भारतीय जनता पार्टी द्वारा 25 फरवरी को पटना के बापू सभागार में स्वामी सहजानंद सरस्वती जयंती के उपलक्ष्य में मजदूर किसान समागम किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। श्री शाह स्वामी जी को श्रद्धांजलि अर्पित कर सीधा किसानों से संवाद करेंगे। सभी मंचस्थ नेताओं को भेंटस्वरूप किसान का आभूषण ‘हल’ दिया जाएगा।
पटना में स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की जयंती पर होने वाले कार्यक्रम को बिहार के बुद्धिजीवी भाजपा की सांस्कृतिक अवधारणा के साथ जोड़कर देख रहे हैं। बता दें कि पश्चिम की मान्यता के विपरीत भारत में संन्यासियों ने देश के विकास और गुलामी की बेड़ियों को काटने में अप्रतिम भूमिका निभाई है। स्वामी सहजानंद सरस्वती आधुनिक भारत के सबसे बड़े किसान नेता एवं महान स्वतंत्रता सेनानी थे। यह सौभाग्य की बात है कि उनकी कर्मस्थली बिहार रही।
स्वतंत्रता संग्राम और स्वामी सहजानंद सरस्वती
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में संन्यासियों ने हर संघर्ष में हिस्सा लिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में संन्यासी आंदोलन की एक प्रमुख कड़ी स्वामी सहजानंद सरस्वती थे। स्वामीजी का जन्म गाजीपुर के देवा ग्राम में महाशिवरात्रि के दिन 1889 ई में हुआ था। उन्होंने 1907 में संन्यास धारण किया। लगातार भ्रमण कर देश की परिस्थिति को समझते रहे। गांधीजी के कहने पर 1920 में स्वामी सहजानंद स्वाधीनता के संघर्ष में शामिल हुए। बिहार को अपने आंदोलन का केन्द्र बनाया। इस दौरान गाजीपुर, वाराणसी, आजमगढ़, फैजाबाद और लखनऊ जेल उनका ठिकाना बना। कुछ समय पटना की बांकीपुर जेल और लगभग दो साल हजारीबाग केन्द्रीय कारा में सश्रम कारावास की सजा झेली। कारावास के दौरान गांधीजी के सुविधाभोगी चेलों की करतूतों को निकट से देखने और गांधीजी का जमींदारों के प्रति नरम रुख को देखकर वे बिदक गए। बिहार में 1934 के भूकंप से तबाह किसानों को मालगुजारी में राहत दिलाने की बात को लेकर गांधीजी से उनकी अनबन हो गयी। एक झटके में ही उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर किसानों के लिए जीने और मरने का संकल्प ले लिया।
स्वामीजी ने जमींदारों के खिलाफ ‘लट्ठ’ उठा लिया और आर-पार की लड़ाई शुरू कर दी। उन्होंने देशभर में घूम—घूमकर किसानों की रैलियां कीं। स्वामीजी के नेतृत्व में सन् 1936 से लेकर 1939 तक बिहार में कई लड़ाइयां किसानों ने लड़ीं। इस दौरान जमींदारों और सरकार के साथ उनकी भिड़ंत भी हुई। इस कारण बिहार की किसान सभा की पूरे देश में प्रसिद्धि हुई। दस्तावेज बताते हैं कि स्वामीजी की किसान सभाओं में जुटने वाली भीड़ तब कांग्रेस की रैलियों से ज्यादा होती थी।
स्वामी सहजानंद की नेताजी सुभाषचंद्र बोस से काफी निकटता थी। दोनों ने साथ मिलकर कई रैलियां कीं। एक बार जब स्वामीजी की गिरफ्तारी हुई तो नेताजी ने 28 अप्रैल को ‘ऑल इंडिया स्वामी सहजानंद डे’ घोषित कर दिया।
किसानों को शोषण से मुक्त कराने और जमींदारी प्रथा के खात्मे के लिए संघर्ष करते हुए 26 जून, 1950 को स्वामी जी बिहार के मुजफ्फरपुर में महाप्रयाण कर गए।
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