शुरू हुई नैमिष तीर्थ की 84 कोसी फाल्गुन परिक्रमा
May 25, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम संस्कृति

शुरू हुई नैमिष तीर्थ की 84 कोसी फाल्गुन परिक्रमा

मान्यता है कि जो मनुष्य नैमिष तीर्थ की मोक्षदायी 84 कोसी परिक्रमा कर लेता है वह चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो जाता है।

by पूनम नेगी
Feb 21, 2023, 07:41 pm IST
in संस्कृति
नैमिषारण्य की 84 कोसीय फाल्गुन परक्रिमा यात्रा

नैमिषारण्य की 84 कोसीय फाल्गुन परक्रिमा यात्रा

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर नैमिष तीर्थ की 84 कोसीय फाल्गुन परिक्रमा 21 फरवरी से शुरू हो गई है। सतयुगीन तीर्थ नैमिषारण्य में यह परिक्रमा प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर पूर्णिमा को संपन्न होती है। हिंदू धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि जो मनुष्य नैमिष तीर्थ की मोक्षदायी 84 कोसी परिक्रमा कर लेता है वह चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो जाता है।

परिक्रमा यात्रा के अध्यक्ष एवं पहला आश्रम के महंत 1008 श्री भरतदास जी महाराज के अनुसार डंका बजाये जाने के साथ 84 कोस (252 किलोमीटर) की एक पखवारे तक चलने वाली इस परिक्रमा का शुभारम्भ फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को चक्रतीर्थ में डुबकी लगाकर सिद्धविनायक जी पूजा-अर्चना के साथ होता है। पूर्णिमा को होलिका दहन के शुभ मुर्हूत में मिश्रिख के दधीच कुंड पर सम्पन्न होती है। विशेष बात यह है कि इस परिक्रमा पथ पर पड़ने वाले 11 पड़ावों में सात पड़ाव- कोरौना, देवगवां, मड़रूआ, जरिगवां, नैमिषारण्य, कोल्हुआ बरेठी व मिश्रिख सीतापुर जिले में पड़ते हैं और पांच पड़ाव-हरैया, नगवा कोथावां, गिरधरपुर उमरारी व साक्षी गोपालपुर हरदोई जनपद में पड़ते हैं। ये सारे पड़ाव पार कर परिक्रमार्थियों का दल 11वें दिन महर्षि दधीचि की नगरी मिश्रिख शेष पांच दिनों में मिश्रिख तीर्थ की पंचकोसी परिक्रमा करता है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिकादहन से पूर्व दधीचि कुंड में स्नान व आचमन-पूजन के साथ 84 कोसी परिक्रमा संपन्न होती है।

इस दल परिक्रमा में भाग लेने वाले साधु-संत व श्रद्धालु जब हाथी, घोड़ों और पैदल यात्रा करते जयकारों के साथ विभिन्न वाद यंत्रों को बजाते हुए भजन कीर्तन के साथ परिक्रमा करते हैं तथा प्रशासन व जनसामान्य द्वारा पुष्पवर्षा द्वारा अभिनन्दन किया जाता है तो इस दिव्य तीर्थ की रौनक देखते ही बनती है। इस परिक्रमा यात्रा में उत्तरप्रदेश के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश सहित पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में साधु-संत भाग लेते हैं। गौरतलब हो कि सूबे की योगी सरकार ने काशी, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन और विंध्यवासिनी धाम की तर्ज पर पौराणिक नैमिष धाम को संवारने के लिए नैमिषारण्य धाम तीर्थ विकास बोर्ड का गठन कर इस पुरातन तीर्थ के पुनरुद्धार का मार्ग प्रशस्त किया है।

सर्वप्रथम महर्षि दधीच ने की थी नैमिष की 84 कोसी परिक्रमा

नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा अपने आप में अत्यंत अद्भुत है। इस परिक्रमा की कथा महर्षि दधीच के देहदान से जुड़ी है। कहा जाता है अपनी अस्थियों का बलिदान देने से पूर्व महर्षि दधीच ने तीनों ऋणों से मुक्त होने और मोक्ष की कामना से त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) और साधु संन्यासियों के साथ सर्वप्रथम इस तीर्थ क्षेत्र की चौरासी कोसीय परिक्रमा की थी। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार सतयुग के उपरांत त्रेतायुग में रावण वध के कारण भगवान राम को जब ब्रह्म हत्या का पाप लगा था तो कुलगुरु वशिष्ठ के कहने पर उन्होंने नैमिषारण्य की चौरासी कोसी परिक्रमा कर तीर्थ में स्नान कर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पायी थी। वहीं महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में भी उल्लेख मिलता है कि महाभारत युद्ध के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा इस तीर्थ की चौरासी कोसी परिक्रमा कर यहां हजारों वर्ष तक कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न को स्वयं महादेव शिव ने इस तीर्थ को ‘धर्मारण्य’ के रूप में प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था।

‘रामादल’ के नाम से जाना जाता है परिक्रमार्थियों का समूह

शास्त्रकार कहते हैं वनवास काल के दौरान भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने ऋषि मुनियों व वनवासियों के साथ इस पुण्य क्षेत्र की पदयात्रा की थी। इस दौरान जिन-जिन स्थानों पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया था, वे स्थल आज भी परिक्रमा मार्ग के “पड़ाव” के रूप में विख्यात हैं और परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के जत्थे को “रामादल” के नाम से पुकारा जाता है।

84 कोसीय परिक्रमा पथ के प्रमुख तीर्थस्थल

नैमिषराण्य तीर्थ के 84 कोसीय परिक्रमा पथ के प्रमुख तीर्थस्थलों में चक्रतीर्थ सरोवर, श्री सिद्धि विनायक धाम, व्यासपीठ, सूत गद्दी, मनु-सतरूपा तपस्थली, श्रीराम की अश्वमेघ यज्ञशाला, आदि गंगा गोमती घाट, हनुमान गढ़ी, पाण्डव किला, प्राचीन भूतेश्वर मन्दिर, हत्याहरण तीर्थ (ब्रह्म सरोवर),पंच प्रयाग, दशावतार मंदिर, मां ललितादेवी धाम और मिश्रिख का दधीचि कुंड हैं। इसके साथ ही ऋषियों, संतों व अवतारी सत्ताओं की इस पावन भूमि पर साधु-संतों व महंतों के सैकड़ों आश्रम हैं। बड़ी संख्या में जिनके अनुयायी इस परिक्रमा यात्रा में शामिल होने के लिए फाल्गुन मास में यहां जुटते हैं। इनमें ब्रह्मलीन स्वामी श्रीनारदानंद महाराज का आश्रम विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहां आज भी वैदिक युगीन प्राचीन आश्रम पद्धति से बच्चों को शिक्षा दी जाती है। पंचप्रयाग सरोवर के किनारे पुराणकालीन अक्षयवट नामक वृक्ष है। यहां का ललितादेवी धाम मां दुर्गा के 108 सिद्धपीठों में शुमार है। इसके साथ ही गोवर्धन महादेव, क्षेमकाया देवी, जानकी कुंड के साथ ही अन्नपूर्णा, धर्मराज मंदिर तथा विश्वनाथजी का भी मंदिर है जहां पिण्डदान भी होता है।

‘अष्टम बैकुंठ’ के नाम से विख्यात है सतयुगीन तीर्थ नैमिषारण्य

भारतवर्ष की पुण्यधरा पर पग-पग पर ऐसे दिव्य तीर्थ विद्यमान हैं जहां लोककल्याण की कामना से गहन तपसाधना करने वाले महान ऋषियों-मनीषियों की तप ऊर्जा के दिव्य स्पंदन आज भी सहज ही अनुभव किये जा सकते हैं। हमारी देवभूमि का ऐसा ही सतयुगीन तीर्थ है नैमिषारण्य। ‘अष्टम बैकुंठ’ के नाम से विख्यात इस सतयुगीन तीर्थ के महिमामंडन से हमारे पुराण ग्रंथ भरे पड़े हैं। यह पुण्य धरती सतयुग के महातपस्वी महर्षि दधीच के महाबलिदान की साक्षी रही है जिन्होंने जीते जी अपनी अस्थियों का दान कर मानवता के इतिहास की अमरगाथा रच दी थी। शास्त्र कहते हैं कि महर्षि दधीच की हड्डियों से निर्मित अस्त्र ‘वज्र’ के बल पर ही देवराज इंद्र वृत्तासुर नामक महाअसुर का अंत करने में सफल हुए थे। सतयुग में ही मनु-शतरूपा ने इसी भूमि पर हजारों वर्षों की कठोर तपस्या से जगत पालक भगवान विष्णु को प्रसन्न कर त्रेतायुग में उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त किया था, जिन्होंने इस पुण्यधरा पर अश्वमेध यज्ञ कर देवसंस्कृति दिग्विजय की महापताका लहरायी थी।

वहीं द्वापर में महर्षि वेद व्यास ने चारों वेदों का विस्तार कर यहीं पर 18 पुराणों की रचना की थी तथा बाल योगी शुकदेव जी ने यहीं पर राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया था। श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद कलियुग के प्रारंभ को लेकर चिंतित सारे साधु संतों ने सनक व शौनक ऋषियों के नेतृत्व में ब्रह्मा जी के पास जाकर धरती पर ज्ञानसत्र चलाने के लिए उनसे ऐसे उपयुक्त स्थान की व्यवस्था करने का निवेदन किया जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे। तब ब्रह्मा जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाते हुए उन ऋषियों से कहा कि उनके इस दिव्य अस्त्र की नेमि ( मध्य भाग) जिस स्थान पर स्वतः भूमिगत होगी; वही स्थल आपके प्रयोजन के सर्वाधिक उपयुक्त होगा। पुराणकार लिखते हैं कि श्री हरि के सुदर्शन चक्र की नेमि धरती के केंद्र की जिस पवित्र भूमि पर गिरी थी तब वह क्षेत्र सघन अरण्य (वन) से आच्छादित था। सुदर्शन चक्र की नेमि के प्रहार से पाताल से आदिगंगा की एक धारा फूट निकली और वहां एक जलकुंड निर्मित हो गया। सुदर्शन चक्र की ऊर्जा से अनुप्राणित 88 हजार ऋषियों की यह साधनाभूमि नैमिषारण्य नाम से लोकविख्यात हो गयी और वह जलकुंड चक्रतीर्थ के रूप में धरती का जागृत तीर्थ बन गया। कहा जाता है कि सत्यनारायण भगवान की कथा पहली बार यहीं कही गयी थी। ऐसे ही कई अन्य पौराणिक आख्यान इस तीर्थ की पुरातनता व महत्ता प्रतिपादित करते हैं।

Topics: नैमिष तीर्थ84 कोसीय फाल्गुन परिक्रमानैमिषारण्य तीर्थ
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

No Content Available

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

CM साय का आत्मनिर्भर बस्तर विजन, 75 लाख करोड़ की इकोनॉमी का लक्ष्य, बताया क्या है ‘3T मॉडल’

dr muhammad yunus

बांग्लादेश: मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में काउंसिल ने कहा-‘सुधार जरूरी!’, भड़काने वाले लोग विदेशी साजिशकर्ता

Defence deal among Israel And NIBE

रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग: NIB लिमिटेड को मिला इजरायल से ₹150 करोड़ का यूनिवर्सल रॉकेट लॉन्चर ऑर्डर

the Wire Omar Rashid Rape a women

‘द वायर’ के पत्रकार ओमर रशीद द्वारा बलात्कार का मामला और फिर एक बार सेक्युलर गैंग की अंतहीन चुप्पी

कार्रवाई की मांग को लेकर लोग एकत्र हुए

तिलक लगाकर आने पर मुस्लिम युवक ने हिंदू नेता को मारा चांटा, सर्व हिंदू समाज का जोरदार प्रदर्शन

By-elections

चार राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा, 19 जून को मतदान

प्रतीकात्मक तस्वीर

विश्व थायराइड दिवस: योगासन एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से थायरॉयड संतुलन

नीति आयोग बैठक : PM मोदी ने थामा विष्णुदेव साय का हाथ, बोले- ‘छत्तीसगढ़ की बात अभी बाकी है’

Virat Kohli And Anushka Sharma Hanumangarhi

पहले मथुरा और अब हनुमानगढ़ी पहुंच गए हैं विराट कोहली, पत्नी अनुष्का भी साथ

रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

“सुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर ना हों…’’ : सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies