‘पाञ्चजन्य’ अपनी यात्रा के 75वर्ष पूर्ण कर मकर संक्रांति के दिन आज अपनी ‘हीरक जयंती’ मना रहा है। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के होटल अशोक में किया जा रहा है, जिसमें देशभर के कई दिग्गज शामिल हुए हैं। इस दौरान देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से वरिष्ठ पत्रकार तृप्ति श्रीवास्तव और पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने उनसे संवाद किया।
मुफ्त की रेवड़ियों पर पूछे गए सवाल पर निर्मला सीतारमण ने कहा कि इसकी चर्चा तेजी से हो रही है। लोग एक-दूसरे को फंसाने के लिए ये विषय उठाते हैं। लेकिन विषय यह नहीं है, विषय यह है कि चुनाव के समय जो वादे करते हैं, सरकार में आने के बाद क्या उन फ्री के वादों को पूरा कर सकते हैं। यह सच्चाई तब ध्यान में आती है जब सरकार में आते हो। जैसे कि बिजली का मुद्दा। यदि आप मुफ्त में दे सकते हो तो इसे बजट में दिखाओ। उसके लिए व्यवस्था करो, साल के अंत में वह हिसाब-किताब दो। लेकिन ऐसा नहीं होता है। वोट तो आपने कमाया लेकिन जब भुगतान का मामला आता है तो वह मोदी जी पर डाल दो। ये ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि पावर सेक्टर में आज यही दिक्कत हो रही है। आप डिस्कॉम जनरेटिंग कंपनी को पैसा नहीं देते। मुफ्त में बिजली बटवारे का जिम्मा लेने को कोई तैयार नहीं है। आपने वादा किया तो पेमेंट करो। विषय यह है।
आम जनता को ये चीजें कैसे समझ आएंगी। इस सवाल के जवाब में कहा कि जनता को समझाना चाहिए। लेकिन ये कठिन है। इसलिए इसका होमवर्क करके बात करें। एसेंबली का विवरण दिखाएं कि उसके लिए पैसा कहां है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि चैरिटी के लिए सोशल वेलफेयर के लिए जो भी खर्च उठाना है तो वह अब भी उठा रहे हैं। इसके साथ ही वर्ष 2020 से पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सपेंडिचर पर फोकस किया गया है।
पाकिस्तान का मुद्दा उठा
पाकिस्तान में गरीबी का मुद्दा भी उठा। पाकिस्तान की नीति पर भारत के रुख पर पूछे गए सवाल पर केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान ने कभी भी हमें मोस्ट फेवर नेशन का दर्जा नहीं दिया। और इससे पहले कितनी भी कोशिश हुई। ट्रेड फेयर हो, व्यापार हो इस पर भी पाकिस्तान से सही रिस्पांस नहीं आया। पुलवामा पर अटैक के बाद हमने ट्रेड रिलेशनशिप को उतना नहीं रखा।
विदेशी संस्थाओं द्वारा भारत के निगेटिव नैरेटिव पर उन्होंने कहा कि ये सब इंडेक्स बनाने वाली संस्था हैं। उनके सरकार द्वारा पैसा मिलेगा कि नहीं यह पता नहीं, लेकिन ये सरकारी नहीं हैं। अपने यहां के कुछ वर्ग उनके डेटा को अपनी ही सरकार के खिलाफ यूज करते हैं। वे कैसे गलत इंडेक्स तैयार करते हैं, उसके खिलाफ भी लोग लिख रहे हैं। रिलीजियस फ्रीडम पर यूएसए में एक बॉडी है वह भारत के बारे में लिखते हैं। उनके नाम में यूएन का नाम है तो लोग भ्रमित होते है। वह एनजीओ है। आप देखिये, भारत का कोई एक एनजीओ ऐसा बोलेगा तो विदेश में क्या उसे कोई समर्थन मिलेगा? लेकिन अपने यहां ऐसा होता है। हमें इन सभी विषयों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। सही समय पर सटीक जवाब देना चाहिए। इस तरह के एनजीओ अपनी मेथेडोलॉजी बताएं, आप उनसे पूछें। भारत में लोग उनके पेरोल में भी हो सकते हैं।
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