों के दर्शन के लिए खोल दिए गए। मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने बताया कि सुबह से लेकर रात्रि 11 बजे तक करीब ढाई लाख श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन पूजन किया।
काशी की गलियां गुलाल से लाल हो गईं। ब्रह्म मुहूर्त में बाबा की चल प्रतिमा के पूजन के उपरांत आरती के साथ ही रंगभरी के रंगारंग उत्सव का श्रीगणेश हो गया। राजसी ठाट में देवी पार्वती और गणेश के साथ चिनार और अखरोट की लकड़ी से बनी रजत जड़ित पालकी पर प्रतिष्ठित करके बाबा की चल प्रतिमा काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में ले जाई गई। पालकी यात्रा के दौरान इतना गुलाल और अबीर उड़ाया गया कि महंत आवास से मंदिर प्रांगण तक करीब पांच सौ मीटर के बीच जमीन पर अबीर-गुलाल की परत जम गई थी। बाबा का सिंहासन रखने के लिए बिछाई गई हरी कालीन पहले गुलाल की बौछार से लाल हुई फिर भभूत से सफेद हो गई।
बरसाने के लहंगे और आभूषणों में देवी पार्वती का शृंगार संजीव रत्न मिश्र ने किया। बाबा की रजत पालकी उठाने की तैयारी हो रही थी और दूसरी ओर भक्तों का रेला बाबा के दर्शन के लिए महंत आवास में प्रवेश करने की जद्दोजहद कर रहा था। अत्यधिक भीड़ के कारण भक्तों को अनुरोध पूर्वक रोकना पड़ा। भक्तों की हर्ष ध्वनि के बीच शिव-पार्वती की चल रजत प्रतिमा को काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया और गुलाल की बौछार के बीच सप्तऋषि आरती की प्रक्रिया पूरी की गई।
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