पाकिस्तान पर रहम करना तो दूर, विश्व में कोई देश उसे गंभीरता से लेने के लिए भी तैयार नहीं है, जबकि उसकी स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी है। उसकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है, सेना उस पर बोझ बनी हुई है और तमाम देनदारियां सिर पर हैं। पाकिस्तान का यह हश्र समकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है
पिछले सप्ताह की एक छोटी-सी खबर। पाकिस्तान की सबसे बड़ी कृषि मशीनरी निर्माता कंपनी मिल्लत ट्रैक्टर्स लिमिटेड ने अपना उत्पादन अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया। किसी तरह की गलतफहमी की आवश्यकता नहीं है। यह कंपनी पाकिस्तान में मैसी फर्ग्यूसन ट्रैक्टरों की निर्माता थी। माने पुर्जे बाहर से आते थे और कंपनी उन्हें जोड़कर ट्रैक्टर बना देती थी। मिल्लत ट्रैक्टर्स ने अपनी ओर से कहा कि वह मांग में कमी और नकदी प्रवाह की समस्याओं के कारण तालाबंदी कर रही है।
दरअसल, स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान ने (जो पाकिस्तान का केंद्रीय बैंक है) आयात पर प्रतिबंध लगा रखा है और घरेलू मांग भी इतनी नहीं बची है कि उत्पादन जारी रखा जा सके। इस कारण मिल्लत ट्रैक्टर्स ही नहीं, पाकिस्तान के कई आटो पार्ट विक्रेताओं ने हाल के महीनों में कामकाज बंद कर दिया है। स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान ने आयात पर प्रतिबंध इसलिए लगा रखा है, क्योंकि पाकिस्तान के पास ट्रैक्टर या आटोमोबाइल जैसी ‘फालतू’ चीजों के लिए डॉलर नहीं हैं।
बंद हो रही कंपनियां
कंपनियों का काम स्कू्र ड्राइवर चलाना है और पुर्जे उन्हें आयात करने होते हैं। आयात नहीं तो काम बंद। दूसरी बात- ‘घरेलू मांग नहीं है।’ मांग तो होती है, लेकिन खरीदने के लिए पैसे चाहिए। वह नहीं है। अगर ट्रैक्टर खरीदने में पैसे खर्च कर दिए, तो आटा कहां से लाएंगे? वह 200 रुपए किलो चल रहा है। तीसरी बात- ‘छोटी सी खबर।’ दरअसल, पाकिस्तान में हाल के समय में इतनी कंपनियां और फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं कि अब एक और कंपनी बंद होना आम बात हो चुकी है।
वैसे भी, पाकिस्तान की हुकूमत और आवाम फिलिस्तीन-कश्मीर और इमरान खान की ड्रामेबाजी, फिल्मी अभिनेत्रियों का जनरलों द्वारा यौन शोषण जैसी महत्वपूर्ण बातों में ज्यादा व्यस्त हैं। इससे पहले खराब कारोबारी स्थिति के कारण पाकिस्तान की सबसे बड़ी कपड़ा कंपनियों में से एक निशात चुन्नियां लिमिटेड ने अनिश्चित काल के लिए एक तिहाई से अधिक उत्पादन बंद कर दिया। इसी तरह, क्रेसेंट फाइबर्स लि. ने 50 प्रतिशत, सूरज टेक्सटाइल मिल्स लि. ने 40 प्रतिशत, जबकि कोहिनूर स्पिनिंग मिल्स ने भी बढ़ती लागत और कम मांग के कारण उत्पादन घटाने की घोषणा की है। इसके पहले आटो पार्ट विक्रेताओं ने उत्पादन बंद करने की घोषणा की थी। इससे एक झटके में बड़ी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो गए।
ट्रैक्टर और वाणिज्यिक वाहनों के विभिन्न आटो पुर्जों के निर्माता बोलन कास्टिंग्स लिमिटेड ने भी उत्पादन गतिविधियों को निलंबित कर दिया है। वैसे भी, इस कंपनी की आमदनी पिछले वर्ष की तुलना में एक तिहाई घट चुकी थी। चालू वित्त वर्ष में उसकी बिक्री मात्र 47 करोड़ पाकिस्तानी रुपए रह गई थी। इसी तरह, कारों, भारी वाहनों और फार्म ट्रैक्टरों के लिए स्टील व्हील रिम्स बनाने वाली बलूचिस्तान व्हील्स लिमिटेड ने कर्म आर्डर के कारण उत्पादन गतिविधियां अनिश्चित काल के लिए बंद कर दी हैं। इस कंपनी की बिक्री मात्र 40.3 करोड़ पाकिस्तानी रुपये रह गई थी, जो पिछले वित्त वर्ष से 20 प्रतिशत कम थी। इसके अलावा, पाक सुजुकी मोटर कंपनी लिमिटेड (पीएसएमसीएल) ने भी उत्पादन गतिविधियों को निलंबित करने की घोषणा की। इस कंपनी के लिए वैसे यह कोई नई बात नहीं थी, लेकिन इस बार उसने दोपहिया वाहनों का असेंबली प्लांट भी बंद कर दिया।
पाकिस्तान की शीर्ष 5 बड़ी कंपनियों में से एक निशात चुन्नियां लिमिटेड ने अनिश्चित काल के लिए एक तिहाई से अधिक उत्पादन बंद कर दिया। इसी तरह, क्रेसेंट फाइबर्स लि. ने 50 प्रतिशत, सूरज टेक्सटाइल मिल्स लि. ने 40 प्रतिशत, जबकि कोहिनूर स्पिनिंग मिल्स ने भी बढ़ती लागत और कम मांग के कारण उत्पादन घटाने की घोषणा की है।
डुबाने वाली नीतियां
पाकिस्तान एसोसिएशन आफ आटो पार्ट्स एंड एक्सेसरीज मैन्युफैक्चरर्स का कहना है कि वेंडिंग उद्योग में स्थिति खतरनाक है, क्योंकि असेंबलरों की कम मांग के कारण अधिकांश निर्माता क्षमता के आधे पर काम कर रहे थे। पिछले साल जुलाई से बिक्री में भी गिरावट आई है। ज्यादातर आटो विक्रेता 30 प्रतिशत स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों की छंटनी कर चुके हैं और 20 फीसदी कर्मचारी कम वेतन पर काम कर रहे हैं। टोयोटा के वाहन बनाने वाली कंपनी इंडस मोटर्स ने 18 दिसंबर, 2022 को यह कहते हुए अपना उत्पादन संयंत्र बंद करने की घोषणा की कि स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान से आयात की अनुमति में देरी की जाती है। इस कारण उत्पादन जारी रखना संभव नहीं रह गया है।
कंपनी ने कहा है कि आटो सेक्टर के लिए स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान ने सीकेडी किट (पूरे वाहन को जोड़ने के लिए आवश्यक पुर्जों की किट) और यात्री कारों के आवश्यक पुर्जों के आयात के लिए पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के लिए एक नई व्यवस्था बनाई थी। इससे कंपनी और विक्रेताओं के लिए अनुमोदन में देरी होती है, जिससे कच्चे माल के आयात और निकासी में बाधा पैदा हो गई है। इससे स्टॉक नाममात्र का रह गया है, जिसके परिणामस्वरूप आपूर्ति शृंखला और उत्पादन गतिविधियां ठप हो गई हैं। यह स्थिति बीते साल मई से चली आ रही है। इन प्रतिबंधों की आड़ में अब तक लगभग 3 करोड़ डॉलर का विदेशी भुगतान पाकिस्तान ने रोक रखा है। इससे सरकार को भी करीब 8 करोड़ डॉलर के कर राजस्व का नुकसान हो चुका है। लेकिन पाकिस्तान नहाए क्या और निचोड़े क्या?
जिसकी लाठी उसकी भैंस
अब इसी उदाहरण से देखिए कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का संचालन कैसे होता है। इसे आप ‘मत्स्य न्याय’ यानी बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली को निगलना या जिसकी लाठी उसकी भैंस भी कह सकते हैं। जैसे- स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान ने आयात पर प्रतिबंध इसलिए लगा दिया, क्योंकि फौज की जरूरतें और पाकिस्तानी कुलीन वर्ग की जरूरतें पूरी करने के बाद बाकी अवाम के लिए उसके पास डॉलर नहीं बचते हैं। इससे आटो निर्माण के लिए जरूरी पुर्जों की कमी हो जाती है, लेकिन पाकिस्तान की हुकूमत के लिए यह मुद्दा नहीं होता। अगर आयातित माल की बंदरगाह से निकासी में देर हो जाती है, तो उसके लिए यही पाकिस्तानी हुकूमत भारी विलंब शुल्क और अवरोधन शुल्क वसूल कर लेती है। इसी तरह, बिक्री टैक्स रिफंड का मुद्दा है। कर तुरंत काट लिया जाता है, लेकिन जब उसे वापस करने की बारी आती है, तो उसे इच्छानुसार अटका दिया जाता है। कारण, स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान के पास इन चीजों के लिए पैसे नहीं होते।
निवेशक भी छोड़ गए
पाकिस्तान में इतनी सारी आटोमोबाइल और कपड़ा कंपनियां अचानक क्यों बंद हो रही हैं? कहा जा सकता है कि उनके पास काम करने के लिए जरूरी सामान नहीं हैं, क्योंकि आयात पर प्रतिबंध है। घरेलू बिक्री भी नहीं है। हो भी कैसे? लोगों को गाड़ी नहीं, भोजन चाहिए। लिहाजा, एक-एक करके कंपनियां बंद हो रही हैं और अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। हर उद्योग और हर व्यवसाय पीड़ित है। राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक अनिश्चितताओं के कारण सभी विदेशी निवेशक पल्ला झाड़ चुके हैं। पाकिस्तान की जो स्थितियां हैं, उनमें कोई भी निवेशक निवेश जारी नहीं रख सकता है। विदेशी मुद्रा अनुपलब्ध है और इसका असर आटो-क्षेत्र, फार्मास्यूटिकल्स, स्वास्थ्य सेवा सहित हर क्षेत्र पर बड़े पैमाने पर पड़ा है। आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि एक अर्थव्यवस्था जो आयात पर निर्भर है, उसने आयात बंद कर रखा है।
किस तरह, ऐसे देखिए। पाकिस्तान की एक योजना है पंजाब एजुकेशनल एंडाउमेंट फंड और एक है पाकिस्तान हाई एजुकेशन कमीशन। दोनों का एक ही काम है- विदेशों में पढ़ने के लिए भेजे जा रहे पाकिस्तान के छात्रों को छात्रवृत्ति देना। चूंकि सरकारी पैसा मिलता है, इसलिए 14 देशों के विश्वविद्यालय भी इन्हें आसानी से दाखिला दे देते हैं। लेकिन इन छात्रों को मई से छात्रवृत्ति नहीं मिल रही है। इस कारण कुछ छात्रों को तो यूरोप, आस्ट्रेलिया आदि में सड़कों पर सोना पड़ रहा है, क्योंकि वे कमरे का किराया नहीं चुका सकते हैं। उनके पास पाकिस्तान जाने के लिए भी पैसे नहीं हैं, और अगर पहुंच भी जाएं, तो वहां भी कुछ नहीं है। यह स्थिति स्टेट बैंक आॅफ पाकिस्तान द्वारा डॉलर निकासी पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण है।
आटो क्षेत्र की कई कंपनियों ने भी उत्पादन बंद कर दिया है। टोयोटा के वाहन बनाने वाली कंपनी इंडस मोटर्स ने तो यह कहते हुए अपना उत्पादन संयंत्र बंद करने की घोषणा की कि स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान से आयात की अनुमति में देरी की जाती है। इससे बड़ी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं।
भीख और किराया आधारित अर्थव्यवस्था
यह सब अचानक नहीं हुआ। अपनी पैदाइश के बाद से ही पाकिस्तान का उच्च वर्ग विदेशी उदारता पर फलता-फूलता रहा। पाकिस्तान के एक तरफ भारत है, दूसरी तरफ चीन है और तीसरी तरफ सोवियत संघ था। लिहाजा, उसकी भू-राजनीतिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण थी और पाकिस्तान इसके किराए पर गुजर-बसर ही नहीं, ऐश करता रहा। अब उसके पैरों तले भू-राजनीतिक रेत खिसक चुकी है। इतने वर्ष तक पाकिस्तान अगर टिका रह सका, तो मात्र इस कारण कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के शेख तंत्र और अमेरिका-चीन की हुकूमतों ने उसे थाम रखा था। अमेरिका ने 9/11 आतकी हमले के बावजूद मुशर्रफ की तानाशाही को एक ‘लाइफ लाइन’ मुहैया करा दी थी। इसे तकनीकी शब्दों में ऋण पुनर्गठन कहते हैं, जिसका वास्तविक अर्थ होता है- उधार फिलहाल या हमेशा के लिए माफ कर देना। अमेरिका ने इस्लामाबाद और रावलपिंडी में इतने डॉलर झोंके कि पाकिस्तान आतंकवादियों की सफलताओं को दुआएं देने लगा। पाकिस्तान के लिए यह एक ऐसे सपने के साकार होने जैसा था, जिसे वह जिया-उल-हक के समय भी देख चुका था और व्यवहार में अपनी भू-राजनीतिक स्थिति के महत्व पर आतंकवाद का खतरा जता कर भुनाना भी सीख चुका था।
पाकिस्तान एक तरफ आतंकवाद के नाम पर डॉलर वसूलता रहा और दूसरी तरफ सोने के अंडे देने वाले आतंकवादियों को भी पालता रहा। जल्द ही पाकिस्तान ने अपनी भू-राजनीतिक स्थिति के साथ-साथ अपनी परमाणु संपत्ति का मोल-भाव करना भी सीख लिया। कोई नहीं चाहेगा कि परमाणु हथियारों वाले किसी देश का पतन हो और उसके ‘पाव भर के बम’ आतंकवादियों के हाथ लग जाएं। उस पर इस्लाम का कार्ड। फिर पाकिस्तान ने अपनी पीढ़ियों को सिखाया है कि वह भारत की पश्चिमी सीमा पर नहीं, बल्कि मध्य-पूर्व के खाड़ी क्षेत्र की पूर्वी सीमा पर है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पहले ही लंबे समय से पाकिस्तान के रणनीतिक सहयोगी बने हुए थे। लिहाजा, वह भी उसके राजनीतिक गारंटर और ऋण देने वाले अंतिम दानदाता की भूमिका में आ गए।
ड्रैगन का प्रवेश
जब वाशिंगटन को पाकिस्तान की दोहरी नीतियों का अहसास होना शुरू हुआ, तब तक एक नया आर्थिक खिलाड़ी, चीन मैदान में उतर चुका था। चीन के पास उस समय नकदी काफी थी और अपना वैश्विक आर्थिक प्रभाव का विस्तार करने की भी जल्दी थी। उधर, पाकिस्तान को एक ऐसे उद्धारकर्ता की आवश्यकता थी, जो एक तो अमेरिका की कमी की पूर्ति कर सके और दूसरे धुर भारत विरोधी हो। चीन का हरेक हथियार, परमाणु और मिसाइल तकनीक की तस्करी के तमाम मामलों के साथ पाकिस्तान को पहले ही उपलब्ध था।
खुद चीन के राजदूत ने कहा था, ‘‘पाकिस्तान तो चीन का इस्राइल है।’’ चीन के भारत की घेराबंदी के प्रयासों में पाकिस्तान एक बहुत उपयोगी मोहरा बन कर उभरा और इसे औपचारिक तौर पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) वाला रिश्ता कहा गया। लेकिन वास्तव में चीन अमेरिका-ब्रिटेन की तरह नादान नहीं था। उसे अपने एक-एक डॉलर की कीमत का अहसास था और वह पाकिस्तान की तुलना में बहुत ज्यादा चतुर-सुजान था। चीन ने पाकिस्तान को अपने सारे हथियार मुहैया कराए, लेकिन तकनीक के नाम पर सिर्फ पेंचकस दिया। जो पाकिस्तान एक रॉकेट नहीं बना सका है, उसके पास बड़ी-बड़ी मिसाइलें आ गई। किंतु व्यवहार में उनकी आपूर्ति के जरिए उनका नियंत्रण चीन के ही पास बना हुआ है।
फिर आई सीपीईसी की बात। पाकिस्तान मुफ्त में अरबों डॉलर बरसने के ख्वाब देखता रहा और चीन ने अपनी सिर्फ अतिरिक्त मशीनरी पाकिस्तान में डंप करने के अलावा कुछ नहीं किया। यहां तक कि सीपीईसी की परियोजनाओं में पाकिस्तानियों को मिट्टी ढोने का काम भी नहीं मिल सका, जो वे खाड़ी के देशों में बखूबी करते आ रहे थे। उल्टे पाकिस्तान को चीनी मजदूरों-इंजीनियरों वगैरह की सुरक्षा की मुफ्त सेवा देनी पड़ रही है। प्रकाशित समाचारों के अनुसार, 7 हजार चीनियों की सुरक्षा में 15 हजार पाकिस्तानी सैनिक तैनात किए गए हैं।
उधर, चीन ने अपने सारे निवेश को ऋण में बदला और उस पर ऐसा ब्याज लगाया कि पाकिस्तान की हुकूमत आज तक उन ब्याज दरों को सार्वजनिक नहीं कर सकी है। अनेक कारणों से पाकिस्तान का चीनी सपना बुरी तरह टूट चुका है। हालांकि पाकिस्तानी हुकूमत और उनका उच्च वर्ग इसे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। चीनियों के बकाया भुगतान अटक गए, परियोजनाएं ठप हो गईं और बाकी कसर कोरोना वायरस ने निकाल दी।
फौज की मुख्य व्यापारिक शाखा, फौजी फाउंडेशन ने भारी वृद्धि दर्ज की है। 2011 और 2015 के बीच फौजी फाउंडेशन की संपत्ति 78 प्रतिशत बढ़ी है और इसकी वार्षिक आय 1.5 अरब डॉलर से अधिक है। सैन्य-समर्थित संगठन का रियल एस्टेट, भोजन और संचार उद्योग तक में हिस्सेदारी है।
उम्मीदों पर पानी फिरा
बादल फटने और लगातार बारिश से आई बाढ़ ने व्यापक तबाही मचा दी। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के तहत आने वाले कई ड्रीम प्रोजेक्ट, जिसमें बिजली, सड़क और रेल नेटवर्क शामिल हैं, इस बार की बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। सीपीईसी की चीनी कहानी पाकिस्तानी सपनों से भिन्न है। चीन का सारा जोर अपने विकास की गति को बनाए रखने पर है। ऐसे में यदि चीन का आर्थिक विकास अच्छा खासा सुस्त हो जाता है, तो यह उसकी आंतरिक राजनीति के लिए गहरी परेशानी की बात होगी। सीपीईसी को लेकर चीनी लक्ष्यों में सबसे आगे था सुरक्षित शिपिंग लेन का निर्माण करना, जिससे वह मलक्का जलडमरूमध्य के रास्ते तेल और गैस के आयात से बच सके। इसी तरह, वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) में से गलियारा 1 और 2 ईंधन और खनिजों के साथ-साथ मध्य एशिया, मध्य-पूर्व और अफ्रीका तक पहुंचने हेतु भी चीन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
दूसरा चीनी लक्ष्य था, अपनी अतिरिक्त क्षमता को ठिकाने लगाना। इस्पात, सीमेंट, थोक रसायनों और भारी मशीनरी में चीन की स्थापित क्षमता अब कम उपयोग के दौर में प्रवेश कर चुकी है। इस अतिरिक्त क्षमता का उपयोग करने के लिए पड़ोसी देशों में बुनियादी ढांचे का निर्माण एक सुविधाजनक तरीका था।
उधर, पाकिस्तान के लिए सीपीईसी सिर्फ एक गलियारा नहीं था। वह पाकिस्तान की सारी उम्मीदों का केंद्र था। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि सीपीईसी से उसकी वह अर्थव्यवस्था बदल जाएगी, जिसके बारे में उसकी लगातार बढ़ती जनसंख्या सवाल करने लगी थी। लेकिन वास्तव में सीपीईसी एक ऐसी परियोजना साबित हुई है, जो पाकिस्तान को उल्टे बर्बाद करती जा रही है। सीपीईसी की वित्तीय और सामाजिक संरचना का जो चित्र 15 साल के मास्टर प्लान के रूप में सामने आया है, उसके अनुसार तो सीपीईसी के नियमों और शर्तों के तहत पाकिस्तान पूरी तरह चीन के अधीन होने जा रहा है।
इस मास्टर प्लान में वह सब कुछ है, जिसकी कल्पना 18वीं और 19वीं सदी के साम्राज्यवादियों ने की होगी। इसमें चीनी उद्योग हैं, चीनी संस्कृति है, चीनी आधिपत्य है। अगले 15 साल के लिए पाकिस्तान के प्रति चीनी इरादे और प्राथमिकताएं क्या हैं, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि चीन ने सीपीईसी के लिए जो 62 अरब डॉलर का निवेश किया है, उसके तहत हजारों एकड़ कृषि भूमि उसे पट्टे पर दी जानी है। पाकिस्तान में बीज की किस्मों से लेकर सिंचाई तकनीक तक सब कुछ चीनी होना है।
पेशावर से कराची तक तमाम शहरों में निगेहबानी और निगरानी चीन की रहेगी। जो राष्ट्रीय फाइबर-आप्टिक बैकबोन बनाई जाएगी, उससे पाकिस्तान को इंटरनेट के साथ चीनी संस्कृति के प्रसार के लिए एक टीवी चैनल भी मिलेगा, जिसे पाकिस्तान को स्थानीय तौर पर प्रसारित करना होगा। सीपीईसी से पहले ही पाकिस्तान के बाजार में चीन का एकतरफा प्रभुत्व स्थापित हो चुका है। घरेलू उपकरणों से लेकर, मोबाइल और दूरसंचार, खनन और खनिज, कृषि और स्टॉक एक्सचेंज तक, सबका मालिक चीन है। उर्वरक और कीटनाशक भी चीनी होंगे, फसल भी चीन काटेगा।
पाकिस्तान का ‘केजरीवाल’ फैक्टर
इस बीच, इमरान खान ने अमेरिका की आंखों में फिर एक बार धूल झोंके जा सकने की संभावना को अपने बयानों और हरकतों से पूरी तरह खत्म कर दिया। इमरान खान ने तुर्की और मलेशिया के साथ गठबंधन की कोशिश करके और सऊदी शेख द्वारा दी गई निजी भेंट को चोर बाजार में बेचकर पाकिस्तान की नीयत का खुलासा अरब शेखों के सामने कर दिया। अंत में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से वादा करके पलटकर इमरान खान पाकिस्तान के लिए खैरात ही नहीं, उधार मिल सकने के भी सारे रास्ते बंद कर दिए। अब पाकिस्तान किसी तरह का नाटक करने के लायक भी नहीं रह गया।
सिंध में आई बाढ़ उसका नवीनतम नाटक जरूर है, लेकिन पाकिस्तानी विश्वसनीयता का पानी तेजी से उतर चुका है। बाढ़ का पानी भी ज्यादा देर तक उसे तैरती हालत में बनाए नहीं रख सकता है। आप कह सकते हैं कि वह आर्थिक मॉडल, जो मूल रूप से जबरन वसूली रैकेट था, वह समाप्त हो गया है। फिर भी, इमरान खान की लोकप्रियता लगभग बनी हुई है। खाली खजाने पर भी मुफ्तखोरी की इमरान खान की योजनाएं लगभग 50 प्रतिशत पाकिस्तानी अवाम को भा रही हैं। देश भले ही खत्म हो जाए, लोगों को सबकुछ मुफ्त चाहिए।
इधर, खाड़ी देशों के शेखशाही में भी एक बड़ा बदलाव आ चुका है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व उभरा है, जो शेष विश्व से कहीं ज्यादा जुड़ा हुआ है। अरब शेखशाही अब अपनी अर्थव्यवस्था, समाज और विदेश नीति को तेल खत्म होने के बाद के समय के लिहाज से तैयार कर रही है। अब्राहमिक समझौते के बाद इस्राइल उनके लिए शत्रु तो छोड़िए, अछूत भी नहीं रह गया है। इसने पाकिस्तान के इस्लाम कार्ड को भी गैर उपयोगी बना दिया है।
पाकिस्तान की फौज
इस सबके बावजूद, पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा उसकी अपनी फौज है, जो पिछले 40 वर्ष में सब कुछ नष्ट कर चुकी है। पाकिस्तान की कई आर्थिक समस्याओं के पीछे सीधे उसकी फौज है। पाकिस्तान के लिए उसकी फौज दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक बोझ है। पहला बोझ कर्ज की अदायगी है। आधिकारिक तौर पर वार्षिक बजट का 20 प्रतिशत से अधिक फौज को दिया जाता है, लेकिन पाकिस्तानी संसाधनों पर अपना पहला हक मानते हुए फौज इससे कहीं ज्यादा छीन लेती है। फौज का वास्तविक खर्च अन्य बजट लाइनों में ले जाकर छिपाया जाता है।
संसद को सैन्य बजट पर गंभीरता से बहस करने की अलिखित मनाही है। उसके खर्च को संसद आडिट भी नहीं करती है। फौज का मुख्य तर्क यह है कि उसे भारत के खतरे से पाकिस्तान को बचाना है। इस तर्क को बचाए रखने के लिए उसे भारत के खतरे का हौवा बनाए रखना होता है। इस तनाव को बनाए रखने के लिए पाकिस्तान आतंकवादी समूहों पर निर्भर है।
पाकिस्तानी फौज लगभग 50 वाणिज्यिक संस्थाएं चलाती है। फौज की मुख्य व्यापारिक शाखा, फौजी फाउंडेशन ने भारी वृद्धि दर्ज की है। 2011 और 2015 के बीच फौजी फाउंडेशन की संपत्ति 78 प्रतिशत बढ़ी है और इसकी वार्षिक आय 1.5 अरब डॉलर से अधिक है। सैन्य-समर्थित संगठन की रियल एस्टेट, भोजन और संचार उद्योग तक में हिस्सेदारी है। पिछले वर्ष अक्तूबर में पाकिस्तान के लेखा परीक्षक ने फौज के वित्तीय मामलों में गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया है। अनुमान है कि फौज ने 2500 करोड़ रुपये का घोटाला किया है, जिसमें उच्चाधिकारी शामिल हैं।
वर्ष 2021-22 के लिए रक्षा सेवा खातों पर आडिट रिपोर्ट के अनुसार, फौज ने 21 अरब रुपये, वायुसेना ने 1.6 अरब रुपये और नौसेना ने 1.6 अरब रुपये खर्च किए हैं। आडिट रिपोर्ट में इंटर सर्विसेज आर्गनाइजेशन में 6.6 करोड़ रुपये और मिलिट्री अकाउंटेंट जनरल द्वारा 20.3 करोड़ रुपये के गबन की ओर इशारा किया गया है। इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान की सैन्य जमीनों व छावनियों में 2 अरब रुपये की अनियमितताएं हैं। फौज की कैंटीन से संबंधित खरीद में 18 अरब रुपये का घोटाला हुआ और खरीद मानदंडों का पालन किए बिना जारी की गई निविदाओं को अचानक रद्द करने से 2 अरब रुपये का नुकसान हुआ है। लिहाजा, अब पाकिस्तानी फौज कहती है कि वह ‘‘पाकिस्तानी की वैचारिक सीमा की रक्षा करती है।’’
कर्ज मिलने की संभावना नहीं
पिछले दिनों पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ कैबिनेट के अन्य सदस्यों के साथ जिनेवा पहुंचे, ताकि बाढ़ के नाम पर दुनिया से मदद (शुद्ध दान) मांगा जा सके। शाहबाज ने पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय भागीदारों से अगले तीन वर्ष में 8 अरब डॉलर की मांग की। पाकिस्तान को करीब 9 अरब डॉलर देने का वादा किया गया। अगले दिन इस्लामाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन में वित्त मंत्री इशहाक डार ने खुलासा किया कि इसमें से 8.7 अरब डॉलर के वादे ऋण देने के थे। इन ऋणों की शर्तें क्या हैं? यह कोई नहीं जानता। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि शर्तें उदार होंगी। हालांकि यह पहले ही स्पष्ट कर दिया गया था कि हर ऋण पर देने वाला नजर रखेगा। ऋण देने का वादा करने वालों में इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक और विश्व बैंक शामिल थे। यह कर्ज भी मिल पाने की संभावना नहीं है।
कारण? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि पाकिस्तानी हुकूमत ने पिछले छह माह से बाढ़ पीड़ितों की कोई परवाह नहीं की। अब जब विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया है, कोई उधार नहीं दे रहा है, तो वे बाढ़ पीड़ितों का इस्तेमाल मुफ्त डॉलर मांगने के लिए कर रहे हैं। फर्क इस बात से पड़ता है कि ‘ऋण’ का वादा किया गया है। ‘ऋण’ का वादा तो सऊदी अरब ने भी किया था। इसके एवज में उसने एक साधारण सी शर्त रखी कि पाकिस्तान पहले आईएमएफ से कम से कम एक अरब डॉलर (ऋण के रूप में) लेकर दिखाए, जिसके लिए आईएमएफ ने बहुत बड़ी शर्त लगाई हुई है। शर्त यह है कि पाकिस्तानियों को कम से कम पहले कर जमा करना होगा और यह साफ करना होगा कि कर्ज के पैसे का इस्तेमाल चीन का कर्ज चुकाने में नहीं होगा। जाहिर है यही शर्त सारे ऋणदाताओं की रहेगी। यानी शाहबाज शरीफ जनता से कर भी लें और चीन की चुगली भी करें। यह असंभव है।
पाकिस्तान में एक बोरी (100 किलो) गेहूं आटा की कीमत 11,000 रुपये है। चुनाव सिर पर हैं। ऊपर से इमरान खान लोगों को भड़का रहे हैं। आम पाकिस्तानी यह नहीं देख पा रहे हैं कि इमरान उन्हें बेवकूफ बना रहे हैं। शरीफ सार्वजनिक भाषणों में स्वीकार कर रहे हैं कि अब किसी भी देश का दौरा करने के लिए बहुत साहस (वास्तव में अपमान) की जरूरत है, क्योंकि वे सभी जानते हैं कि ‘‘हम भीख मांगने आए हैं; छोटे और मित्र देश भी अब हमसे भिखारी जैसा व्यवहार करते हैं।’’
सबसे रोचक बात यह है कि पाकिस्तानी जनता ही नहीं, वहां के कथित पढ़े-लिखे लोग भी इस बात से दुखी हैं कि उन्हें कर्ज तो मिल सकता है, मुफ्त दान नहीं मिल रहा है। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान का मुंह मुफ्त के डॉलरों से भरा रखना दुनिया की जिम्मेदारी है। वैसे भी, वित्त मंत्री इशहाक डार के अनुसार, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करना सउदी और चीन की जिम्मेदारी है। वैसे कर्ज हो या मुफ्त दान, पाकिस्तान को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। पाकिस्तान के लिए दोनों समान हैं, क्योंकि वह कभी ऋण वापस नहीं चुकाता है। दिक्कत यह है कि यह बात दुनिया समझ गई है।
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