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होम भारत

सुनहरे भविष्य वाला चमकता सितारा भारत

मोदी शासन के जिम्मेदारी भरे बजट ने समावेशी आर्थिक समृद्धि और वैश्विक महत्वाकांक्षा के साथ उस ‘नए भारत’ की नींव रखी है, जो अपनी स्वाधीनता के सौवें वर्ष में साकार होगा। यह बजट ‘अमृत काल’ को सबसे अच्छे ढंग से रेखांकित करता है।

by के.ए. बद्रीनाथ
Feb 7, 2023, 12:39 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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के.ए. बदरीनाथ

इस बजट की विषयवस्तु और भावना कुछ हद तक परंपरावादी है, लेकिन 2023-24 के बजट में भारत को विश्व स्तर पर बड़े खिलाड़ियों की कतार में ले जाने की भव्य दृष्टि निहित है। यह बजट 2047 के भारत की नींव रखता है। उस समय तक भारत एक ऐसी स्वतंत्र, समावेशी और विकसित अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित होना चाहेगा, जो टिकाऊ भी हो। उस शताब्दी वर्ष की दृष्टि से 45 लाख करोड़ रुपये का यह बजट ‘अमृत काल’ को सबसे अच्छे ढंग से रेखांकित करता है। माने अभी हमारे पास वहां तक पहुंचने और उतना बड़ा होने के लिए 25 वर्ष का अंतराल है।

विजन 2047
वास्तव में, राष्ट्रपति के अभिभाषण और बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण, दोनों में भारत के शताब्दी वर्ष वाली रेखा देखी जा सकती है। 2047 के लिए जो भव्य दृष्टि प्रस्तुत की गई है, उनमें महिला सशक्तीकरण, हमारे विशाल मानव संसाधन का कौशल विकास, पर्यटन उद्योग का विस्तार और हरित विकास के क्षेत्रों को शामिल किया गया है। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा निर्धारित सात प्राथमिकताएं भारत के आर्थिक और विकास प्रतिमान को नए सिरे से आकार देने का संकेत करती हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन प्राथमिकताओं को, इस देश को सहस्राब्दियों तक निर्देशित करने वाले ‘सप्तऋषियों’ का नाम देकर बजट को एक सभ्यतागत जुड़ाव दिया है। इस सरकार के दस बजटों में से लगातार पांच बजट प्रस्तुत करके सीतारमण अब एक अनुभवी बजटकार हैं। इसके बावजूद उनकी दृष्टि लगातार व्यापक, वृहद् आर्थिक मूलभूत तत्वों पर बनी रही। उन्होंने सारे अनुभव के बावजूद बहुत सतर्कता से काम लिया और राजकोषीय मजबूती को बनाए रखने पर ध्यान दिया। उन्होंने किसी और सरकार की तरह चुनावी वर्ष में ‘लापरवाही से खर्च’ या भारी-भरकम अपव्यय करने का आसान विकल्प नहीं अपनाया।

नियंत्रण में घाटा
विशेष रूप से उस वर्ष में, जब विश्व स्तर पर अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं या तो मंदी की ओर बढ़ रही हैं या भारी घाटे का सामना कर रही हैं, तब भारत ने हर दृष्टि से बहुत समझदारी का परिचय दिया है। आप देख सकते हैं कि भारत में घाटा नियंत्रण में है। अगले वित्त वर्ष में इसे घटाकर 6.4 प्रतिशत और 2025-26 तक 4.5 प्रतिशत करने की उम्मीद रखना पूरी तरह व्यावहारिक है। सरकार की आकांक्षा 2023-24 में हरित वृद्धि दर को 6-6.5 प्रतिशत पर बनाए रखना है, जो नौकरियां सृजित करने वाली हो। इसी प्रकार, मध्यम अवधि में वृद्धि दर को दहाई के अंकों तक ले जाना है। इस वित्त वर्ष की 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर इस दृष्टि से एक आदर्श शुरुआत हे। चालू वित्त वर्ष में भी सरकार कर राजस्व के बूते घाटे को 6.4 प्रतिशत तक सीमित रखने में सफल रही है, जबकि खर्च को बढ़ाकर 41.9 लाख करोड़ रुपये कर सकी है।

रोजगार मेला
वैश्विक दृष्टिकोण और राजकोषीय समझदारी पर खरा उतरने का मतलब यह नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी या वित्त मंत्री सीतारमण 2024 में लोकसभा चुनाव या इससे पहले इस वर्ष होने वाले सात राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले सही संदेश देने से चूक गए हों। निर्मला सीतारमण ने नौकरियों और पर्यावरणीय रूप से सतत विकास की व्याख्या ‘रोजगार मेलों’ की पृष्ठभूमि में व्यक्त की, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी पिछले छह महीनों से चलाते आ रहे हैं और जिनमें पहली बार काम करने वाले हजारों लोगों को नियुक्ति पत्र दे रहे हैं। पहले से चली आ रही योजनाओं को जारी रखते हुए, इस बजट में नई नौकरियों और महत्वाकांक्षी युवाओं को नौकरी के बाजार में लाने के लिए स्थितियां बनाने पर जोर दिया गया है।

वहीं, मध्यवर्गीय करदाताओं, विशेष रूप से ईमानदार करदाताओं को, कर रियायतों, छूट और छूट की सीमा में बदलाव के जरिए इस बार बड़ा उपहार प्राप्त हुआ है। इस प्रक्रिया में निर्मला सीतारमण को 35,000 करोड़ रुपये के राजस्व से हाथ धोना पड़ा। लेकिन यह इस कारण संभव हो सका है, क्योंकि कर संग्रह में उछाल आ चुकी थी। विशेष रूप से व्यक्तिगत आयकर, कॉरपोरेट कर, वस्तु एवं सेवा कर संग्रह में, जो अकेले ही हर महीने 1.5 लाख करोड़ रुपये रहा है। आर्थिक प्रबंधन की दृष्टि से भी मध्यवर्गीय करदाताओं को मिली इस राहत से सभी वस्तुओं और सेवाओं की मांग को बढ़ावा मिलेगा। इसके बावजूद तमाम राजनीतिक विपक्ष द्वारा सरकार के वर्तमान कार्यकाल के अंतिम पूर्ण बजट को ‘चुनाव उन्मुख’ बताकर आलोचना करना स्वाभाविक ही था। यह सुर इस कारण और तेज हुआ, क्योंकि मोदी सरकार ने दिल्ली और पंजाब की सरकार द्वारा चलाए जा रहे मुफ्त उपहारों की ‘रेवड़ी’ संस्कृति का खुला विरोध किया है।

रिपोर्ट कार्ड
राजनीतिक संदेश की दृष्टि से बजट भाषण की शुरुआती पंक्ति ही बहुत शक्तिशाली थी। इसमें युवाओं, महिलाओं, किसानों, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को भारत की अर्थव्यवस्था को ‘समावेशी’, खुली और समृद्ध बनाने के लिए साफ तौर पर लक्षित किया गया था। बजट में सरकार ने अपने नौ वर्ष के शासन का रिपोर्ट कार्ड भी पेश किया है। 11.7 करोड़ घरों में शौचालय, 9.6 करोड़ रसोई गैस कनेक्शन, 102 करोड़ लोगों के लिए 220 करोड़ कोविड टीकाकरण, 47.8 करोड़ जन धन योजना बैंक खाते, 44.6 करोड़ लोगों को बीमा कवर और 11.4 करोड़ किसानों को 2.2 लाख करोड़ रुपये की नकद सहायता, निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत हर संख्या बहुत प्रभावशाली थी।

उद्योगों और पूंजी बाजारों ने भी निर्मला सीतारमण के बजट को हाथोंहाथ लिया। 2023-24 में 10 लाख करोड़ रुपये के संरचनात्मक निवेश सहित अधोसंरचना क्षेत्र में निवेश में 33 प्रतिशत की वृद्धि ने बाजारों को आगे बढ़ने के लिए बहुत प्रेरित किया। अगर इसमें राज्यों में पूंजीगत संपत्ति की मदद करने के लिए दिए गए अनुदान को शामिल कर लिया जाए, तो पूंजीगत व्यय बढ़कर 13.7 लाख करोड़ रुपये हो जाता है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 4.5 प्रतिशत है। रेलवे के लिए 2.4 लाख करोड़ रुपये का पूंजी परिव्यय, महत्वपूर्ण परिवहन बुनियादी ढांचे और रसद के विकास के लिए 75,000 करोड़ रुपये इसके अतिरिक्त हैं। दूसरे यह कि हर श्रेणी के उपभोक्ताओं को कर में राहत मिली, जिससे निवेश और खरीदारी के लिए अतिरिक्त पैसा उपलब्ध हो गया। तीसरे, सरकार कॉरपोरेट करों के माध्यम से उद्योगों पर कोई बड़ा टैक्स थोपे बिना अपने राजकोष को व्यवस्थित रखने में सफल रही है जिससे उद्योगों को विश्वासपूर्वक निवेश करने का अवसर मिल सका।

भ्रष्टाचार पर नकेल
औपचारिक जुड़ाव और डिजिटलीकरण के जरिए सरकार अपनी योजनाओं में भ्रष्टाचार को समाप्त करने में सफल रही है और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था बहुत सिमट गई है। उदाहरण के लिए, अकेले 2022 में डिजिटल भुगतान के कारण 126 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 7400 करोड़ लेन-देन हुए। औपचारिक क्षेत्र में नौकरियां भी बढ़ी हैं और यह ईपीएफओ सदस्यता में परिलक्षित हुआ, जो बढ़कर 27 करोड़ हो गया है। सरकार के मूल आर्थिक दर्शन को देखते हुए कृषि को एक बड़ी प्राथमिकता के रूप में लिया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

‘श्री अन्न’ कहे जाने वाले ज्वार, रागी, बाजरा, कुट्टू, रामदाना, कंगनी, कुटकी, कोदो, चीना और समा जैसे मोटे अनाजों पर आधारित प्राकृतिक खेती की दिशा में बढ़ना, वास्तव में भारत को इन पौष्टिक अनाजों के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने की पहल का एक बड़ा विचार है। भारत पहले ही इन ऐतिहासिक उच्च मूल्य वाले अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक और पहला या दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। जमीनी स्तर की ग्रामीण सहकारी समितियों को राष्ट्रीय रजिस्ट्री के साथ बड़ा महत्व दिया गया है।

ईंधन और ऊर्जा
20 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण पैकेज इस क्षेत्र को चलाएगा, जिसमें गैर-निष्पादित ऋण न्यूनतम रहेगा। शीघ्र निर्माण शुरू करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए निर्मला सीतारमण ने 31 मार्च, 2024 से पहले परिचालन शुरू करने वाली 63,000 सहकारी समितियों के उद्यमों को 15 प्रतिशत कॉरपोरेट कर लाभ दिया है। 19,600 करोड़ रुपये के साथ समर्पित हाइड्रोजन मिशन के अलावा, 35,000 करोड़ रुपये कार्बन ईंधन से कार्बन क्रेडिट वाले ईंधन में बदलने के लिए आवंटित किए गए हैं। इसके अलावा, अपशिष्ट से धन सृजन की 500 परियोजनाओं के लिए 10,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है और लद्दाख से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिए 8300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

कौशल विकास को अपने चौथे संस्करण में एक नया लक्ष्य मिला है, जिसमें अब से तीन वर्ष में 47 लाख युवाओं को नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। साथ ही, पर्यटन को एक प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में लिया गया है और इसके पहले चरण में एक पूर्ण पैकेज के साथ 50 स्थलों को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विदेशी पर्यटकों के बजाए घरेलू पर्यटनों को प्राथमिकता दी जाएगी।

(लेखक- निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी, नॉनपार्टिशन थिंक टैंक-सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड एंड होलिस्टिक स्टडीज, नई दिल्ली)

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