नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश के नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने की मांग पर छह राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के जवाब दाखिल न करने पर नाराजगी जताई है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने इन राज्यों को जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका देते हुए कहा कि अगर जवाब नहीं दिया तो हम समझेंगे कि उनके पास कहने को कुछ नहीं है। कोर्ट को बताया गया कि अभी तक इस मामले में 24 राज्यों ने अपने जवाब दाखिल किए हैं। कोर्ट 21 मार्च को अगली सुनवाई करेगा।
आठ अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के एक याचिकाकर्ता देवकीनंदन ठाकुर से कहा था कि वो कोई ठोस उदाहरण कोर्ट के सामने रखें, जिसमें किसी राज्य विशेष में कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का वाजिब दर्जा मांगने पर न मिला हो।
कोर्ट ने साफ किया था कि याचिकाकर्ता की ओर से ठोस उदाहरण रखने की सूरत में हम उस पर विचार कर सकते हैं, पर हम हिंदुओं को उनकी कम आबादी वाले राज्यों में अल्पसंख्यक नहीं करार दे सकते हैं। इस मसले पर भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी अर्जी दाखिल की है। दोनों याचिकाओं पर कोर्ट एक साथ सितंबर के पहले हफ्ते में सुनवाई करेगा। याचिका में कहा गया है कि 9 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। फिर भी वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान नहीं खोल सकते हैं, जबकि संविधान अल्पसंख्यकों को ये अधिकार देता है।
इन राज्यों का दिया गया हवाला
याचिका में जिन 9 राज्यों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने का हवाला दिया गया है उनमें लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में 1 फीसदी, मिजोरम में 2.75 फीसदी, लक्षद्वीप में 2.77 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 4 फीसदी, नगालैंड में 8.74 फीसदी, मेघालय में 11.52 फीसदी, अरुणाचल में 29 फीसदी, पंजाब में 38.49 फीसदी और मणिपुर में 41.29 फीसदी हिंदू आबादी है।
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