हरियाणा के फरीदबाद में स्वदेशी स्टोर चलाने वाले नरेंद्र के स्टोर पर पिछले कुछ समय से आटे के साथ-साथ मोटे अनाजों की मांग लगातार बढ़ रही है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों को मोटे अनाजों खासकर रागी, ज्वार बाजार की उपयोगिता का दोबारा अहसास होने लगा है। मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र सरकार 2023 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मना रही है। भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ घोषित किया है। इसलिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में जब ‘श्री अन्न’ यानी मोटे अनाजों का जिक्र किया तो यह एक ही तीर से कई निशाना साधने जैसा था।
मोटा अनाज सबके लिए वरदान
एक समय था, जब देश में शहरी दुकानों से मोटे अनाज लगभग गायब हो गए थे। लेकिन अब दिल्ली-एनसीआर से लेकर दूसरे बड़े शहरों के स्थानीय बाजारों के साथ निर्यात बाजार में भी देसी मोटे अनाज दिखने लगे हैं। आनलाइन मंचों पर भी श्री अन्न यानी मोटे अनाजों की मांग लगातार बढ़ रही है। जहां पहले लोग केवल गेहूं के उत्पाद ही प्रयोग कर रहे थे, वहां अब वे रागी, ज्वार, बाजरा और कुटकी जैसे मोटे अनाज के उत्पाद भी प्रयोग करने लगे हैं। मोटे अनाज के उत्पादों की मांग को देखते हुए कई रेस्तरां भी इसकी रोटियां या फिर अन्य खाद्य पदार्थ बनाने लगे हैं। देश के प्रसिद्ध रेस्तरां ‘चेन सागर रत्ना’ की आपूर्ति शृंखला देखने वाले सुनील अचन बताते हैं कि ढेरों ग्राहक रागी या दूसरे मोटे अनाजों से बने डोसा या इडली की मांग करते हैं। इसे देखते हुए हम भी जल्द ही अपने रेस्तरां मे ‘मिलेट डोसा’ शुरू करने जा रहे हैं।
भारत में मोटे अनाजों का प्रयोग बढ़ने से न केवल किसानों को फायदा होगा, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत लाभदायक होगा। दरअसल, गेंहू में कार्बोहाइड्रेट और शर्करा की मात्रा बहुत अधिक होती है। भारत में हरित क्रांति के बाद से ही उच्च रक्तचाप और मधुमेह के मरीजों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। अधिकांश चिकित्सक इसके लिए गेंहू के अधिक प्रयोग को जिम्मेदार ठहराते हैं और विकल्प के तौर पर मोटे अनाज के प्रयोग की सलाह देते हैं। गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से भारत के मोटे अनाज दुनियाभर में लोकप्रिय हैं। भारत दुनिया का प्रमुख मोटा अनाज निर्यातक देश है। अमेरिका, यूरोपीय देशों के अलावा रूस और यूक्रेन भारी मात्रा में भारत से मोटे अनाज का आयात करते हैं।
आनलाइन मंचों पर भी श्री अन्न यानी मोटे अनाजों की मांग लगातार बढ़ रही है। जहां पहले लोग केवल गेहूं के उत्पाद ही प्रयोग कर रहे थे, वहां अब वे रागी, ज्वार, बाजरा और कुटकी जैसे मोटे अनाज के उत्पाद भी प्रयोग करने लगे हैं। मोटे अनाज के उत्पादों की मांग को देखते हुए कई रेस्तरां भी इसकी रोटियां या फिर अन्य खाद्य पदार्थ बनाने लगे हैं। देश के प्रसिद्ध रेस्तरां ‘चेन सागर रत्ना’ की आपूर्ति शृंखला देखने वाले सुनील अचन बताते हैं कि ढेरों ग्राहक रागी या दूसरे मोटे अनाजों से बने डोसा या इडली की मांग करते हैं।
यही वजह है कि भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष मोटा अनाज वर्ष घोषित करने का प्रस्ताव रखा था, जिसका 72 देशों ने समर्थन किया था। इसके बाद ही संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया। मोटे अनाज के उत्पादों की मांग को देखते हुए भारत सरकार ने इसके निर्यात के लिए एपिडा को तेजी से काम करने के लिए कहा था। इसके बाद से लगातार मोटे अनाज के उत्पादों को निर्यात किया जा रहा है। भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोटा अनाज निर्यातक देश बन गया है। गेंहू और अन्य फसलों के मुकाबले किसानों को मोटे अनाज के उत्पादों की अच्छी कीमत मिलती है, इसलिए वे इसकी खेती पर ध्यान दे रहे हैं।
कृषि-किसानों को प्राथमिकता
भारत में किसान नकदी खेती करना चाहते हैं, लेकिन गेंहू, चावल और अन्य परंपरागत खेती के प्रति मोह और नकदी खेती के बारे में जानकारी का अभाव उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है। इन्हीं कारणों से सरकार कृषि के प्रति गंभीर है। बीते वर्षों की तरह इस बार भी वित्त मंत्री ने किसानों और कृषि के लिए कई कई घोषणाएं की हैं, जो खेती से जुड़ी समस्याओं से निबटने में मदद करेंगी। इस बजट में जहां किसानों के लिए डिजिटल ढांचा बनाने की घोषणा की गई है, वहीं कृषि क्षेत्र में नए-नए स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहित करने हेतु नई निधि बनाने की भी व्यवस्था की गई है, जो कृषि और किसानों को स्टार्टअप शुरू करने के लिए आर्थिक मदद करेगी।
किसान पत्रकार आर. एस. राणा के मुताबिक, किसान नई तकनीक को अपनाने के लिए तैयार तो रहता है, लेकिन पहल करने से बचता है। कम से कम उत्तर भारत के किसानों का स्वभाव तो यही है। इसलिए यह जरूरी है कि नए स्टार्टअप किसानों के बीच ही संचालित हों, तभी यह योजना सफल होगी। सरकार ने किसानों और कृषि के लिए दिए जाने वाले कर्ज की राशि में भारी बढ़ोतरी की है। पिछले साल यह राशि 16.50 लाख करोड़ रुपये थी, जिसे इस साल बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये किया गया है।
तकनीक और निवेश
कृषि क्षेत्र में नए निवेश की समस्या पर लंबे समय से बात की जा रही है। लेकिन हरित क्रांति के बाद भी अब तक इस क्षेत्र में नए निवेश का माहौल नहीं बन पाया था। केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कृषि कानूनों में बदलाव भी किया था, लेकिन राजनीतिक दलों के बहकावे में आकर पंजाब-हरियाणा के किसानों ने सरकार का भारी विरोध किया और दबाव में सरकार को कानून रद्द करने पड़े। इस बार बजट में इस समस्या को दूर करने की कोशिश की गई है।
हजारों साल पुरानी पारंपरिक खेती को बचाने व बढ़ाने के लिए सरकार प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है। इसके लिए बजट में 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इससे वैकल्पिक खाद का बंदोबस्त किया जाना है, जो देश में जैविक कचरे से बनाई जाएगी। इसके लिए पूरे देश में 500 ‘वेस्ट टू एनर्जी प्लांट’ लगाए जाएंगे। इनमें कचरे से खाद के साथ बिजली भी बनाई जाएगी। इसका इस्तेमाल प्राकृतिक खेती में किया जाएगा। मतलब आम के आम और गुठलियों के दाम।
बजट में कृषि को तकनीक से जोड़ने की कोशिश की गई है, ताकि नए स्टार्टअप के माध्यम से खेती में तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमता के प्रयोग के लिए नए निवेश का मार्ग खुल सके। इससे न केवल किसानों को लाभ होगा, बल्कि भारत कृषि क्षेत्र में दुनिया में नए मानक स्थापित कर सकता है। इसके लिए बजट में ‘एग्रीकल्चर एक्सलेरेटेड फंड’ (कृषि त्वरक निधि) बनाने का प्रस्ताव किया गया है। इससे किसानों को नई खेती और उपज को सीधे बाजार से जोड़ने में मदद मिलेगी।
यदि सरकार की यह योजना कारगर रही तो किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलेगा और एमएसपी पर उनकी निर्भरता भी खत्म होगी। साथ ही, किसानों को बाजार की मांग के बारे में पहले से जानकारी रहेगी, जिससे वे मांग के अनुरूप फसल उपजाएंगे। तकनीक के जरिए फसलों और उपज की सही स्थिति का पता लगाने के लिए सरकार एक समर्पित उपग्रह की मदद लेगी। यदि कृषि क्षेत्र में वित्त की समस्याएं दूर हो जाएं और नया निवेश आना शुरू हो जाए तो यह क्षेत्र भारत समेत पूरी दुनिया के विकास के इंजन के तौर पर काम कर सकता है।
प्राकृतिक खेती पर जोर
रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से देश में हर साल करोड़ों लोग बीमार हो रहे हैं। सरकार भी यूरिया, डीएपी पर करोड़ों रुपये की सब्सिडी दे रही है। इस दोहरी मार से बचने, हजारों साल पुरानी पारंपरिक खेती को बचाने व बढ़ाने के लिए सरकार प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है। इसके लिए बजट में 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इससे वैकल्पिक खाद का बंदोबस्त किया जाना है, जो देश में जैविक कचरे से बनाई जाएगी। इसके लिए पूरे देश में 500 ‘वेस्ट टू एनर्जी प्लांट’ लगाए जाएंगे। इनमें कचरे से खाद के साथ बिजली भी बनाई जाएगी। इसका इस्तेमाल प्राकृतिक खेती में किया जाएगा। मतलब आम के आम और गुठलियों के दाम।
बजट में फसल पड़ने वाली पर मौसम की मार से किसानों को होने वाले नुकसान और समस्याओं पर भी ध्यान दिया गया है। इसके लिए फसल बीमा का दायरा बढ़ाया गया है। भारत बड़ा मत्स्य निर्यातक देश नहीं बन सका, क्योंकि मछुआरों की उपेक्षा की गई। इस बार बजट में सरकार ने मछली पालन, मछुआरों, छोटे मछली कारोबारियों और कंपनियों के लिए 6,000 करोड़ रुपये का विशेष प्रावधान किया है। इससे मछली पालने और पकड़ने वालों को प्रशिक्षण, नए उपकरण और बाजार उपलब्ध कराया जाएगा।
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