अमेरिका में जिस भारतीय मूल के भौतिक वैज्ञानिक ने ऑप्टिकल फाइबर की तकनीक को जन्म दिया। उनका नाम सरदार डॉ. नरेंद्र सिंह कपानी था, उन्हें दुनियाभर में ऑप्टिकल फाइबर के जनक के रूप में पहचाना जाता है। डॉ नरेंद्र सिंह कपानी की बचपन की शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी।
14 अक्टूबर 1926 को मोगा पंजाब में जन्मे नरेंद्र सिंह, अपने पिता की सरकारी पोस्टिंग की वजह से देहरादून आ गए थे। देहरादून में ही बचपन की शिक्षा के दौरान उन्होंने अपने टीचर से सवाल पूछा था कि क्या हम बिजली की रोशनी को किसी पाइप की तरह मोड़ सकते हैं? इस पर उनके टीचर ने बे वजह का सवाल नहीं पूछते हैं, कहकर डांट दिया था।
जिज्ञासु नरेंद्र अपनी शिक्षा में इस सवाल का उत्तर खोजते रहे। उन दिनों उत्तर प्रदेश में आगरा यूनिवर्सिटी से ही डिग्री मिलती थी। यहां से स्नातक की डिग्री लेने के बाद नरेंद्र सिंह ने इंग्लैंड के लंदन इंपीरियल कॉलेज से ऑप्टिक्स में पीएचडी हासिल की। फिर यूएसए चले गए, जहां अपने भौतिकी शोध के आधार पर 1956 में ऑप्टिकल फाइबर के जरिए रोशनी को पाइप की तरह मोड़ देने से लेकर कई अन्य अविष्कारों से दुनिया को रूबरू कराते हुए 100 से अधिक पेटेंट करवाए। उनके शोध से दुनिया में तकनीक खास तौर पर संचार क्रांति हुई।
दुनियाभर में उन्हें दर्जनों सम्मानित अवार्ड मिले। उन्होंने भारत के आयुध निर्माण के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया। सिख फाउंडेशन के जरिए उन्हें एक सम्मानित दानदाता के सिख समाज के शिक्षाविद के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने सिख कला संस्कृति के संरक्षण के लिए काम किया। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2000 में प्रवासी भारतीय उत्कृष्टता सम्मान भी दिया। उनकी मृत्यु 96 साल की उम्र में 4 दिसंबर 2020 में कैलिफोर्निया में हुई।
उन्हें दुनिया में सदी के सात गुमनाम नायकों के रूप में प्रतिष्ठित फार्च्यून पत्रिका ने सम्मानित किया था। माना जाता है कि उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरुस्कार दिया जाना चाहिए था, किंतु वो भी अमेरिका की अंदरूनी राजनीति के शिकार हुए और उन्होंने फिर अपना जीवन समाज की सेवा करने में लगा दिया। सौर ऊर्जा के सेक्टर में भी डॉ. नरेंद्र सिंह ने उल्लेखनीय शोध कार्य कर दुनिया को वैकल्पिक ऊर्जा के लिए तैयार किया। इस विषय को उन्होंने भारत सरकार के साथ भी साझा किया। भारत सरकार ने 2021 में उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया।
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