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शिवसेना चुनाव चिह्न प्रकरण : सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने से किया इनकार

- मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी। फिलहाल कोर्ट ने पार्टी दफ्तर, बैंक खाते पर अभी कोई आदेश नहीं दिया है।

by WEB DESK
Feb 22, 2023, 10:20 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
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सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के चुनाव चिह्न मामले में निर्वाचन आयोग के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि उद्धव ठाकरे गुट अस्थायी नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल जारी रख सकता है। कोर्ट ने एकनाथ शिंदे गुट और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि शिंदे गुट अभी ऐसा कुछ नहीं करेगा, जिससे उद्धव समर्थक सांसद और विधायक अयोग्य हो जाएं। मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।

बुधवार को कोर्ट ने पार्टी दफ्तर, बैंक खाते पर अभी कोई आदेश नहीं दिया है। सुनवाई के दौरान एकनाथ शिंदे की ओर से वकील नीरज किशन कौल ने उद्धव ठाकरे की याचिका का विरोध करते हुए इसकी स्वीकार्यता पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि दो बार इसी मुद्दे पर यह दिल्ली हाई कोर्ट जा चुके हैं। अब जब आदेश आ गया है तो उसे चुनौती देने के लिए वो सीधे यहां आ गए हैं। इन्हें सीधे हाई कोर्ट जाना चाहिए। कोर्ट को इनकी याचिका पर विचार ही नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच के सामने यह मामला पहले से ही लंबित है।

उद्धव ठाकरे के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले को निर्वाचन आयोग भेजा था इसीलिए उसके फैसले को चुनौती देने हम यहां आए हैं। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि शिवसेना का संविधान रिकॉर्ड पर नहीं था, जबकि उसके प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने अपना फैसला बहुमत के आधार पर दिया है, जो पहले से कोर्ट के सामने लंबित है। निर्वाचन आयोग ने इस बात को भी नजरंदाज कर दिया कि पार्टी में टूट है और अभी यह साबित नहीं हो सकता कि बहुमत किसका है। फिर भी आदेश जारी किया।

सिब्बल ने कहा कि उद्धव ठाकरे गुट का पार्टी के संगठन, पदाधिकारियों और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच बहुमत है। राज्यसभा में हमारा बहुमत है लेकिन सिर्फ चालीस विधायकों की टूट के आधार पर ही निर्वाचन आयोग ने अपना फैसला दे दिया।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने वकील नीरज किशन कौल से पूछा कि क्या यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित नहीं है, जिसमें यह तय किया जाना है कि क्या सिर्फ विधायक दल को ही पार्टी मान लिया जाए। इस पर वकील कौल ने कहा कि विधायक दल अलग होता है, लेकिन राजनीतिक दल में किसका बहुमत है, यह दसवीं अनुसूची का मसला नहीं है क्योंकि यह कहां लिखा है कि विधायकों को पार्टी में नहीं माना जाएगा। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने शिवसेना के ही संविधान के आधार पर पार्टी का नाम और सिंबल दिया है जिसमें कहा गया है कि एक गुट जिसके पास सांसदों, विधायकों और अन्य चुने हुए जनप्रतिनिधियों का समर्थन प्राप्त हो वही पार्टी है।

सुनवाई के दौरान नीरज किशन कौल ने कहा कि हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर रहे हैं कि संसदीय दल या विधानमंडल दल भी संबंधित राजनीतिक दल का अभिन्न अंग है, लेकिन पार्टी में विवाद के सिलसिले में सिर्फ सदन में बहुमत ही नहीं बल्कि चुने गए सदस्यों, जनता से मिले मतों, पार्टी की बड़ी से लेकर छोटी तक सभी इकाइयों में बहुमत के आधार पर होता है। कौल ने कहा कि यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा कि आप विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की शिकायत दे दें और उन्हें पार्टी की गतिविधियों में शामिल न होने दें।

एकनाथ शिंदे गुट के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही निर्वाचन आयोग ने एक राजनीतिक पार्टी में टूट की स्थिति में पार्टी के नाम और सिंबल पर फैसला लिया। शिंदे गुट की ओर से कोर्ट को यह भरोसा भी दिलाया गया कि अभी अयोग्यता की कार्रवाई नहीं करेंगे।

उद्धव गुट ने निर्वाचन आयोग के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी गई है। याचिका में शिंदे गुट को धनुष-बाण चुनाव चिह्न आवंटित करने के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती दी गई है।

उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग ने 17 फरवरी को एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना करार दिया और धनुष-बाण चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया। आयोग ने पाया था कि शिवसेना का मौजूदा संविधान अलोकतांत्रिक है। निर्वाचन आयोग ने कहा था कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीके से वापस लाया गया, जिससे पार्टी निजी जागीर के समान हो गई। इन तरीकों को निर्वाचन आयोग 1999 में नामंजूर कर चुका था। पार्टी की ऐसी संरचना भरोसा जगाने में नाकाम रहती है।

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