अमेरिका ने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत को कारगिल के लिए जीपीएस सेवा और भू-स्थानिक डाटा देने से इनकार कर दिया था, जो कई जिंदगियां बचाने में सहायक हो सकता था। नतीजा, भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) के विकास ने इसकी शुरुआत देखी और हमने अपनी क्षमताओं को उन्नत किया, जिससे अन्य देशों पर हमारी निर्भरता काफी कम हो गई। लेकिन भारत के लोगों के लिए आगे बढ़ना अब एजेंडा भर नहीं रह गया है। विश्वगुरु बनने के लिए अब दुनिया का नेतृत्व करने की आवश्यकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें हम प्राचीन काल से उत्कृष्ट रहे हैं। हम अंतरिक्ष में अपने प्रयास जारी रख सकते हैं।
3 अप्रैल, 2019 को पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री ने भारत की एक उल्लेखनीय उपलब्धि पर कहा था, ‘‘अंतरिक्ष मानव जाति की साझी विरासत है और प्रत्येक राष्ट्र की जिम्मेदारी है कि वे उन कार्यों से बचें जो इस क्षेत्र के सैन्यीकरण का कारण बन सकते हैं।’’ हालांकि, भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत कभी भी आक्रामक राष्ट्र नहीं रहा है। अपने पड़ोसियों के विपरीत हमने कभी भी क्षेत्रीय विस्तारवादी नीतियों का सहारा नहीं लिया। लेकिन अतीत के अनुभवों ने हमारे विश्वास को मजबूत किया कि शांतिप्रियता केवल तभी काम आती है, जब आप युद्ध में जीतने की क्षमता रखते हैं। अंतत: युद्ध की अंतिम सीमा अंतरिक्ष मार्च 2019 में उस समय खुल गई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपग्रहरोधी हथियार (एएसएटी) के सफल परीक्षण की घोषणा की। इसे ‘मिशन शक्ति’ नाम दिया गया, जो हमारे द्वारा स्वयं के लिए निर्मित नई शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत अंतरिक्ष से उपग्रह को सफलतापूर्वक नीचे ले जाने वाला चौथा देश बन गया है। ‘मिशन शक्ति’ ने अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने की भारतीय सुरक्षा की क्षमता को भी दर्शाया है।
अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें रॉकेट चालित लंबी दूरी की मिसाइलें होती हैं। जो देश किसी उपग्रह को नीचे गिरा सकती हैं, वह ऐसी मिसाइलों को मार गिरान में बहुत सक्षम है। हाल ही में तीनों सेनाओं एक एजेंसी, रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी ने आईडीईएक्स के मिलकर स्टार्टअप को अनुदान प्रदान करने के लिए आमंत्रित करते हुए 8वीं रक्षा स्टार्टअप चुनौती शुरू की थी, ताकि एंटेना और संचार उपकरण, अंतरिक्ष में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अंतरिक्ष-श्रेणी के रोबोटिक हथियार, उपग्रहों के लिए कृत्रिम बुद्धिमता, अंतरिक्ष में उपग्रहों को ले जाने के लिए प्रक्षेपण यानों, ईओ व एसएआर सेंसर (जो इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और निगरानी में प्रयुक्त होते हैं), सैटेलाइट फोन के लिए एंटी-जैमर सर्किट (सुरक्षाबलों द्वारा गुप्त संचार के लिए प्रयुक्त के प्रयोग किया जाता है) और यहां तक कि प्रणोदन प्रणालियां जिनका उपयोग उपग्रह प्रक्षेपवक्र सुधार या उपग्रह के पथ को बदलने के लिए किया जाता है, आदि उपग्रह प्रणालियों के अनुसंधान और विकास में योगदान दे सकें।
28 सितंबर, 2018 को जोधपुर वायुसेना स्टेशन में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी को मंजूरी दी थी। इसने नए युद्ध के मैदान में और देश की रक्षा के लिए भारत की खोज को गति दी। वर्तमान में अन्य क्षेत्रों से जटिल शोध परियोजनाएं विकसित की जा रही हैं, जिन्हें अंतत: अंतरिक्ष पर एकीकृत किया जा सकता है। क्वांटम एन्क्रिप्शन और क्वांटम संचार, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सुपर कंप्यूटर या क्वांटम कंप्यूटर द्वारा भी दो उपकरणों के बीच संचार को हैक नहीं किया जा सकता है, उपग्रह संचार में उपयोग के लिए विकसित और अनुकूलित किया जा रहा है।
क्या है आईआरएनएसएस?
यह भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली है। अभी इसमें 8 उपग्रह हैं, जिनमें भू-स्थिर कक्षा में 3 और भू-समकालिक कक्षा में 5 उपग्रह हैं। यह अमेरिकी ‘ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम’ (जीपीएस) की तरह ही काम करता है। लेकिन इसका दायरा भारतीय उपमहाद्वीप में 1,500 किमी. ही है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत और इसके पड़ोस में विश्वसनीय स्थिति, नेविगेशन एवं समय पर सेवाएं प्रदान करना है। हालांकि 24 उपग्रहों वाले जीपीएस की स्थिति सटीकता 20-30 मीटर है, जबकि यह 20 मीटर से कम की अनुमानित सटीकता इंगित करने में सक्षम है। आईआरएनएसएस का उपयोग स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन, आपदा प्रबंधन, वाहन ट्रैकिंग व फ्लीट प्रबंधन, मोबाइल फोन के साथ एकीकरण, मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर, सटीक समय में किया जा सकता है।
डीआरडीओ द्वारा विकसित दुर्गा-2 और काली जैसे प्रत्यक्ष-ऊर्जा हथियारों का उपयोग लेजर आदि प्रक्षेपण के जरिये दूरस्थ लक्ष्यों को नष्ट करने के लिए किया जा सकता है। तीनों सेनाओं के लिए इसका विकास अभी चल रहा है, लेकिन अंतरिक्ष मंचों पर इनका एकीकरण दूर नहीं है। आम तौर पर इन प्रणालियों का उपयोग जमीन से अंतरिक्ष हथियारों के तौर पर अंतरिक्ष में मौजूद शत्रु देशों की महत्वपूर्ण संपत्तियों को नष्ट करने के लिए किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके लिए मिसाइल दागने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह काम केवल एक किरण के प्रक्षेपण से हो जाएगा। हालांकि इन प्रणालियों के उपयोग में मिसाइल लॉन्च करने की लागत का एक अंश ही खर्च होता है, लेकिन मारकता बहुत सटीक होती है। इतनी सटीक कि असफलता की संभावना बहुत कम रह जाती है।
इन प्रणालियों में अंतत: अंतरिक्ष से जमीन पर हमला करने की क्षमता शामिल होगी। अभी तक सार्वजनिक तौर पर यही जाना जाता है कि उपग्रहों का उपयोग केवल खुफिया और काउंटरइंटेलिजेंस आपरेशन में किया जाता है। इनमें उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर लगे होते हैं, जो जमीन पर होने वाली हलचल का पता लगा सकते हैं और इनकी पहचान कर सकते हैं। चीन की पीएलए ने सक्रिय रूप से इनका प्रयोग डोकलाम के पास भारतीय सैनिकों की गतिविधियों का पता लगाने और सैन्य बलों का जायजा लेने के लिए किया था।
आतंकी ओसामा बिन लादेन के ठिकाने का पता लगाने के लिए अमेरिका ने खुफिया इकाइयों के अलावा उपग्रहों भी उपयोग किया था। जैसा कि भारतीय वायु सेना द्वारा जारी आईडीईएक्स चुनौती से संकेत मिलता है, हम अधिक सटीक स्थितिजन्य जागरुकता और लक्ष्य प्राप्ति के लिए अभियान के दौरान वास्तविक समय में भारतीय वायुसेना के विमानों का मार्गदर्शन करने के लिए उपग्रह संगत प्रणाली विकसित करने की प्रक्रिया में हैं। निकट भविष्य में अंतरिक्ष से जमीनी बुनियादी ढांचे और मोबाइल इकाइयों को लक्षित करने के लिए उपग्रहों को प्रत्यक्ष ऊर्जा हथियारों से लैस किया जाएगा। वे उच्च परिशुद्धता के साथ ड्रोन को नष्ट करने में भी सक्षम होंगे, जो कि कम लागत, छोटे आकार और बड़ी संख्या के कारण खतरा बन रहे हैं।
अंतरिक्ष युद्ध एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है। इसके लिए अत्यधिक शोध, काफी मात्रा में संसाधनों और तकनीकी कौशल की आवश्यकता है, लेकिन हम यह यात्रा पहले ही शुरू कर चुके हैं। चूंकि अंतरिक्ष में वस्तुएं हजारों किलोमीटर दूर हैं, यहां तक कि प्रकाश को भी उन वस्तुओं से प्रेक्षक तक पहुंचने में कुछ सेकंड लगते हैं, जिससे उनका सटीक पता लगाना और लक्षित करना मुश्किल हो जाता है। नष्ट किए गए उपग्रहों का मलबा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि इससे अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले नए उपग्रहों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना बनी है। जब चीन ने अपनी उपग्रह-रोधी तकनीक का प्रयोग कर अपने उपग्रह को नष्ट किया तो पृथ्वी की निचली कक्षा में इसके 40,000 टुकड़े रह गए। इसे ही अंतरिक्ष प्रदूषण कहते हैं।
यह कल्पना बहुत नई नहीं है। वास्तव में 1995 में प्रदर्शित जेम्स बॉन्ड की फिल्म ‘गोल्डन आई’ में इसी तरह के एक उपग्रह हथियार को पृथ्वी पर लक्ष्यों को नष्ट करते हुए दिखाया गया था, लेकिन तकनीक को अमल में लाना कठिन है। हाल के दिनों में अधिकांश देशों ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है। उदाहरण के तौर पर, चीन ने 1964 में इस पर अनुसंधान शुरू किया, जो तेजी से आगे बढ़ा। लेकिन माओ की साम्यवादी सांस्कृतिक क्रांति ने वैज्ञानिकों के किए कराए पर पानी फेर दिया। अंतत: 2007 में उन्होंने अपनी परीक्षणों का निष्कर्ष निकाला।
अंतरिक्ष-से-अंतरिक्ष युद्ध इस कारण दूर की कौड़ी है कि अंतरिक्ष में मौजूद वस्तुओं को पहले से ही धरती पर मौजूद स्टेशनों द्वारा लक्षित किया जा सकता है, फिर भी यह जरूरी है। जब शत्रु देशों के हथियारयुक्त उपग्रह हमारी धरती पर स्थित उपग्रह-रोधी हथियारों की निगाह या सीमा से परे हैं, तो अतिआवश्यक होने पर उन्हें बाहर निकालने के लिए हथियारयुक्त उपग्रह की जरूरत पड़ेगी। अंतरिक्ष युद्ध एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है। इसके लिए अत्यधिक शोध, काफी मात्रा में संसाधनों और तकनीकी कौशल की आवश्यकता है, लेकिन हम यह यात्रा पहले ही शुरू कर चुके हैं। चूंकि अंतरिक्ष में वस्तुएं हजारों किलोमीटर दूर हैं, यहां तक कि प्रकाश को भी उन वस्तुओं से प्रेक्षक तक पहुंचने में कुछ सेकंड लगते हैं, जिससे उनका सटीक पता लगाना और लक्षित करना मुश्किल हो जाता है। नष्ट किए गए उपग्रहों का मलबा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि इससे अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले नए उपग्रहों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना बनी है। जब चीन ने अपनी उपग्रह-रोधी तकनीक का प्रयोग कर अपने उपग्रह को नष्ट किया तो पृथ्वी की निचली कक्षा में इसके 40,000 टुकड़े रह गए। इसे ही अंतरिक्ष प्रदूषण कहते हैं।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुसंधान का एक बहुत ही बंद क्षेत्र है और इसके अधिकार क्षेत्र के बारे में जानकारी आम जनता से अस्पष्ट रखी जाती है। इसके मुख्य कारणों में से एक है अंतरिक्ष सैन्यीकरण का संभावित प्रभाव और देश की रक्षा क्षमताओं को प्रदान की जाने वाली श्रेष्ठता है। दिलचस्प बात यह है कि एलन मस्क की अंतरिक्ष नवाचार कंपनी स्पेसएक्स, जो सैन्य रॉकेट भी नहीं बनाती है, विदेशियों को काम पर नहीं रखती है, क्योंकि अमेरिकी सरकार अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को सैन्य तकनीक मानती है और ऐसी कंपनियों को विदेशी श्रमिकों को काम पर रखने से रोकती है।
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