सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से हाई कोर्ट जाने को कहा।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर जाति आधारित जनगणना पर रोक लगाई गई तो सरकार यह कैसे निर्धारित करेगी कि आरक्षण कैसे प्रदान किया जाए। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह याचिका तो पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन लगती है। आप अपनी मांग को लेकर पटना हाई कोर्ट क्यों नहीं गए।
याचिका अखिलेश कुमार ने दायर की थी। इस याचिका में कहा गया था कि जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। याचिका में जातिगत जनगणना के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिका में सात बिंदुओं को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया गया था।
क्यों हो रही है जातीय जनगणना ?
दरअसल, बिहार में राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे दलित, पिछड़ों की सही संख्या मालूम चलेगी और उन्हें इसके अनुसार आगे बढ़ाया जा सकेगा। जातीय जनसंख्या के अनुसार ही राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी। 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना कराने से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया था।
हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ थी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए। केंद्र का कहना था कि जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है। हालांकि, इसके बावजूद नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर दिया । बिहार सरकार ने इस साल मई तक यह काम पूरा करने का दावा किया है।
कैसे होगी मकानों की गिनती ?
पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती शुरू की गई है। इसकी शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई है। अभी तक राज्य सरकार की तरफ से मकानों को कोई नंबर नहीं दिया गया है। वोटर आईकार्ड में अलग, नगर निगम के होल्डिंग में अलग नंबर हैं। पंचायत स्तर पर मकानों की कोई नंबरिंग ही नहीं है। शहरी क्षेत्र में कुछ मोहल्लों में मकानों की नंबरिंग है भी तो वह हाउसिंग सोसायटी की ओर से दी गई है, न कि सरकार की ओर से। अब सरकारी स्तर पर मकानों को नंबर दिया जा रहा है। इस चरण में सभी मकानों को स्थायी नंबर दिया जाएगा।
दूसरे चरण में होगी आर्थिक और जातीय जनगणना
दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना का काम होगा। इसमें लोगों के शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गजटेड, नॉन-गजटेड आदि), गाड़ी (कैटगरी), मोबाइल, किस काम में दक्षता है, आय के अन्य साधन, परिवार में कितने कमाने वाले सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित हैं, मूल जाति, उप जाति, उप की उपजाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे।
जातीय और आर्थिक जनगणना से जुड़ी अन्य खास बातें
- जातीय और आर्थिक जनगणना कराने की जिम्मेदारी बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है।
- जिला स्तर पर डीएम इसके नोडल पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं।
- जातीय गणना के लिए 500 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। यह बढ़ भी सकता है।
- आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी।
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