हिमाचल प्रदेश और यूपी से लगी देवभूमि उत्तराखंड की जमीन पर मुस्लिम आबादी के अवैध कब्जे को लेकर आ रही सनसनीखेज खबरों के बीच मजार जिहाद की खबरें भी सामने आने लगी हैं। जानकारी के मुताबिक पछुवा देहरादून में 100 से ज्यादा मजारें और पौने दो सौ से अधिक मस्जिदें बन चुकी हैं।
उत्तराखंड में बढ़ती मुस्लिम आबादी के कारण हो रहे जनसंख्या असंतुलन की खबरें “पाञ्चजन्य” में लगातार प्रकाशित की जा रही हैं। पछुवा देहरादून में 900 से ज्यादा अवैध अतिक्रमण आसन बैराज से हिमाचल बॉर्डर तक सामने आए हैं, जिन्हें उत्तराखंड जल विद्युत परियोजना निगम द्वारा नोटिस दिए गए हैं, इनमें 714 मुस्लिम परिवार हैं।
अवैध मजारों की भरमार
पछुवा देहरादून में 100 से अधिक अवैध मजारे हैं। ढकरानी के बावड़ी आश्रम के पास भी मजार बना दी गई है। एक मजार शक्ति नहर के तिराहे किनारे पर बना दी गई है। ऐसे ही एक मजार धर्मा वाला से पोंटा रोड पर मधुबन होटल के सामने बना दी गई है। कुंजा की दाएं सड़क पर भी एक मजार रातोंरात बना दी गई है। धर्मा वाला से पोंटा रोड पर और शिमला बाईपास में दर्जनों मजारें सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करके बना दी गई हैं। ये मजारें पिछले 10-15 साल पुरानी हैं। कुछ तो पिछले दो-तीन सालों में बनी हैं। देवभूमि उत्तराखंड में मजार जिहाद इस कदर चल रहा है कि यहां सरकारी जमीनों पर करीब 1300 मजारें चिन्हित की गई हैं।
बिना अनुमति नहीं कर सकते निर्माण
दिलचस्प बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में आदेश दिया था कि बिना अनुमति के कोई भी नए धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं किया जा सकता। सरकार की जमीन पर तो बिलकुल भी नए निर्माण अथवा पुराने निर्माण के विस्तार की इजाजत नहीं दी जाएगी। बावजूद इसके मजार जिहाद ने उत्तराखंड देवभूमि को अपने षड्यंत्र का शिकार बना लिया है। देहरादून जिला प्रशासन इस मुद्दे पर खामोशी की चादर ओढ़े हुए है, जबकि ये सबकुछ राजधानी में उत्तराखंड शासन की नाक के नीचे होता रहा है।
सीएम धामी ने तुरंत हटाने का दिया था निर्देश
पिछले दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आईएफएस सम्मेलन में अवैध रूप से बनी मजारों को तुरंत हटाने की बात कही थी। वन विभाग ने कुछ एक्शन लिया भी किंतु लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग और जल विद्युत विभाग इस मामले में मौन धारण किए हुए है। नतीजा ये हो रहा है कि यहां यूपी, बिहार से आकर मुस्लिम अवैध रूप से बस भी रहे हैं और मजार जिहाद भी चला रहे हैं। ये देवभूमि के जनसंख्या असंतुलन का कारण भी बन रहे हैं और पड़ोसी राज्य हिमाचल के लिए सिर दर्द बन रहे हैं।
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