आए दिन यह समाचार आते रहते हैं कि अमुक महिला को चुड़ैल या डायन समझ कर मार डाला, या पीट दिया आदि आदि! परन्तु यह प्रश्न उठना चाहिए कि क्या महिलाओं को डायन या चुड़ैल मानने की परम्परा भारत में थी या फिर यह कहीं से थोपी हुई है? क्या यह वास्तव में भारतीय अवधारणा है या फिर कहीं से आई और आकर हिन्दुओं को पिछड़ा बताने के लिए कहीं से थोप दी गयी?
यह प्रश्न इसलिए उठता है कि रामायण, महाभारत आदि किसी भी पौराणिक ग्रन्थ में चुड़ैल या डायन का उल्लेख सहज प्राप्त नहीं होता है। भारत में इसका उद्भव 16वीं शताब्दी से पाया जाता है, इससे पूर्व इस शब्द का इतिहास सहज नहीं प्राप्त होता है।
तो फिर प्रश्न यह उठता है कि आखिर महिलाओं को इस सीमा तक अपमानित करने वाला यह शब्द कहाँ से आया? कहाँ से आया यह शब्द और आज भी उन स्थानों पर यह अधिक प्रचलित है जहाँ पर ईसाई मिशनरीज अधिक गईं और अधिक प्रभावी हैं? ऐसे तमाम प्रश्न उठते हैं तो फिर इन प्रश्नों के उत्तरों की इच्छा में कई पुस्तकों की ओर जाना स्वाभाविक ही है।
और स्पष्ट है कि डायनों का इतिहास खोजते खोजते जाना ही पड़ा इतिहास में। भारत में नहीं इसका इतिहास प्राप्त हुआ सुदूर पश्चिम में। सुदूर पश्चिम में महिलाओं को डायन के नाम पर जलाने का इतिहास मिला। The Witch-Hunt in Early Modern Europe नामक पुस्तक में ब्रायन प। लेवाक (Brian P। Levack) लिखते हैं कि यूरोपीय इतिहास के आरंभिक आधुनिक काल के दौरान, लगभग 1450 से लेकर 1750 तक, हज़ारों लोगों को डायन के आरोप में मार डाला गया था, और जिनमें अधिकाँश महिलाएं थीं। जिन लोगों को मारा गया, उनमें से आधे लोगों को जिंदा जलाकर मारा गया था।
इस पुस्तक के अनुसार डायनों के कुछ मुक़दमें यूरोप के ईसाई चर्च सम्बन्धी न्यायालयों में चलाए गए और यह संस्थान थे, जिन्होनें मध्य काल के दौरान यूरोपीय लोगों के नैतिक एवं धार्मिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया गया। हालांकि 1550 के बाद यह मुक़दमे सेक्युलर न्यायालय अर्थात दरबारों आदि में चलाए जाने लगे थे।
इस पुस्तक से यह स्पष्ट है कि मध्यकाल में यूरोप पूरी तरह से डायन जैसी कुप्रथा के चंगुल में था। ऐसा क्यों किया गया, इसके सम्बन्ध में कई धारणाएं हो सकती हैं और होती हैं परन्तु यह हुआ था और होता था। ऐसा होता रहा था। परन्तु भारत? भारत में उस मध्य हमें मुगलों के आक्रमण अवश्य दिखते हैं, परन्तु डायन? डायन जैसा शब्द नहीं दिखता है।
महिलाओं पर इतना जघन्य अत्याचार अंतत: कहाँ से आया? कहाँ से आकर भारतीयों को बदनाम करने के लिए प्रयोग किया जाने लगा?
इसका उल्लेख भी कई शोधार्थियों ने किया है, इसका उत्तर जानने का प्रयास किया है। THE ACADEMIC JOURNEY OF WITCHCRAFT STUDIES In India में शमशेर आलम एवं आदित्य राज ने यह खोजने का प्रयास किया है। इस शोध पत्र में उन्होंने लिखा है कि पहली बार औपनिवेशिक काल में मिशनरी और औपनिवेशिक प्रशासक ही वह थे जिन्होनें औपनिवेशिक भारत के अपने प्रभाव के क्षेत्रों में गरीब लोगों को नियंत्रित एवं निगमित करने के उद्देश्य के लिए डायन को नियंत्रित करने एवं विचक्राफ्ट के मामलों को रिकॉर्ड करना एवं जांच करना आरम्भ किया।
उसके बाद हमें 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के आसपास सूचना मिलती है। (इसे अंग्रेज विद्रोह कहते हैं और भारतीय इसे भारत का स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं।
इसी दौरान छोटा नागपुर में “जनजातीय समुदायों के बीच पहली सबसे बड़ी विच हंटिंग” की गयी।
यही वह समय है जब जनजातीय समूहों में डायन आदि के शब्दों को सबसे पहली बार संभवतया सुना गया होगा। परन्तु यह मात्र जनजातीय समुदाय तक ही सीमित थी।
यह 1857 के आसपास की बातें हैं और अध्ययन इन्हीं पर आधारित हैं। अब पुन: यूरोप की ओर लौटते हैं, तो The Witch-Hunt in Early Modern Europe नामक पुस्तक में ब्रायन प। लेवाक और बातें लिखते हैं। वह बताते हैं कि लाखों लोगों को मार डाला गया था।
एक और पुस्तक है witches and witchcraft। इस पुस्तक में मध्यकालीन यूरोप के कई ऐसे चित्र हैं, जो डायन या चुड़ैल आदि का वर्णन देते हैं। परन्तु भारत में मध्यकाल के मध्य भी ऐसे कोई चित्र प्राप्त नहीं होते हैं।
वहां पर यह माना जाता था कि कोई शैतान है जो किसी इंसान पर कब्जा कर लेता है और फिर यह उनका उत्तरदायित्व है कि वह उस शैतान से लोगों को बचाएं। वह ईसाइयत को उसके दुश्मनों से बचाएं। इस पुस्तक में लिखा है कि यह सत्ता का विषय था।
Berkeley Law के अनुसार आरम्भिक आधुनिक यूरोप में विच हंटिंग अर्थात डायन पकड़ने की जो प्रक्रिया थी, उसकी दो लहरें आईं, पहली थी पंद्रहवीं एवं शुरुआती सोलहवीं शताब्दी एवं दूसरी थी सत्रहवी शताब्दी, जिसमें डायनों को पूरे यूरोप में देखा गया, परन्तु सबसे ज्यादा दक्षिण पश्चिमी जर्मनी में देखा गया, जहाँ पर 1561 से लेकर 1670 तक सबसे ज्यादा डायन पकड़ने और मारने के मामल सामने आए।
यहाँ पर यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत में यह सभी कथाएँ लोगों के संज्ञान में तब आईं, जब जनजातीय क्षेत्रों में मिशनरी और अंग्रेज प्रशासन ने रिकॉर्ड करना आरम्भ किया।
और शशांक सिन्हा अपने शोधपत्र 1857 Witch-hunts, Adivasis and the Uprising in Chhotanagpur में लिखते हैं कि 1857 से पहले छोटा नागपुर तथा अन्य जनजातीय समूहों में डायन की खोज आदि के समाचार नहीं प्राप्त होते हैं।
यह हो सकता है कि जनजातीय समुदायों के अपने कुछ विश्वास हों, परन्तु वह डायनों के उसी परिदृश्य के अनुसार हों, जो यूरोप से उपजा था, इसमें संदेह है एवं अवधारणागत भेद हो सकता है।
फिर भी यह कहा जा सकता है कि जिन कुप्रथाओं को भारत का कहकर प्रचारित किया गया, या फिर यह कहा गया कि भारत का लोक पिछड़ा है, वह कुप्रथाएं संभवतया भारत की थी ही नहीं।
क्या यह विमर्श के स्तर पर भारतीय महिलाओं को पिछड़ा प्रमाणित करने का षड्यंत्र था या फिर कुछ और? प्रश्न कई हैं, परन्तु यह सभ्यतागत प्रश्न है एवं उत्तर भी सभ्यता के संघर्ष में ही प्राप्त होंगे।
टिप्पणियाँ