स्कूली छात्रों को कपड़े, जूते-मौजे, किताब, कॉपी अन्य सामग्री देने के बजाय पैसे देने के फैसले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को आड़े हाथ लिया। न्यायालय ने दिल्ली सरकार से पूछा कि छात्रों को पैसे के भुगतान के बजाय कपड़े, जूते-मौजे, किताब, कॉपी अन्य सामग्री देने के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया?
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ स्कूलों में कमजोर वर्ग और वंचित समूहों के छात्रों को इन संसाधनों की आपूर्ति और मुफ्त अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्राविधानों के अनुपालन से संबंधित याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि आखिर छात्रों को यह सामग्री मुहैया कराने में परेशानी क्या है? पीठ ने दिल्ली सरकार से पूछा कि उसने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों को मुफ्त किताबें और स्कूली ड्रेस देने के उसके पहले के आदेश का पालन कथित तौर पर क्यों नहीं किया।
पीठ ने कहा- जब अदालत पहले ही दिल्ली सरकार को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्रों को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें, स्कूली ड्रेस और लेखन सामग्री की आपूर्ति करने का निर्देश दिया है, तो इस आदेश का अनुपालन क्यों नहीं किया गया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि ऐसी स्थिति पूरी तरह से अस्वीकार्य है। अदालत ने इसके लिए नया हलफनामा दायर करने के निर्देश भी जारी किए। अदालत के सख्त रुख के बाद दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि वह इस मामले में जवाब दाखिल करेंगे।
बता दें कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त 2014 में अपने आदेश में कहा था कि यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार और स्कूलों का कर्तव्य है कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बच्चों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, स्कूली ड्रेस आदि उपलब्ध कराया जाए। तब पाया गया था कि सत्र 2014-15 में निजी स्कूलों में पढ़ने वाले कुल 68,951 ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बच्चों में से लगभग 51,000 के पास नि:शुल्क पाठ्यपुस्तकें और यूनिफॉर्म नहीं थे।
हाईकोर्ट का उक्त आदेश ऐसे समय पर आया है जब दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने के मसले पर केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल में खींचतान देखी जा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस मसले को लेकर केंद्र पर लगातार हमले बोल रहे हैं। साथ ही दिल्ली सरकार सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था के चुस्त दुरुस्त होने का दावा कर रही है।
टिप्पणियाँ