सनातन धर्म में भगवान भोलेनाथ शिव शंकर और आदिशक्ति जगजननी माँ पार्वती को सृष्टि का महानतम युगल माना जाता है। वैदिक दर्शन कहता है कि ‘शिव’ और ‘शक्ति’ पृथक नहीं अपितु एक ही हैं। शक्ति के बिना “शिव” सिर्फ शव हैं और शिव यानी कल्याण भाव के बिना शक्ति विध्वंसक। सृष्टि संतुलन के इसी वैदिक दर्शन को हृदयंगम कर शिव-शक्ति की कृपा प्राप्त करने का सर्वाधिक फलदायी सुअवसर है फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि पर्व। शास्त्रीय मान्यता है कि इसी शुभ दिन भगवान भोलेनाथ और जगजननी माँ पार्वती दाम्पत्य जीवन के पवित्र सूत्र में आबद्ध हुए थे। जानना दिलचस्प हो कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के युग प्राचीन त्रियुगीनारायण तीर्थ में महादेव शिव तथा माता पार्वती के मंगल परिणय के अनेक प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
शिव महापुराण में वर्णित कथानक के अनुसार रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी और सोन-गंगा नदियों के संगम पर स्थित भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के त्रियुगीनारायण के पौराणिक कालीन मंदिर तीर्थ में हुए इस पावन विवाहोत्सव में जगत पालक श्री हरि भगवान विष्णु ने स्वयं पार्वती के भाई की भूमिका निभाते हुए सभी वैवाहिक लोकाचारों को निभाया था। यही नहीं, सृष्टि के इस सबसे अनोखे विवाह में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने पुरोहित का धर्म निभाते हुए हवन कुण्ड के चारों ओर वर -वघू के फेरे डलवाये थे और सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों व संतगणों ने इस अद्भुत विवाह का साक्षी बनकर नवयुगल को मंगल शुभाशीष भी दिया था।
मॉरीशस में महाशिवरात्रि का महापर्व : महाशिवरात्रि पर छोटा भारत बन जाती है छोटी काशी
त्रियुगीनारायण मंदिर तीर्थ के पुरोहित बताते हैं कि मंदिर परिसर स्थित ब्रह्मशिला को इस दिव्य विवाह का वास्तविक स्थल माना जाता है। यहीं पर पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर शिव-पार्वती एक दूसरे के साथ दाम्पत्य सूत्र में बंधे थे। इसी ब्रह्मशिला के निकट आज भी वह प्रस्तर स्तंभ है जिसमें भगवान शिव को उनके विवाह में उपहार स्वरूप दी जाने वाली गोमाता को बांधा गया था। इस तीर्थ की विशिष्टता यहां के चार जलकुंड-विष्णु कुंड, सरस्वती कुंड, ब्रह्मकुंड और रुद्र कुंड और पुराकाल से सतत प्रज्ज्वलित हवनकुंड है।
शास्त्रीय कथानक कहते हैं कि माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह में माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाने वाले भगवान विष्णु ने विवाह संस्कार में शामिल होने से पहले ‘विष्णु कुंड’ में स्नान किया था। वहीं विवाह में मुख्य पुरोहित की भूमिका निभाने से पूर्व ब्रह्माजी ने ब्रह्मकुंड में स्नान किया था जबकि इस विवाह में सम्मलित होने आये सभी देवी-देवताओं ने रुद्रकुंड में डुबकी लगायी थी। मान्यता है कि इन चारों कुंडों में सर्वप्रथम यहां के सरस्वती कुंड का निर्माण भगवान विष्णु की नासिका से निकले जल से हुआ था और उसी के जल से शेष तीनों कुंडों में जल भरा था।
गौरतलब हो कि त्रियुगीनारयण मंदिर तीर्थ का अग्नि कुंड आदिकाल से सतत प्रज्वलित है। इस हवन कुंड के चारों ओर भगवान शिव व माता पार्वती ने सात फेरे लिये थे। इस हवन कुंड में प्रसाद के रूप में लकड़ियां चढ़ायी जाती हैं और लोग इस हवन कुंड की राख अपने घर लेकर जाते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि ऐसा करने से भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से वैवाहिक जीवन मंगलमय बना रहता है। वर्तमान समय में मंदिर परिसर में स्थित रुद्रकुण्ड में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रह्मकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में तर्पण किया जाता है।
टिप्पणियाँ