वाराणसी। विश्व संवाद केंद्र की ओर से रूद्राक्ष इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर सिगरा में तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव शुभारंभ हुआ। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर भी शामिल हुए। प्रथम दिन कुल पांच चर्चा सत्र आयोजित हुए। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने संबोधित करते हुए कहा कि शब्द ही भारत की आत्मा और संस्कृति को परिभाषित करता है। भारत जितना शक्तिशाली होगा, दुनिया को मानवता को उसका लाभ मिलेगा। शारीरिक शक्ति से पैदा की गई भौतिक शक्ति की एक्सपायरी डेट होती है। लेकिन शब्दों की शक्ति से जो उत्पन्न होता है, उसका क्षरण नहीं होता है। महाभारत काल में दानवों ने पांडवों के लिए जो इंद्रप्रस्थ बनाया था, वो लुप्त हो गया। लेकिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का जो उपदेश दिया था, वो आज भी जीवित है।
गीतकार मनोज मुंतशिर ने कहा कि कलाकारों की सूची भारत मे बनेगी तो आधे बनारसी ही निकलेंगे। इतिहास में तो पढ़ा दिया गया कि कुतुब मीनार, ताजमहल किसने बनवाया। लेकिन यह नहीं पढ़ाया गया कि काशी और मथुरा को किसने तहस-नहस किया। सोमनाथ का मंदिर किसने तोड़ा। कश्मीर के लालचौक में अभी झंडा फहराया गया। कश्मीर अब इतना सुरक्षित हो गया है कि कोई भी जाकर झंडा फहरा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक संदीप सिंह ने कहा कि मठ-मंदिर ने भारत को एकता के सूत्र में जोड़ा है। मंदिर को टेम्पल कहना उचित नहीं है यह पश्चिमी कुप्रभाव के कारण हुआ है। मठ-मंदिर का देश की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान हैं। भारत के मठ-मंदिरों में प्रतिदिन करोड़ो लोग भोजन करके जीवनयापन करते हैं।
प्रो संजीव शर्मा ने कहा कि हम जिस अमृत काल में हैं वहां हम संप्रेषक हो सकते हैं। दुनिया में जब लोगों को प्रकृति को देखने की निरर्थकता सिद्ध हो गयी। तब लोग भारत की दृष्टि से देखने को बाध्य हो जाते हैं। इस कड़ी में प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि शब्दोत्सव विचारों का उत्सव है, वस्तु जगत को बदलने का साधन नहीं है।
विशिष्ट वक्ता प्रो. नीरा मिश्रा ने कहा कि आज जो भ्रम पैदा हुआ है, उसे दूर करने के लिए हमें अपने भ्रम को जानने का प्रयास करना चाहिए। हमें श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन से जोड़कर महाभारत को जीना चाहिए। हमें अपने इतिहास को जानना चाहिये, नही तो लोग भ्रम फैलाएगे। हमें आध्यात्म के साथ जो ज्ञान है उसका सही मायने में प्रयोग करे। गीता कर्म प्रधान ग्रंथ है। हमें गीता से कर्मयोग का ज्ञान सीखना चाहिए।
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