सविता तिवारी
“शिवरात्री का पर्व जो आता मेरा तट काशी हो जाता”। मॉरीशस के गंगा तालाब के लिए लिखी गई कवि की यह पंक्तियाँ प्रमाण है कि पाँच हज़ार किलोमीटर का हिंद महासागर, भारत और मॉरीशस को अलग नहीं करता बल्कि जोड़ता है। मॉरीशस वासी समुद्र किनारे पहुंचकर गंगा स्नान मना लेते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि गंगा जल की कुछ बुंदे हिंद महासागर से होते हुए मॉरीशस के तटों तक अवश्य पहुंचती होंगी। इसी तरह हर वर्ष गंगोत्री का जल लाकर मॉरीशस के गंगा तालाब में मिलाया जाता है और शुरू हो जाता है भारत से दूर इस छोटे से टापू देश में एक सप्ताह तक चलने वाला महा-शिवरात्रि का महापर्व। इस विश्वास के साथ कि जिस माँ गंगा के तीव्र वेग को कम करने के लिए स्वयं महादेव को उन्हें अपनी जटाओं में धारण करना पड़ा था वही माँ गंगा भारत से सुदूर इस टापू पर भारत वंशियों की संतानों के संतापों को मिटाने के लिए गंगा तालाब में विराम लेती हैं।
13 लाख की आबादी वाले इस देश मॉरीशस का एक मात्र हिंदू तीर्थ स्थल है गंगा तालाब, जहां शिवरात्रि पर मॉरीशस भर से लगभग 9 लाख भक्त पहुंचते हैं। जिस प्रकार भारतीय होली, दिवाली आदि त्योहारों पर अपने गाँवों की ओर लौटते हैं उसी प्रकार विदेशों में रह रहे मॉरीशन, महा-शिवरात्रि पर मॉरीशस लौटने की सोचते हैं। बचपन से काँवर बनाते और पद यात्रा करते बड़े हुए मॉरीशन हिंदू का मन महाशिवरात्रि पर दुनिया के किसी कोने में नहीं लगता।
महाशिवरात्रि से एक माह पूर्व ही यहां काँवर बनने तैयार हो जाते हैं। इसके लिए युवा समूह बनाकर अपने आस पास के शिवालय में जमा होते हैं। काँवर की डिज़ाइन और खर्च पर चर्चा करने के बाद चंदा इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद जंगलों से बांस तोड़कर लाए जाते हैं। इन्हीं बांस से काँवर का ढाँचा तैयार होता है। फिर उसे सजाया जाता है। इस पूरे माह के दौरान काँवर बनाने वाले युवा मांसाहार से दूर रहते हैं। महा-शिवरात्रि से सप्ताहभर पहले शिवालय में पूरा गाँव एक साथ जमा होकर, ग्राम देवी की पूजा करते हैं और कांवर को गंगा तालाब के लिए विदा करते हैं। हर काँवर के साथ लगभग 30-40 लोग जाते हैं। इस एक सप्ताह के दौरान कम से कम दो-तीन हज़ार काँवर गंगा तालाब पहुँचती है। किसी शिवालय से गंगा तालाब 20 किलोमीटर दूर होता है तो किसी शिवालय से 80 किलोमीटर, लेकिन इन महादेव की भक्ति में घर से निकलने वाले कांवड़ियों के लिए माँ अन्नपूर्णा अपने भंडार खोल देती हैं। पूरे टापू भर में कांवड़ियों के लिए विश्राम स्थल बने होते हैं, जहां उन्हें मान मनुहार के साथ चाय-जूस, भोजन की मुफ़्त व्यवस्था होती है। खाते-पीते भजन गाते कब यह 20 और 80 किलोमीटर का सफ़र तय हो जाता है पता ही नहीं चलता और यात्रा पहुँच जाती है छोटी सी 1800 फुट की पहाड़ी पर बसे छोटे से तालाब के किनारे, जहां स्वयं 108 फ़ीट के मंगल महादेव और 108 फ़ीट की ही माँ जगदम्बा उनका स्वागत करते हैं। मंगल महादेव की प्रतिमा वर्ष 2007 में बनकर तैयार हुई थी। वहीं माँ जगदम्बा की प्रतिमा 2017 में बनकर तैयार हुई। दोनों ही प्रतिमाएँ भारतीय शिल्पियों द्वारा बनाई गई। यह दोनों प्रतिमाएँ मॉरीशन हिन्दुओं की आस्था की ऊँचाइयाँ बताती हैं।
थके हारे जब कावडिएं गंगा तालाब पहुँचते हैं तो वहाँ हर काँवर का हर हर महादेव की गुंज के साथ स्वागत होता है। इसके लिए कांवड़ियों के परिवार वाले काँवर से पहले ही गंगा तालाब पहुँच जाते हैं। इन जयघोष को सुनकर वैसे ही थकान ग़ायब हो जाती है और बची हुई थकान उतारने के लिए जगह-जगह सरकार की ओर से मेडिकल पोस्ट होते हैं जो आपको पैर दर्द, सिर दर्द से लेकर मोच और पैरों की मालिश तक की सुविधा प्रदान करते हैं।
तालाब के पास ही पहाड़ी पर स्थित है बजरंग बली का मंदिर। इतनी थकान के बाद भी 108 सीढ़ियाँ चढ़कर सभी भक्त बजरंग बली के दर्शन अवश्य करते हैं। इस सुंदर से मंदिर के निर्माण का श्रेय जाता है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी को। वे जब मॉरीशस आए थे तब वे गंगा तालाब दर्शन करने गए थे। इस पहाड़ी को देखकर उन्हें विचार आया कि इस पर एक मंदिर होना चाहिए और वहाँ उपस्थित सभी ने इस विचार का स्वागत किया। कुछ वर्षों के भीतर पहाड़ी पर मंदिर का एवं मंदिर तक पहुँचने के लिए 108 सीढ़ियों का निर्माण किया गया। अटल जी ने स्वयं भारत से इस हनुमान मंदिर के लिए प्रतिमा की व्यवस्था की थी। आज गंगा तालाब जाने वाला हर भक्त उपर पहाड़ी पर जाकर हनुमान जी के मंदिर में दर्शन अवश्य करता है। वहाँ उंचाई से पूरे गंगा तालाब का दृष्य अत्यंत रमणीय होता है।
सपरिवार पूजन करने के बाद सभी जल भरकर अपने अपने घर लौट आते हैं। इस जल से अब महा-शिवरात्रि के दिन अपने गाँव के शिवालय में शिव अभिषेक किया जाता है। मॉरीशस में कम से कम 400 शिवालय हैं और हर शिवालय में महा-शिवरात्रि की रात चार पहर की पूजा का आयोजन होता है। शाम 6 बजे से शुरू होने वाली यह पूजा अगले दिन सुबह 5 बजे हवन और पूर्णाहुति के साथ पूर्ण होती है, तो इस तरह मनाया जाता है मॉरीशस में महा-शिवरात्रि का त्योहार। मासिक-शिवरात्रि धूमधाम से मनाने वाला यह देश महा-शिवरात्रि कैसे मनाता होगा शब्दों में इसका केवल अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। मॉरीशस को छोटा भारत कहा जाता है पर महा-शिवरात्रि पर मॉरीशस छोटी काशी में बदल जाता है, जहां की हर सड़क, हर गली, हर कण शिवमय होता है।
मॉरीशस में महाशिवरात्रि का इतिहास-
मॉरीशस में इस महापर्व की शुरुआत 11 लोगों से सवा सौ वर्ष पहले हुई थी। बात वर्ष 1898 की है, मॉरीशस के उत्तर में स्थित त्रियोले गाँव के पंडित श्री झम्मन गिरी गौसाईं जी को एक स्वप्न आया, जिसमें उन्हें एक तालाब दिखाई दिया। स्वप्न में महादेव उन्हें मॉरीशस के दक्षिण में स्थित इस तालाब किनारे शिवलिंग स्थापना के लिए प्रेरित कर रहे थे, लेकिन पंडित जी ने वह तालाब कभी नहीं देखा था। तो अगले दिन पंचायत में पंडित जी ने यह स्वप्न वाली बात सभी के सामने रखी। सभा में उपस्थित किसी ने भी ऐसे किसी तालाब के बारे में नहीं सुना था। सभी एकमत से उस तालाब की खोज के लिए राज़ी हुए, फिर एक अच्छा मुहूर्त देखकर पंडित सम्मन गिरी गौसाईं जी अगुआई में 11 लोगों ने मॉरीशस के उत्तर से तालाब की खोज की यात्रा शुरू की और कहते हैं लगभग एक महीने की यात्रा के बाद झम्मन गिरी जी और उनकी टोली को उनके स्वप्न वाला तालाब मिल ही गया। वहाँ बड़े प्रेम और सीमित साधनों से शिवलिंग की स्थापना की गई और तालाब का नाम रखा गया परी-तालाब। क्योंकि यह स्थान इतना सुंदर हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि वहां परियां वास करती रही हैं। हरी भरी पहाड़ी पर प्रकृति के बीच बसा सुंदर सा तालाब, जहां हर समय मंद-मंद हवा और सफ़ेद धुँध बहती रहती है। परी-तालाब की खोज के साथ ही शुरू हुआ महा-शिवरात्रि पर पद यात्रा का क्रम जो आज तक निरंतर जारी है. वर्ष 1972 में तात्कालिक प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम ने भारत के गोमुख से गंगा जल लाकर पूरी विधि-विधान से इसे परी तालाब के पानी में मिलाया गया और तब से परी-तालाब का नाम बदलकर रख दिया गया गंगा तालाब। नाम चाहे जो भी हो आज मॉरीशन हिंदुओं के लिए यही स्थान काशी है और यही कैलाश।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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