मीडिया की देखादेखी!
May 8, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

मीडिया की देखादेखी!

एक ओर सर्वोच्च न्यायालय हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर कब्जा जमाने वाले मुसलमानों के प्रति नरमी दिखाता है, दूसरी ओर हिंदुओं से जुड़े ऐसे ही मामले में कठोर बन जाता है। हल्द्वानी मामले में शीर्ष अदालत का रवैया सेकुलर मीडिया से अलग नहीं है

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Jan 19, 2023, 08:03 am IST
in भारत
उत्तराखंड में हल्द्वानी में प्रदर्शन करते समुदाय विशेष के लोग

उत्तराखंड में हल्द्वानी में प्रदर्शन करते समुदाय विशेष के लोग

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

हल्द्वानी में रेलवे की भूमि से कब्जाधारियों को हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों रोक लगा दी। रेलवे अधिकारियों ने उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर बेदखली के नोटिस जारी किए थे। पहले देखिए इस पर मीडिया ने क्या किया। ‘रेलवे की भूमि’ को ‘रेलवे द्वारा दावा की गई भूमि’ लिखा। यानी रेलवे की शिकायत को ही संदिग्ध बना डाला। फिर वहां कब्जा करने वालों के लिए लिखा कि ‘‘वे लोग सरकारी अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त वैध दस्तावेजों के आधार पर वर्षों से क्षेत्र में रह रहे हैं।’’

मतलब वे ‘बेचारे’ हैं और सरकारी प्रताड़ना के शिकार हैं। फिर मीडिया का अगला दांव था- इस मामले को भारतीय जनता पार्टी बनाम मुस्लिम बनाना। जिन मीडिया घरानों पर आमतौर पर संदेह किया जाता है, उन्होंने ही इस कोशिश में अग्रणी भूमिका निभाई। कुल मिलाकर वे अतिक्रमण को जायज भले ही न ठहरा सके हों, लेकिन उसे समाप्त करने को नाजायज ठहराने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

अब आएं सर्वोच्च न्यायालय पर। शीर्ष अदालत ने यह कह कर कि ‘‘7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है’’, उच्च न्यायालय के निर्देश पर आपत्ति जताते हुए रोक लगा दी और अगली तारीख दे दी। अदालत ने मामले को 7 फरवरी, 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया है और राज्य व रेलवे को एक ‘व्यावहारिक समाधान’ खोजने के लिए कहा है। जिस किसी को भी इसका निहितार्थ समझने में रुचि हो, वह देख सकता है कि मीडिया की तरह यहां भी अतिक्रमण को समाप्त करने के प्रयासों को नाजायज ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।

सबसे रोचक है- लोगों को हटाना ‘व्यावहारिक’ नहीं है और ‘व्यावहारिक समाधान’ खोजा जाना है। क्या अर्थ हुआ? वास्तव में जो कुछ मीडिया में हुआ, उसकी सीधी प्रतिच्छाया अदालत में देखी जा सकती थी। संदिग्ध मीडिया घरानों की तरह, जिन लोगों पर आमतौर पर संदेह किया जाता है, वे ही लोग सर्वोच्च न्यायालय में सक्रिय नजर आए। जैसे-कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, प्रशांत भूषण आदि। जैसे मीडिया ने इस मामले को भारतीय जनता पार्टी बनाम मुस्लिम बनाने की कोशिश की, ठीक वही माहौल सर्वोच्च न्यायालय में देखा गया।

6 फरवरी, 2021 को हरियाणा की गोहना तहसील के सरसाद गांव में एक सरकारी जमीन पर कुछ हिंदू परिवारों द्वारा कब्जे के मामले में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया था कि सरकारी या पंचायती जमीन पर अवैध कब्जे को नियमित करने का दावा नहीं किया जा सकता। किसी ने जमीन के स्वामित्व को संदिग्ध बनाने या अवैध कब्जा करने वालों को आदिकाल से वहीं रहने वाला बताने की कोशिश नहीं की।

वह भी ठंड के ही दिन थे। जिन्होंने यह फैसला दिया था, उनमें से एक आज भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। बात सिर्फ इतनी नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय यह पहले ही कह चुका है कि अगर किसी सरकारी जमीन पर किसी का कब्जा 30 वर्ष पुराना है, तो यह लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि होगी। यानी कब्जा पक्का। हल्द्वानी वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने विशेष रूप से इस बात (जिसे ‘तथ्य’ कहा गया है) पर चिंता जताई कि ‘बहुत से लोग (कब्जेदार) दशकों से पट्टों और नीलामी खरीद के आधार पर अधिकारों का दावा कर रहे हैं।’ यह भी कहा गया कि ‘‘मुद्दे के दो पहलू हैं। एक, वे पट्टों का दावा करते हैं। दूसरे, वे कहते हैं कि लोग 1947 के बाद चले गए थे और जमीनों की नीलामी की गई थी। लोग इतने सालों तक वहां रहे। कुछ पुनर्वास देना ही होगा।’’

लोगों को हटाना ‘व्यावहारिक’ नहीं है और ‘व्यावहारिक समाधान’ खोजा जाना है। क्या अर्थ हुआ? वास्तव में जो कुछ मीडिया में हुआ, उसकी सीधी प्रतिच्छाया अदालत में देखी जा सकती थी। संदिग्ध मीडिया घरानों की तरह, जिन लोगों पर आमतौर पर संदेह किया जाता है, वे ही लोग सर्वोच्च न्यायालय में सक्रिय नजर आए।

अब चूंकि 1947 और नीलामी जैसी बातें आ गई हैं, तो समझा जा सकता है कि 30 वर्ष कितनी बार बीत चुके होंगे। कई बातें, जिन्हें खुलकर कहने से संकोच किया जाता है, इस मामले का अभिन्न हिस्सा हैं। जैसे- भूमि जिहाद का पक्ष, जिस पर लव जिहाद की तरह ज्यादा चर्चा नहीं की गई है या जो सार्वजनिक संज्ञान में उस तरह नहीं है।

इस्लामवादियों द्वारा उत्तराखंड की पहाड़ियों में अतिक्रमण कर मजारों और अन्य अवैध निर्माण की खबरें अब खुलकर सामने आने लगी हैं। रक्षा विशेषज्ञ चेतावनी देते आ रहे हें कि यह इस सीमावर्ती क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने, धार्मिक और सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा करने का एक ठोस प्रयास है।

ऐसा नहीं कि हल्द्वानी का मामला बहुत सीधा-सपाट है। अपनी सीमाओं को पहचानने और उसे स्थापित करने में राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों की विफलता उल्लेखनीय है और एक हद तक इसी के कारण संबंधित संपत्ति का अतिक्रमण हुआ।

इससे अतिक्रमणकारियों को यह कहने का बहाना मिल गया कि अगर जमीन रेलवे की है तो सरकारी स्कूल, अस्पताल और ओवरहेड पानी के टैंक कैसे बने। आश्चर्यजनक बात यह है कि शीर्ष अदालत ने भी अतिक्रमणकारियों के बचाव में इस तर्क को इस प्रकार अपनाया है, जैसे न्यायपालिका नौकरशाही और सरकारी तंत्र के निचले स्तरों में भ्रष्टाचार से पूरी तरह अनभिज्ञ हो। कुछ भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण की अनुमति देना किसी अवैध चीज को वैध मान लेने का आधार नहीं हो सकता। लेकिन जब अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास की बात कही जाती है, तो वह परोक्ष रूप से इसी भ्रष्ट हरकत को प्रोत्साहित करने वाली बात होती है। ‘7 दिनों में 50,000 लोगों को उखाड़ा नहीं जा सकता’ जैसी टिप्पणी से अतिक्रमण करने वालों के इस भरोसे को निश्चित रूप से बल मिला होगा कि उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता।

सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ ही दिनों में हल्द्वानी मुद्दे को अपने हाथ में ले लिया। हालांकि जोशीमठ के मामले में, जिसमें जीवन के लिए स्पष्ट खतरा देखा जा सकता है, शीर्ष अदालत ने तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। अदालत की टिप्पणी थी कि ‘‘इस देश में हर महत्वपूर्ण चीज हमारे पास नहीं आना चाहिए।’’थोड़ा पीछे जाएं। 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण करने की अनुमति देने के लिए रेलवे की आलोचना की थी और कहा था कि सरकारी संपत्तियों का अतिक्रमण ‘75 वर्षों से एक दुखद वास्तविकता’ रही है। उस समय शीर्ष अदालत रेलवे के इसी तरह के बेदखली अभियान में पुनर्वास की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। लेकिन इस बार की सुनवाई में यह एक मानवीय मुद्दा बन कर पेश हुआ।

एक खास रवैया जहांगीरपुरी (दिल्ली) बेदखली अभियान में देखा जा चुका है। असम में चले बेदखली अभियान में देखा गया है। रेलवे भूमि अतिक्रमण के एक अन्य मामले में ही शीर्ष अदालत ने राय दी थी, ‘‘गरीबी रेखा से नीचे होना कानून का पालन न करने का आधार नहीं है।’’ एक अन्य मौके पर शीर्ष अदालत ने कहा था कि ‘‘अतिक्रमण हटाना राज्य का कर्तव्य है और अदालतों से उनके लिए निर्णय लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।’’ लेकिन अब शायद उसे लगता है कि हल्द्वानी में अतिक्रमणकारियों का बचाव करना उसकी मानवीय जिम्मेदारी है।

लगभग डेढ़ वर्ष पहले, सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के फरीदाबाद जिले में अरावली वन भूमि पर अतिक्रमण कर बनी हजारों झुग्गियों को एक महीने में खाली कराने का निर्देश दिया था। अरावली वन भूमि से एक लाख लोगों को बेदखल करने के मामले में न्यायपालिका सरकार से भी अधिक सख्त थी। यह सराहनीय है, लेकिन तमाम उदाहरणों में देखा जा सकता है कि न्यायपालिका की मानवीयता का स्तर समुदायों के सापेक्ष बदलता रहता है। आम भाषा में इसे भेदभाव कहा जाता है।

हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर मुस्लिमों ने योजनाबद्ध ढंग से कब्जा किया है, उसका इतिहास किसी कागज का मोहताज नहीं है। पहले कुछ मुस्लिम उत्तर प्रदेश के बिजनौर से हल्द्वानी की रेलवे जमीन पर झुग्गी बनाकर बसे। धीरे-धीरे उन्होंने पक्के मकान बनाए और उसके बाद भारत भर से मुसलमानों को वहां बसाया गया। मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। शायद वह इस तंत्र को अच्छी तरह समझते थे।

Topics: Muslims plannedSupreme CourtRailway landउत्तराखंडUttarakhandहल्द्वानीhaldwaniभारत के मुख्य न्यायाधीशरेलवे की भूमिमुस्लिमों ने योजनाबद्ध ढंगहल्द्वानी में रेलवे की जमीनसर्वोच्च न्यायालय
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

उत्तराखंड बना वेडिंग हब! : जहां हुआ शिव-पार्वती विवाह वहां पर संपन्न हुए 500+ विवाह, कई विदेशी जोड़ों पसंदीदा डेस्टिनेशन

नैनीताल में अवैध कब्जों की भरमार : मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में सैकड़ों सरकारी जमीनों पर बसीं बस्तियां, SIT जांच शुरू

उत्तराखंड : नंदप्रयाग में मुरारी बापू की राम कथा में पहुंचे CM धामी, सनातन संस्कृति पर कही बड़ी बात

नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मोहम्मद सुल्तान, CJI ने कहा– ‘अब नहीं सुनी जाएगी याचिका’

Uttar Pradesh Rape and conversion case

अफजाल ने नाबालिग भतीजी के साथ की दरिंदगी, दुष्कर्म कर जंगल में छोड़ा, पुलिस ने किया मुकदमा दर्ज

पूजा विश्वास (फाइल फोटो)

उत्तराखंड: लव जिहाद का शिकार हुई पूजा, मुश्ताक ने सिर धड़ से अलग कर शव नाले में फेंका, दिल दहला देगी खौफनाक साजिश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

Live Press Briefing on Operation Sindoor by Ministry of External Affairs: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

ओटीटी पर पाकिस्तानी सीरीज बैन

OTT पर पाकिस्तानी कंटेंट पर स्ट्राइक, गाने- वेब सीरीज सब बैन

सुहाना ने इस्लाम त्याग हिंदू रीति-रिवाज से की शादी

घर वापसी: मुस्लिम लड़की ने इस्लाम त्याग अपनाया सनातन धर्म, शिवम संग लिए सात फेरे

‘ऑपरेशन सिंदूर से रचा नया इतिहास’ : राजनाथ सिंह ने कहा- भारतीय सेनाओं ने दिया अद्भुत शौर्य और पराक्रम का परिचय

उत्तराखंड : केन्द्रीय मंत्री गडकरी से मिले सीएम धामी, सड़कों के लिए बजट देने का किया आग्रह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies