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बीआरओ : दुर्गम इलाकों में साहसिक काम

देश के दुर्गम इलाकों में सीमा सड़क संगठन न केवल विकास की नींव रख रहा है, बल्कि सैन्य बलों को संचालन और क्रियान्वयन तंत्र उपलब्ध भी करवा रहा है

by ले.ज. एस. रवि शंकर
Jan 23, 2023, 01:49 pm IST
in भारत, रक्षा
सीला सुरंग और नेचिफू सुरंग

सीला सुरंग और नेचिफू सुरंग

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सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के पास जिन स्थानों पर सड़कें बनाने के काम हैं, वे संभवत: दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण इलाके हैं। इनमें राजस्थान का रेगिस्तान, कच्चे पत्थरों वाली हिमालय पर्वतमाला का जोखिम भरा दक्षिणी भाग, तिब्बती पठार में मिलन से भी परे शुष्क ऊंचाई वाले क्षेत्र और नदियों से पटा पूर्वोत्तर क्षेत्र शामिल है। यहां हर काम के लिए बहुत धैर्य और महीन समझदारी की आवश्यकता होती है। यह काम बीआरओ को इसलिए सौंपा गया है, क्योंकि ऐसी विषम परिस्थितियों में इसे कोई और नहीं कर सकता। हमारी राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा में बीआरओ का योगदान दो अलग-अलग तरीकों में बंटा है।

ले.ज. एस. रवि शंकर, पूर्व महानिदेशक, बीआरओ

पहला, इस क्षेत्र में विकास की शुरुआत करने का है। बीआरओ क्षेत्र में पहला संपर्क प्रदान कर वहां के बुनियादी ढांचे व वाणिज्य में तेजी से विकास को संभव बना देता है। दूसरा, यह सीमा पर तैनात बलों को संचालन और क्रियान्वयन तंत्र प्रदान करता है। ये दोनों पक्ष इस क्षेत्र में सुरक्षा के लिए एक-दूसरे के पूरक हैं। बीआरओ ने सीमावर्ती राज्यों में सड़कें बना कर शुरुआती सड़कों को विकसित कर और कठिन समय में उनका रखरखाव कर विकास को बनाए रखने में मदद की है, जिससे इन क्षेत्रों में और विकास होना संभव हो सका है। सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास से सुरक्षा पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

आर्थिक विकास का अर्थ है—बेहतर आवास स्थिति, बेहतर शिक्षा और अधिक स्थिर समाज। इससे अवांछित बाहरी प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है एवं इससे देश के बाकी हिस्सों के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। इससे यह क्षेत्र और अधिक सुरक्षित हो जाता है। सीमाओं पर बलों की क्षमता भी स्थानीय लोगों के उत्साहित समर्थन, संपन्न स्थानीय उद्योगों और बेहतर स्थानीय संसाधनों से बढ़ जाती है। जिस भी सैनिक ने पश्चिमी सीमाओं पर युद्ध लड़ा है, वह आपको बता सकता है कि स्थानीय समर्थन किस तरह सेना की शक्ति को कई गुना बढ़ा देता है। स्थानीय लोग कभी भी बीआरओ के प्रयासों की सराहना करते नहीं थकते।

आज उत्तर की सक्रिय सीमा पर सर्वाधिक ध्यान सैन्य संचालन-प्रचालन तंत्र पर है, जो बिल्कुल उचित है। अग्रिम मोर्चे तक सैनिकों को ले जाने और उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए यह महत्वपूर्ण है। यूके्रन युद्ध में भी यह बिन्दु पुन: उभर कर सामने आया है। लंबे समय से प्रतीक्षित सड़कों, पुलों और सुरंगों का निर्माण करने से सुरक्षाबलों को बीआरओ के माध्यम से मिली वास्तविक मदद और उसकी उपलब्धियों का मीडिया में उल्लेख भारत में अब जाकर हो रहा है। इससे सुरक्षा बलों की शक्ति कई गुना कैसे बढ़ जाती है, यह समझा जा सकता है।

संपर्क बेहतर होने से यात्रा का समय कम हो जाता है और सड़क से ज्यादा भार भी ले जाया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि कम लागत में तेजी से मोर्चाबंदी। सैन्य संचालन स्तर पर इससे कमांडरों को नियोजन, तैनाती और पुनर्तैनाती में अधिक विकल्प उपलब्ध होते हैं। बीआरओ द्वारा बनाई गई प्रत्येक नई सड़क, पुल या सुरंग के साथ इस क्षमता में वृद्धि होती जाती है। जब संचार धमनियां बड़ी होती हैं, तो बड़े सैन्य बल को टिकाए रखा जा सकता है। इसी तरह फॉरवर्ड एयरफील्ड एक ऐसी रणनीतिक संपदा होती है, जिससे हवाई जहाजों को तिब्बती पठार पर संचालित किया जा सकता है। यहां विमानों को पठार की तुलना में अधिक ईंधन और गोला-बारूद के साथ उड़ान भरनी होती है, क्योंकि ऊंचाई के कारण टेक-आफ करने पर कुल भार को सीमित रखना होता है। हर मौसम में चालू रहने वाली अटल टनल (रोहतांग) जैसी सुरंगें संपर्क के मामले में गेम चेंजर होती हैं, जिनका दूरगामी रणनीतिक प्रभाव होता है। ग्रेटर हिमालय के पार जोजिला में दूसरी सुरंग के साथ मिलकर अटल टनल लद्दाख क्षेत्र का चेहरा बदलने और सुरक्षाबलों को ज्यादा अभेद्य बनाने में सक्षम होगी।

अग्रिम इलाकों तक पहुंच हुई आसान

वैभव डांगे

डोकलाम और गलवान में चीनी सैनिकों से झड़प के बाद भारत में बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया जा रहा है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पठानकोट-जम्मू राजमार्ग, जो जम्मू-कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है, अब अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के साथ 17 पुलों वाला एक वैकल्पिक मार्ग है। इसके बूते 217 गांवों में 4 लाख से अधिक लोगों को हर मौसम में खुला रहने वाला मार्ग उपलब्ध हो गया है। पीओके से सटी नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ-साथ 4 सुरंगों और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों के चारों ओर बाईपास वाले अखनूर-पुंछ राजमार्ग में आवश्यक सुधार होते ही दूरी 34 किमी घट जाएगी। आवश्यकता पड़ने पर सशस्त्र बलों के सुचारू और तेज आवागमन की सुविधा उपलब्ध रहेगी।

कश्मीर घाटी में श्रीनगर-बारामूला-उरी राजमार्ग को 4 लेन का बनाया जा रहा है। एलओसी की ओर तंगधार, केरन, गुरेज आदि स्थानों तक जाने वाली सड़कों को अपग्रेड किया जा रहा है और दर्रों पर सुरंगें बनाई जा रही हैं, जो न सिर्फ रणनीतिक संपर्क प्रदान करेंगी, बल्कि स्थानीय आबादी के लिए भी अवसरों के द्वार खुलेंगे। इसी प्रकार, बीआरओ ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ संयुक्त रूप से मनाली-सरचू-लेह राजमार्ग के साथ बारालाचला, तंगलिंगला और लाचुंगला में 3 और सुरंगों की योजना बनाई है। सामरिक उद्देश्यों के लिए एलएसी के समानांतर पीछे एक और लिंक सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। इसे ध्यान में रखते हुए सुमदो-करजोक-काइतो से होते हुए लद्दाख व हिमाचल प्रदेश के बीच एक सड़क बनाई जा रही है, जिसमें तकलिंगला में एक सुरंग का निर्माण शामिल है।

बीआरओ ने कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग को नवदांग तक और आदि कैलाश पर्वत के मार्ग को भी जोड़ दिया है। बीआरओ को 9,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से भारतमाला परियोजना के तहत उत्तराखंड में 400 किमी. और सिक्किम में 250 किमी. सड़क बनाने काम भी सौंपा गया है। सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा। सिक्किम में उत्तरी सिक्किम और पूर्वी सिक्किम के जिलों की सीमा चीन के साथ लगती है। उत्तरी सिक्किम में भारतमाला परियोजना के तहत चीन-भारत सीमा तक दोहरी सड़कें उपलब्ध कराई जा रही हैं। पूर्वी सिक्किम में बीआरओ ने डोकला तक सड़क बना ली है और इस साल वह फ्लैग हिल से डोकला तक एक और छोटी संरेखण सड़क पूरी करेगा।

आगे उत्तर की ओर, चोल के सीमावर्ती क्षेत्र को गंगटोक से जोड़ा गया है। तमजे से होकर टूंग तक उत्तरी सिक्किम से जोड़ने वाला एक वैकल्पिक संपर्क मार्ग का निर्माण प्रगति पर है। साथ ही, ट्रांस-अरुणाचल राजमार्ग सभी पांच घाटियों के तल बिंदुओं से जुड़ेगा। तवांग में बड़े पैमाने पर सड़क निर्माण हो रहा है। 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में काफी संघर्ष हुआ था। 317 किमी. लंबे मार्ग पर सुचारू यातायात के लिए 42 किमी बाईपास और सुरंगों के साथ दोहरा किया गया है। भारत-चीन सीमा सड़क परियोजना (आईसीबीआर) हमारी लामबंदी के समय को कम करने और अग्रिम इलाकों को जोड़ने के लिए शुरू की गई थी। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने 73 आईसीबीआर की पहचान की है। ये सड़कें चीन की सीमा से लगे पांच राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई हैं। बीआरओ ने दौलत बेग ओल्डी, हॉटस्प्रिंग, डेमचोक और जुर्सर के सबसे दूर के इलाकों को जोड़ा है। दौलत बेग ओल्डी से पहले सिर्फ वायु संपर्क था, लेकिन अब यह 255 किमी. लंबी दारबुक-श्योक-डीबीओ सड़क से भी जुड़ गया है। यह सड़क पूरी तरह निर्जन उच्च ऊंचाई वाले हिमाच्छादित क्षेत्र से होकर गुजरती है। यहां गर्मियों में तापमान 38 डिग्री सेंटीग्रेड और सर्दियों में शून्य से 55 डिग्री सेंटीग्रेड कम रहता है। यहां पहुंचने में पहले सात दिन लगते थे, जो अब घटकर एक दिन रह गया है।

इसी तरह, हिमाचल में प्वाइंट 4840, लेप्चा और शिपकिला के ज्यादातर अग्रिम इलाकों को भी जोड़ा गया है। उत्तराखंड में सुमला, माना दर्रा, नीति दर्रा, रिमखिम, जोलिंगकोंग और लिपुलेख के आगे के अधिकांश इलाके भी सड़क से जुड़ गए हैं। सिक्किम में केरांग, डोंगक्याला, गोराला, चोला, नाथुला और डोकलाके अधिकांश अग्रिम इलाके और अरुणाचल में खरसांगला, वासु रॉक, बुमला, चुना, ताकसिंग, लमांग, तादादगे, गेलिंग, किबिथू और दिचु के अधिकांश अग्रिम इलाकों को सड़कों से जोड़ा जा चुका है। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ अगले 25 वर्षों के भारत की नींव रखी जा रही है। परियोजनाओं को समय पर पूरा करने की कार्य संस्कृति विकसित की हैं।

(लेखक बुनियादी ढांचा और सार्वजनिक नीति के स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं)

बेहतर आपूर्ति को सक्षम बनाने में, जैसे-जैसे सीमाओं के निकट पहुंचते जाते हैं, बीआरओ का कार्य उतना अधिक चुनौतीपूर्ण होता जाता है। कठिनाई का स्तर ऊंचाई, चरम तापमान और अधिक चुनौतीपूर्ण इलाके के साथ बढ़ता जाता है। इसके बावजूद इसकी उपलब्ध्यिों में लगभग 60,500 किमी. सड़कें, 893 पुल, 19 हवाई क्षेत्र और 18 किमी. सुरंगें शामिल हैं। यह संख्या हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी है। बीते एक वर्ष में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 103 बीआरओ परियोजनाओं का उद्घाटन किया है। 28 परियोजनाओं का उद्घाटन जनवरी 2023 में किया गया, जो 724 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई हैं। ये सभी सीमावर्ती राज्यों में फैली हुई हैं।

देर से ही सही, सुरंगों का काम हाल में बहुत तेज किया गया है। अक्तूबर 2020 में 9.2 किमी. लंबी अटल टनल का काम पूरा होने के बाद पूर्वोत्तर में भी सुरंगें पूरी होने वाली हैं। 317 किमी. लंबे बालीपारा-चारद्वार-तवांग मार्ग पर 5 कि.मी. की सेला सुरंग के इस वर्ष के अंत तक पूरा होने की संभावना है। ईगल्स नेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में 500 मीटर की नेचिफू सुरंग के मार्च में पूरी होने की संभावना है। दोनों सुरंगें तवांग को राज्य की राजधानी ईटानगर के करीब ले आएंगी और तवांग क्षेत्र में सैन्य आपूर्ति को गति देंगी। जम्मू-कश्मीर में सोनमर्ग तक पहुंचने के लिए जेड मोड़ टनल और ग्रेटर हिमालयन रेंज से होकर जोजिला टनल पर काम चल रहा है। जोजिला दर्रा अभी भी उपयोग में आ रहा है।

आमतौर पर बर्फबारी के कारण यह नवंबर से जून तक बंद हो जाता है। चूंकि एलएसी पर हलचल जारी है, इसलिए इसके बंद रहने की अवधि को कम करने का निर्णय लिया गया। 2022-23 में लगभग 11,500 फीट की ऊंचाई पर -25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बावजूद इस दर्रे को जनवरी के पहले सप्ताह तक खुला रखा गया। इस वर्ष 13,500 से अधिक अतिरिक्त वाहनों ने आवाजाही की, जिससे लेह से आगे तैनात सैनिकों को सर्दियों के लिए बेहतर स्टॉक रखने में मदद मिली है। किसी संकटकाल में बीआरओ की प्रतिक्रिया हमेशा उल्लेखनीय रही है। कठिनतम चुनौतियों के बीच भी उसका कामकाज बार-बार खरा साबित हुआ है। सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ाने में इसका योगदान वाकई अमूल्य है।

Topics: Raw stone Himalayan Rangeकच्चे पत्थरों वाली हिमालय पर्वतमालाMilitary Operation-Operation Systemसैन्य संचालन-प्रचालन तंत्रDoklam and Galwanडोकलाम और गलवानSrinagar-Baramulla-Uriश्रीनगर-बारामूला-उरीBROग्रेटर हिमालयGreater Himalayaपार जोजिलाPar Zojilaउत्तरी सिक्किमNorth Sikkimकश्मीर घाटीभारतमाला परियोजनाBharatmala ProjectKashmir Valleyबीआरओ ने कैलाश-मानसरोवरBRO Kailash-MansarovarबीआरओDesert of Rajasthanसीमा सड़क संगठन (बीआरओ)राजस्थान का रेगिस्तान
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