‘अमर शहीद चन्द्र शेखर आज़ाद’ पुस्तक के लेखक विश्वनाथ वैशम्पायन जो चन्द्रशेखर आज़ाद के साथी भी थे, उन्होंने लिखा है कि “मेरी गिरफ्तारी के पंद्रह दिन बाद आज़ाद, अल्फ्रेड पार्क में बलिदान हुए थे। उस समय मैं बाहर नहीं था इसलिए जो समाचारों में प्रकाशित हुआ उसी के आधार पर लिख रहा हूं। सुखदेव राज के हवाले से विश्वनाथ वैशम्पायन ने लिखा है कि घटना के समय चन्द्रशेखर आज़ाद, हिन्दुस्तान से बर्मा जाने के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी वीरभद्र जाता हुआ दिखाई दिया। दोनों लोग ( सुखदेव और आज़ाद ) वीरभद्र के बारे में चर्चा कर ही रहे थे कि एक मोटर कार आकर रुकी और उसमें से उतर कर एक अंग्रेज अफसर आया और उसने नाम पूछा, उसके नाम पूछते ही सुखदेव और आज़ाद ने गोली चला दी। अंग्रेज अफसर ने भी गोली चलाई। इस बीच घायल होने के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने सुखदेव को वहां से निकल जाने के लिए कहा और सुखदेव वहां से किसी तरह निकलने में कामयाब हुए।
उक्त किताब में विश्वनाथ वैशम्पायन ने नाट बावर का घटना के संबंध में प्रेस को दिया गया बयान दर्ज किया है। नाट बावर ने अपने बयान में कहा कि ठाकुर विश्वेश्वर सिंह ( डिप्टी एसपी ) से मुझे संदेश आया कि उसने एक व्यक्ति को अल्फ्रेड पार्क में देखा, जिसका हुलिया आज़ाद से मिलता है जो क्रांतिकारी मफरूर है। मैं अपने साथ जमान और गोविन्द कांस्टेबिल को साथ लेता गया।
लगभग 10 गज के फासले पर खड़े होकर मैंने पूछा कौन है ? उत्तर में उन्होंने पिस्तौल निकाल कर गोलियां चला दी। मेरी पिस्तौल तैयार ही थी जैसे ही मैंने देखा कि मोटा आदमी पिस्तौल निकाल रहा है मैंने उसके गोली चलाने के क्षण भर पहले गोली चला दी। मेरे साथ जो तीन आदमी थे उन्होंने भी गोलियां कुछ मोटे आदमी तो और कुछ दूसरे व्यक्ति पर चलाईं। जब मैं मैगजीन निकाल कर दूसरी भर रहा था, मुझे मोटे व्यक्ति ने गोली मारी, जिससे मैगजीन गिर पड़ी जो मेरे बाए हाथ में थी। मोटे आदमी ने गोली चलाई जो विश्वेश्वर सिंह के मुंह पर लगी।
मैं पिस्टल न भर सका, जब-जब मैं दिखाई देता मोटा व्यक्ति मुझ पर गोली चलाता रहा। मैं कह नहीं सकता कि उस पर किसी ने गोली चलाई या वह पहले जख्मों के कारण उसकी मृत्यु हुई। इस बीच लोग जमा हो गए। इसी बीच एक व्यक्ति गन लेकर आया जो भरी हुई थी। मैं नहीं जानता था कि मोटा आदमी सचमुच मरा है या बहाना कर रहा है। इसलिए मैंने उस आदमी से उसके पैरों पर निशाना लगाने को कहा, उस आदमी ने बन्दूक चलाई। उसके बाद मैं उस मोटे आदमी के पास चला गया तो देखा कि मृत्यु हो चुकी थी। उसका साथी भाग गया था।
वर्ष 1985 से भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से इलाहाबाद संग्रहालय का संचालन होता रहा है। वर्ष 2008 से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को संग्रहालय को संचालित करने वाली सोसायटी का पदेन अध्यक्ष बनाया गया। चन्द्रशेखर आज़ाद से जुड़ी हुई स्मृतियां इलाहाबाद संग्रहालय में ही रखी हुई हैं। जिस आज़ाद पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद, बलिदान हुए थे उसी पार्क में इलाहाबाद संग्रहालय स्थित है।
इलाहाबाद संग्रहालय के पूर्व निदेशक, राजेश पुरोहित के अनुसार, चन्द्रशेखर आज़ाद एक योद्धा थे। आखिरी दम तक वो अंग्रेजों की पुलिस से लड़े। आज़ाद ने अंग्रेज पुलिस अफसर नाट बावर और एक डिप्टी एसपी विश्वेश्वर सिंह को घायल भी किया था। इस बीच उन्हें भी गोली लग चुकी थी। आखिर में उन्होंने स्वयं को गोली मार ली।
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