‘पाञ्चजन्य’ अपनी यात्रा के 75वर्ष पूर्ण कर मकर संक्रांति के दिन आज अपनी ‘हीरक जयंती’ मना रहा है। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के अशोक होटल में किया जा रहा है, जिसमें देशभर के कई दिग्गज शामिल हुए हैं। इस दौरान केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने खास बातचीत की।
मुस्लिम श्रेष्ठता बोध का प्रश्न सामाजिक विमर्श के रूप में आया है। क्या मौलाना वर्ग ने मुस्लिम समाज को एक अलग तरह से श्रेष्ठता बोध में भरने का काम किया है। इस प्रश्न के जवाब में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि इसे इतिहास के परिप्रेष्य में देखें तो पहला कुफ्र का फतवा किसी गैर मुस्लिम के लिए नहीं। इस्लाम की पहली सदी की बात है। उस व्यक्तित्व के खिलाफ आया जिसकी परवरिश पैगंबर साहब ने की थी। हजरत अली के खिलाफ पहला फतवा लगा। उसी फतवे के नतीजे में उनका कत्ल किया गया। फतवा कभी भी धार्मिक कारणों से नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि दो सौ बार आयत आई है कुरान में जहां कहा गया है कि ये दुनिया में जो तुम्हारे बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जब मरने के बाद मेरे पास आओगे तो हम फैसला करेंगे कि सही कौन है बुरा कौन है। कुरान ये अधिकार तो पैगंबर को भी नहीं देता कि सही या बुरे का फैसला करें।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि सन 80 में मुझे चुनाव लड़ना था। इंदिरा जी से कहा कि मैं देहात में पैदा हुआ हूं तो कानपुर मत भेजिए। तो इंदिरा जी ने कहा कि आपकी हिंदी अच्छी है और हम 1952 से यह सीट नहीं जीते। उस समय हिंदी का कोई शब्द भी आ जाए तो कुफ्र का फतवा जारी हो जाता था। मेरे खिलाफ फतवा जारी हुआ कि मैं हिंदी बोलता हूं, तिलक लगवाता हूं, आरती करवाता हूं। मेरे नाम में भी उन्हें खामी नजर आई। दाराशिकोह पर कुफ्र का फतवा जारी किया गया। फतवा केवल राजनीतिक हथियार के रूप में लिया जाता रहा है।
टिप्पणियाँ