मुंडारी और संथाली झारखंड के जनजातीय समाज की दो प्रमुख भाषाएं हैं। इन दोनों भाषाओं में रामायण का अनुवाद हो रहा है। यही नहीं, निकट भविष्य में महाभारत का संथाली संस्करण भी आने वाला है
भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास काल में 12 वर्ष समाज के सभी वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने और उन्हें श्रेष्ठ बनाने का कार्य किया। यही नहीं, उन्होंने लंका पर चढ़ाई करने से पहले अपनी सेना में वनों और पर्वतों पर रहने वाले लोगों को शामिल किया। जनजातीय समाज को साथ जोड़ा। यही कारण है कि ईसाई मिशनरियों के दुष्प्रचार के बावजूद आज भी जनजातीय समाज के लोग भगवान राम को अपना आराध्य मानते हैं।
झारखंड के जनजातीय क्षेत्रों में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी से जुड़ी कहानियां पढ़ने और सुनने को मिलती हैं, लेकिन आज तक किसी जनजातीय भाषा में रामायण का सम्पूर्ण अनुवाद नहीं हो सका। इस कारण जनजातीय समाज के अधिकांश लोग रामायण को पढ़ने से वंचित हैं। इस कमी को दूर करने का बीड़ा उठाया है भारत सरकार के अधिकारी रहे छत्रपाल सिंह मुंडा ने।
वे मुंडारी भाषा में श्रीरामचरितमानस का अनुवाद कर रहे हैं। 70 वर्षीय श्री मुंडा खूंटी जिले के रहने वाले हैं। वे लगभग दो वर्ष से रामायण का मुंडारी भाषा में अनुवाद कर रहे हैं। अब तक उन्होंने बालकांड का अनुवाद कर लिया है। इन दिनों वे अयोध्याकांड का अनुवाद कर रहे हैं।
श्री मुंडा मुंडारी में प्रकाशित होने वाली ‘रामायण’ को ‘श्रीरामचरितमानस’ जैसा ही रखना चाहते हैं, ताकि लोग इसे आसानी से गाते हुए पढ़ सकें और समझ सकें। उन्होंने बताया कि इसमें आम बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दों को शामिल किया जा रहा है। इसके साथ ही गोस्वामीजी की तर्ज पर ही दोहा, चौपाई और सोरठा छंदों को इसमें रखा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि छत्रपाल सिंह मुंडा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में कार्यरत थे। आज से10 वर्ष पूर्व वे उपनिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वे बताते हैं, ‘‘शुरू-शुरू में मैं रामायण के कुछ प्रसंगों को मुंडारी में लिखता था। उसी दौरान एक दिन सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. निर्मल सिंह से भेंट हुई। उन्होंने आग्रह किया कि रामायण का मुंडारी में अनुवाद करें। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जब अनुवाद का काम पूरा हो जाएगा तो उसे प्रकाशित कर समाज में बंटवाया जाएगा। इससे मुझे प्रोत्साहन मिला और मैं अब उसी काम में लगा हंू। प्रभु की कृपा रही तो कुछ वर्ष में ही यह कार्य पूरा हो जाएगा।’’
छत्रपाल सिंह को रामायण पढ़ने की प्रेरणा अपने बड़े चाचा स्वर्गीय मझिया मुंडा से मिली थी। मुंडा कहते हैं, ‘‘एक समय मेरे गांव में कुछ ही लोग थे, जो रामायण पढ़ पाते थे। उनमें से एक मेरे चाचा भी थे। वे रामजी के भक्त थे और नियमित रूप से लोगों को रामायण के प्रसंग सुनाया करते थे। जब भी समय मिलता, वे मुझे भी भगवान राम, माता सीता, भरत जी, लक्ष्मण जी, राजा दशरथ आदि के जीवन के बारे में बताते थे। इस कारण रामायण के प्रति मेरा लगाव बढ़ता गया। सच पूछिए तो रामायण के प्रसंगों ने ही मुझे जीवन के प्रति सचेत किया। और आज जो कुछ कर रहा हूं या कर चुका हूं, उसमें रामायण की शिक्षा का बड़ा योगदान है।’’
संथाली में ‘रामचरितमानस’ और ‘महाभारत’
मुंडारी के साथ-साथ संथाली में भी ‘रामचरितमानस’ और ‘महाभारत’ का अनुवाद हो रहा है। जामताड़ा के रहने वाले रबिलाल हांसदा यह पुनीत कार्य कर रहे हैं। इससे पहले रबिलाल संथाली में हनुमान चालीसा का अनुवाद कर चुके हैं। संस्कृत और अध्यात्म में गहरी रुचि रखने वाले रबिलाल जनजातियों को सनातन समाज का अभिन्न अंग मानते हैं। यही कारण है कि वे ‘महाभारत’ और ‘रामचरितमानस’ के प्रसंगों को अपने समाज के युवकों को सुनाते हैं और उन्हें जीवन के उच्च मानदंड अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। रबिलाल के अनुसार संथाली भाषा ओलचिकी लिपि में लिखी जाती है।
पंडित रघुनाथ मुर्मू ने 1925 में इसकी खोज की थी। इस लिपि का संबंध प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी’ से है। यही कारण है कि संथाली भाषा में संस्कृत के अनेक शब्द समाविष्ट हैं। रबिलाल कहते हैं कि जनजातीय समाज की जीवनशैली, उनकी पूजा-पद्धति, उनकी परंपरा और संस्कृति में सनातन संस्कृति का प्रतिबिंब दिखता है।
रबिलाल के पिता मंगल हांसदा किसान और मां सुमिता गृहिणी हैं। दोनों स्वयं तो कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। रबिलाल बताते हैं कि जब वे नौवीं कक्षा के छात्र थे तब पहली बार उन्हें संस्कृत पढ़ने का अवसर मिला। आगे चलकर गुरुजनों के सान्निध्य में संस्कृत भाषा से गहरा लगाव हुआ। 2022 में उन्होंने सिद्धो कान्हू विश्वविद्यालय, दुमका से संस्कृत से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने विश्वविद्यालय में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए हैं। इस समय रबिलाल दिल्ली स्थित लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय से बीएड की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हीं की प्रेरणा से उनकी छोटी बहन तारिणी हांसदा भी सिद्धो कान्हू विश्वविद्यालय में संस्कृत से स्नातक कर रही हैं।
अनेक लोग मुंडारी और संथाली में रामायण के अनुवाद को एक दैवीय प्रेरणा मानते हैं। ऐसे लोगों में एक हैं खूंटी के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. निर्मल सिंह। वे कहते हैं कि किसी दैवीय प्रेरणा से ही यह कार्य हो रहा है। उनका यह भी कहना है कि जनजातीय क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियां यह दुष्प्रचार कर रही हैं कि ‘जनजातीय समाज के लोग हिंदू नहीं हैं।’ उनका यह भी कहना है कि मुंडारी और संथाली में रामायण और महाभारत के आने के बाद इस दुष्प्रचार को रोका जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संथाली और मुंडारी भाषा में रामकथा कहने वाले कथावचक भी तैयार किए जाएंगे। ये कथावचाक गांव-गांव में कथा करेंगे, ताकि लोग ईसाई मिशनरियों के दुष्प्रचार से दूर रहें।
एकल अभियान का योगदान
कुछ समय से झारखंड के लगभग 10,000 गांवों में एकल अभियान के कार्यकर्ता भी स्थानीय बोलियों में रामायण और महाभारत के प्रसंग सुना रहे हैं। इससे भी लोगों में एक नई जागृति आ रही है। बता दें कि इस एकल अभियान ने बड़ी संख्या में जनजातीय युवाओं और युवतियों को कथावाचक का प्रशिक्षण दिलाया है। ये कथावाचक नियमित रूप से कथा सुनाते हैं। इस कारण कई गांवों में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक वातावरण बदल गया है।
एकल अभियान के वरिष्ठ कार्यकर्ता अमरेंद्र विष्णुपुरी के अनुसार, ‘‘जनजातीय गांवों में सांस्कृतिक जागरण बहुत आवश्यक है। जहां भी सनातन संस्कृति का सूत्र कमजोर पड़ा है, वहां अनेक समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसलिए रामायण और महाभारत का क्षेत्रीय भाषाओं में जितना अनुवाद हो सके, उतना अच्छा है।’’
इन लोगों को भरोसा है कि क्षेत्रीय भाषाओं में रामायण और महाभारत के आने के बाद जनजातीय समाज किसी बहकावे में
नहीं आएगा।
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