दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अब तिहाड़ जेल में हैं। आम आदमी पार्टी के एक और पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन के पड़ोसी आम आदमी पार्टी के नेताओं के लिए इस जेल में अभी बहुत जगह बाकी है। दिल्ली जल बोर्ड घोटाले से लेकर परिवहन घोटाले तक बहुत कलई खुलनी बाकी है। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी यूं ही नहीं हुई है। जांच हुई है, पुख्ता सुबूत हैं। वादा माफ गवाह हैं, जो दिल्ली के शराब घोटाले में शामिल थे। मनीष सिसोदिया सवालों के जवाब न देकर बच नहीं सकते, लेकिन बात बस इतनी नहीं है। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी पर पूरा विपक्ष एक है। सिसोदिया की गिरफ्तारी की निंदा समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव से लेकर केसीआर तक सबने लगभग मिली-जुली स्क्रिप्ट के साथ की है। एक आधे राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी, भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारी पर इस विपक्षी एकता को जरा डिकोड करने की कोशिश करते हैं।
पहला मसला तो अपने आप में आम आदमी पार्टी है। यह कहना तो बेमानी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के नाम पर जनमी ये पार्टी गले तक भ्रष्टाचार में कैसे डूब गई है। यह भारतीय राजनीति की विडंबना है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती कांग्रेस आजादी के बाद उसी शोषक व्यवस्था की पोषक बन गई। समाजवाद के नाम पर पैदा हुए तकरीबन सारे दल परिवारवादी और जातिवादी राजनीति के प्रतीक बन गए। वामपंथियों का दोहरा चरित्र सबके सामने है। इन दलों में आज मनीष सिसोदिया को लेकर जो एकता नजर रही है, उसका कारण सिर्फ इनके डीएनए में मौजूद भ्रष्टाचार है। इनके विरोध में एक डर शामिल है। डर ये कि आज मनीष सिसोदिया का नंबर आया है, कल हमारा आएगा। तेलंगाना में तो सत्तारूढ़ दल और केसीआर के परिवार तक दिल्ली के शराब घोटाले की आंच पहुंच रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी माफिया को पालने से लेकर सरकारी आवास की टोंटियां तक उखाड़ लेने के आरोपों में घिरी है। झारखंड में हेमंत सोरेन ने तो मुख्यमंत्री रहते हुए खुद के नाम ही खनन के ठेके हासिल कर लिए। बंगाल में ममता बनर्जी के मंत्रियों के घर से नोटों के ढेर मिल रहे हैं। नीतीश कुमार के बिहार की हालत ये है कि वहां पुल ही चोरी हो जाते हैं। तमिलनाडु में स्टालिन के चेले सड़कों पर वसूली कर रहे हैं। केरल में कम्युनिस्टों की सरकार में मुख्यमंत्री कार्यालय की सोने की तस्करी में लिप्त पाया जाता है। महाराष्ट्र में पवार परिवार की दशकों की लूट का इतिहास है। कुल मिलाकर इन दलों का न्यूनतम साझा कार्यक्रम भ्रष्टाचार है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जिस तरीके से भ्रष्टाचार के मामलों में जीरो टॉलरेंस पॉलिसी अपना रही है, इनकी साझा बेचैनी इस बात को लेकर है कि हमारा नंबर न आ जाए।
लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ मसला सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी अराजक, विभाजक और देश विरोधी एजेंडा पर आगे बढ़ रही है। केजरीवाल जिस राज्य में पहुंचे, वहां आग लगाने की कोशिश की। पंजाब में खालिस्तानियों के कंधे पर चढ़कर वह सत्ता में आए, तो अब खालिस्तानी उसकी कीमत वसूल रहे हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई, खालिस्तानी और आम आदमी पार्टी के पंजाब कैडर में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। पंजाब में जिस तरीके से खालिस्तानियों ने थाने पर कब्जा कर लिया, उसको देखने के बाद देश अस्सी के दशक की खालिस्तानी अलगाववाद के डरावने अतीत को याद करने लगा है। आम सिख और हिंदू सहमे हुए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगने वाले केजरीवाल पंजाब में खालिस्तानियों के नंगे नाच को देखकर भी खामोश हैं, तो कोई मजबूरी तो जरूर ही होगी।
अब जबकि आम आदमी पार्टी के नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं, इस बात की निर्मम समीक्षा होनी चाहिए कि आम आदमी पार्टी ने इस देश की राजनीति को क्या दिया है। इस पार्टी ने दिल्ली को दंगा दिया। 2020 की फरवरी में देश ने देखा कि कैसे इस पार्टी के नेता कार्यकर्ता हिंदू विरोधी दंगे की साजिश से लेकर हत्याओं तक में सक्रिय रूप से शामिल थे। इसी पार्टी ने दिल्ली को पर्दे के पीछे से शाहीन बाग दिया। देश की राजधानी को बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की जन्नत बना दिया। दिल्ली पानी से लेकर बसों तक के लिए तरस रही है। कोविड महामारी के दौरान इसी दिल्ली ने अपनी निर्वाचित सरकार का निकम्मापन जान की कीमत चुकाकर झेला। दिल्ली का कोई मंत्री पत्नी को सिगरेट से दागने का आरोपी रहा, तो कोई नेता राशन कार्ड बनवाने के नाम पर यौन शोषण करता पाया गया। पंजाब जलने के कगार पर है। ऐसा मुख्यमंत्री सूबे की गद्दी पर बैठाया गया है, जिसे शराब के नशे में धुत होने के कारण एक विदेशी एअरलाइन अपने जहाज से उतार देती है। गुजरात में आम आदमी पार्टी ने अपना सूपड़ा साफ होते देख गोपाल इटालिया जैसा नेता दिया, जो राज्य को जाति के नाम पर जला देने पर उतारू था। उत्तराखंड में ऐसा नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उतारा, जो नशे में ईव टीजिंग करता है।
कांग्रेस, परिवारवादी, कथित समाजवादी, स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष, वामपंथी दलों ने दशकों में मिलकर राजनीति के निम्नतम पायदान के जो मानक बनाए, आम आदमी पार्टी ने चंद सालों में उन्हें ध्वस्त कर दिया है। ये गिरावट अभी थमी नहीं है। पाताल लोक तक पहुंचने तक थमती नजर भी नहीं आती।
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