बीजगणित के पिता’ के नाम से संबोधित किए जाने वाले अल-ख़्वारिज्मी का बहुत सारा महत्वपूर्ण कार्य भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त, भास्कर, आर्यभट्ट तथा हिंदू विज्ञान, नक्षत्र शास्त्र तथा गणित के अन्य महान व्यक्तित्वों द्वारा किए गए काम पर आधारित है। शायद आपने कंप्यूटर विज्ञान में प्रयुक्त होने वाला ‘एल्गोरिद्म’ शब्द कहीं पढ़ा या सुना होगा। यह शब्द बगदाद के खलीफा अल मौमून के दरबार में काम करने वाले गणितज्ञ मोहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज्मी (780-850 ईस्वी) के नाम से आया है (अल-ख़्वारिज्मी-अल-गोरिद्म), जिन्होंने ‘अल-किताब अल-मुख्तसर फि हिसाब अल-जब्र व’ अल-मुकाबला’ नामक किताब लिखी जिसे अनेक विद्वान बीजगणित पर लिखी गई पहली किताब मानते हैं।
इस किताब के शीर्षक से ही अंग्रेजी का अलजेब्रा (बीजगणित) शब्द निकला है। उनका दूसरा बड़ा योगदान हिंदू-अरबी अंकों को दुनिया तक पहुंचाना रहा है जिन्होंने गणित की तमाम गुत्थियों और जटिलताओं का समाधान प्रस्तुत किया। इससे पहले प्रचलित रोमन अंक प्रणाली इन अंकों के समक्ष बहुत आदिम प्रतीत होती है। अल-ख़्वारिज्मी की योग्यता, विद्वता, विलक्षणता और आधुनिक गणित के प्रति उनका योगदान वैश्विक स्तर पर सिद्ध तथा असंदिग्ध है। उनके बताए गए जिन अंकों को अरबी अंकों (अरेबिक न्यूमेरल्स) के नाम से संबोधित करते हुए दुनिया भर में इस्तेमाल किया जाता है, वास्तव में वे हिंदू अंक हैं।
अब उन्हें अरेबिक-हिंदू न्यूमेरल्स या कहीं-कहीं हिंदू-अरेबिक न्यूमेरल्स के नाम से भी संबोधित किया जाने लगा है लेकिन फिर भी उनकी पहचान में अरेबिक शब्द आता है। इसी तरह से उन्होंने बीजगणित के जिन नियमों का दस्तावेजीकरण किया, उनमें से अधिकांश का उद्भव भारतीय है। अल-ख़्वारिज्मी के बारे में सुप्रसिद्ध गणितज्ञ क्रोसली की टिप्पणी है- ‘उनका कार्य संभवत: बहुत मौलिक नहीं है।’
भारत के गणितज्ञ और नक्षत्रविज्ञानी ब्रह्मगुप्त (598-665 ईस्वी) जिन्होंने अल ख़्वारिज्मी के लगभग दो शताब्दी पूर्व जन्म लिया था, अपने ग्रंथ ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धांत’ में पहले ही हिंदू अंक प्रणाली की व्याख्या कर चुके थे। शून्य से नौ तक के अंक, जिनके जरिए दुनिया की हर संख्या को अभिव्यक्त करना और ऐसी संख्याओं की गणना करना आसानी से संभव था।
अल-ख़्वारिज्मी की निजी योग्यता और योगदान में संदेह नहीं है। वे असंदिग्ध रूप से उस दौर के विलक्षण गणितज्ञ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से इस गणितीय कार्य को बाकी दुनिया तक पहुंचाया-अप्रत्यक्ष रूप में ही सही, क्योंकि उनकी किताबें अरबी में थीं लेकिन संयोगवश उनका लैटिन में अनुवाद हुआ और सैकड़ों वर्षों के बाद यह अनुवाद यूरोप में इस्तेमाल किया गया। इसके अतिरिक्त बीजगणित में उनका अपना कार्य भी महत्वपूर्ण है। उनकी तीन बड़ी किताबें हैं जिनमें से एक (‘अल-किताब अल-मुख्तसर फि हिसाब अल-जब्र व’अल-मुकाबला’) बीजगणित पर, एक हिंदू अंक प्रणाली पर (अरबी नाम अज्ञात, लैटिन में अनूदित पुस्तक- Algoritmi de numero Indorum) और तीसरी (‘किताब सुरत अल-अर्द’) भूगोल पर आधारित है।
उनकी एक अन्य रचना नक्षत्र वैज्ञानिक गणनाओं तथा तालिकाओं पर आधारित है जिसका नाम है- ‘जिÞज अल-सिंदहिंद।’ जैसा कि नाम (हिंद) से स्पष्ट है, इसमें भारतीय नक्षत्र विज्ञान की मदद ली गई है। हम भारतीयों के लिए अल-ख़्वारिज्मी की महत्ता को स्वीकार करते हुए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि जिन अमर भारतीय व्यक्तित्वों ने मूल रूप से, तथा अल ख़्वारिज्मी के जन्म से भी पहले, जो बड़ा कार्य किया था, उसे अरब विश्व के गणितीय योगदान के दस्तावेजीकरण में एक परिशिष्ट के रूप में न देखा जाए। यह न्यायसंगत नहीं है क्योंकि होना इसके विपरीत चाहिए। आवश्यक है कि भारत की ज्ञान-विज्ञान परंपरा को उसका उपयुक्त स्थान तथा श्रेय मिले, जिसका एक हिस्सा अल-ख़्वारिज्मी के माध्यम से यूरोप तक पहुंचा।
भारत के गणितज्ञ और नक्षत्रविज्ञानी ब्रह्मगुप्त (598-665 ईस्वी) जिन्होंने अल ख़्वारिज्मी के लगभग दो शताब्दी पूर्व जन्म लिया था, अपने ग्रंथ ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धांत’ में पहले ही हिंदू अंक प्रणाली की व्याख्या कर चुके थे। शून्य से नौ तक के अंक, जिनके जरिए दुनिया की हर संख्या को अभिव्यक्त करना और ऐसी संख्याओं की गणना करना आसानी से संभव था। इसी ग्रंथ में उन्होंने शून्य की परिभाषा इस प्रकार दी कि जब किसी अंक से खुद उस अंक को घटाया जाता है तो परिणाम शून्य आता है। इसके साथ ही साथ उन्होंने शून्य के अद्भुत नियम दिए जैसे किसी अंक में से शून्य को घटाए जाने पर परिणाम वह अंक ही आता है और शून्य को शून्य से विभाजित करने पर भी परिणाम शून्य ही आता है। उनकी पुस्तक के कुछ अध्याय अंकगणित एवं क्षेत्रमिति से संबंधित हैं तो कुछ अध्यायों में बीज गणित का वर्णन किया गया है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता-के पद पर कार्यरत हैं।)
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