ऐतिहासिक नगर पाटलिपुत्र (पटना) की धरती पर आगामी 25 और 26 मार्च को साहित्य कुंभ का आयोजन किया जा रहा है। यह महोत्सव पटना के स्काउट्स एंड गाइड्स परिसर में आयोजित किया जाएगा। इसमें कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यकर्मी, चिंतक एवं संस्कृतिकर्मी आएंगे।
पटना में आयोजित होने वाले साहित्य कुंभ के लिए “चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव” नाम से एक संस्था बनाई गई है। अब यह संस्था प्रतिवर्ष इस प्रकार का आयोजन बिहार में करेगी। संस्था की स्वागत समिति के अध्यक्ष प्रसिद्ध साहित्यकार और बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अमरनाथ सिन्हा बनाए गए हैं। 26 फरवरी को चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव का लोगो भी जारी किया गया। प्रो. अमरनाथ सिन्हा ने बताया कि बिहार के ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य और संस्कृति की गौरवमयी परंपरा और विरासत के अनुरूप चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के आयोजन का निर्णय लिया गया है। पाटलिपुत्र की विद्वान परंपरा को पुनर्जीवित करने में इसकी अहम भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि पाटलिपुत्र में कभी साहित्य की अजस्र—धारा बहती थी। बाणभट्ट, भवभूति, पाणिनी सरीखे विद्वानों ने यहां रहकर साहित्य साधना की है। मौर्य राजवंश के समय साहित्य के क्षेत्र में यह स्थान सर्वप्रमुख था। उपकर्ष, राजशेखर, पाणिनी के गुरु वैश और वात्स्यायन की स्थली भी पाटलिपुत्र ही थी। शासन बदलते रहे लेकिन पाटलिपुत्र का चुंबकीय आकर्षण ऐसा था कि विद्वान यहां खींचे चले आते थे। पहली शताब्दी में महान कवि, विद्वान और धार्मिक व्याख्याकार अश्वघोष पाटलिपुत्र में ही रहते थे। कनिष्क ने अश्वघोष को अपने दरबार में बुलाने के लिए युद्ध किया था। विश्व के इतिहास में यह अनूठी घटना थी जब किसी राजा ने किसी विद्वान को प्राप्त करने के लिए युद्ध किया था।
चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के संयोजक प्रो. (डाॅ.) राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने बताया कि दो दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में मुख्य समारोह के अलावा छह समानांतर सत्र चलेंगे जिनमें राष्ट्र, संस्कृति, पर्यावरण, साहित्य, शिक्षा से संबंधित विषयों पर प्रसिद्ध विशेषज्ञों द्वारा संबोधन एवं विमर्श होगा। इस महोत्सव में इंटर, स्नातक, स्नातकोत्तर एवं शोध स्तर के तीन निबंध लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी, जिनमें प्रत्येक खंड से तीन-तीन विजेताओं को प्रमाण-पत्र एवं नकद राशि के साथ सम्मानित किया जाएगा। महोत्सव में साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले रचनाकारों को सम्मानित करने की भी योजना है। इन पुरस्कारोें में साहित्य की साधना के लिए वरिष्ठ साहित्यकार को चंद्रगुप्त साहित्य सम्मान प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा 40 आयु वर्ग, 50 आयु वर्ग और 50 से अधिक आयु वर्ग के साहित्यकारों को सम्मानित किया जाएगा।
साहित्य महोत्सव कार्यक्रम के सह संयोजक मिथिलेश कुमार सिंह ने बिहार की चर्चा करते हुए कहा कि प्राचीन काल से ही बिहार शिक्षा, साहित्य और संस्कृति की उर्वर भूमि रही है। कभी यहां के उत्कृष्ट नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए दूसरे देशों के विद्यार्थी आतुर रहते थे। इस भूमि ने शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में अनेक विभूतियों को जन्म दिया है। इसी भूमि पर धर्मशील चंद्रगुप्त मौर्य जैसे यशस्वी सम्राट और महर्षि चाणक्य जैसे महामनीषी हुए, जिन्होंने ज्ञान और संस्कृति की अजस्र—धारा प्रवाहित की। यहीं गणितज्ञ एवं ज्योतिषविद् आर्यभट हुए। इसी के मिथिला भू-भाग में मंडन मिश्र जैसे शास्त्रज्ञ एवं विद्यापति जैसे कालजयी कवि हुए थे। वैशाली में भगवान महावीर ने उपदेश दिए थे और बोधगया में महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।
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