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छत्तीसगढ़ धर्मांतरण मामला : चर्च के निशाने पर बस्तर, नारायणपुर में जनजाति समाज के सामने अपने को बचाने का संकट

भगवान राम का नारायणपुर मिशनरी पैठ के बाद खो रहा मूल पहचान, ईसाई आतंक के भयभीत हुआ स्थानीय जनजाति समाज, अस्तित्व बचाने सड़क पर आई लड़ाई

by डॉ. मयंक चतुर्वेदी
Jan 10, 2023, 09:40 am IST
in भारत, छत्तीसगढ़
जनजाति समाज के लोगों ने पिछले दिनों नारायणपुर में चक्का जाम किया था।

जनजाति समाज के लोगों ने पिछले दिनों नारायणपुर में चक्का जाम किया था।

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बस्तर क्षेत्र का जिला नारायणपुर जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है भगवान विष्णु का वह स्थान जहां उनके भक्त बहुतायत में रहते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में आज का नारायणपुर जिला कभी भगवान विष्णु एवं उनके अवतार श्रीराम की भक्ति में इस तरह डूबा हुआ था कि इसका नाम ही नारायणपुर हो गया। लेकिन अब यह बदला-बदला नजर आ रहा है। यहां का जनजाति समाज चर्च के आतंक से निशाने पर है। स्थिति इतनी भयावह है कि स्थानीय समाज अपने अस्तित्व को बचाए रखने की अंतिम लड़ाई सड़कों पर लड़ता दिख रहा है।

मतान्तरण के खेल में सबसे अधिक प्रताड़ित हो रहे बच्चे

सबसे अधिक संकट कोई झेल रहा है तो वे बच्चे हैं, जिन्हें रात को नींद नहीं और दिन में आराम नहीं। शिक्षा तो जैसे इस संघर्ष के चलते छूट ही गई है। बच्चों का अधिकार क्या होता है, यह यहां के बालकों को शायद ही पता हो! तभी तो बाल अधिकार के अंतर्गत आनेवाली परिभाषा बच्चों को जीवन का अधिकार, भोजन पोषण, स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा, पहचान, नाम, राष्ट्रीयता, परिवार, मनोरंजन, सुरक्षा और बच्चों का गैर कानूनी व्यापार के मायने आज उन्हें नहीं मालूम हैं। उन्हें तो यह भी नहीं पता कि चर्च के इस आतंक के कारण उन्हें अभी कितने दिनों तक ऐसे ही खानाबदोश जैसी जिन्दगी बितानी होगी।

बच्चों के साथ हो रहे व्यवहार पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) अपनी नजर रखे हुए है। आयोग के अध्येक्ष प्रियंक कानूनगो से इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया है कि पूरे प्रकरण पर नजर बनी हुई है। राज्य सरकार से बच्चों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा जाएगा।

भगवान राम ने सबसे अधिक वनवास का समय यहीं बिताया

इस जिले का इतिहास देखें तो पता चलता है कि भगवान राम ने यहां वनवास काल का सबसे अधिक समय बिताया है। पारंपरिक रूप से यह क्षेत्र रामायण में दंडकारण्य और महाभारत में कोसल साम्राज्य का हिस्सा रहा है। नारायणपुर से 11 किलोमीटर दूर राकस हाड़ा है, श्रीराम ने यहां राक्षसों का विनाश किया था। एक छोटी सी पहाड़ी पर राक्षसों की अस्थियां, पत्थरों के रूप में अब भी मिलती हैं। पत्थर को जब जलाया जाता है या आपस में रगड़ा जाता है तो इनमें हड्डियों जैसी महक आती है। भारत में इस तरह का पाया जानेवाला यह एकमात्र पहला पत्थर है, जिसके जलने से हड्डी की महक आती है। राकस हाड़ा का अर्थ हैं-राक्षस की हड्डियां।

सैकड़ों राक्षसों का वध करने के मौजूद हैं साक्ष्यं

यहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम, भैया लक्ष्मण और मां जानकी के साथ सैकड़ों राक्षसों का वध करते नारायणपुर होते हुए छोटे डूंगर पहुंचे थे, यहां से बारसूर, फिर चित्रकूट में चौमास बिताने के बाद इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव नारायण पाल गए। यहां से जगदलपुर होते हुए कूटूबसर की ओर चले गए थे। मतलब यहां के ग्रामीणों के मुताबिक राजा राम के द्वारा इस क्षेत्र में राक्षसों का विनाश किया गया था। फिर आज रामपथगमन के शोधकर्ता भी यही कह रहे हैं । लम्बे समय तक इस क्षेत्र में राम, लक्ष्मण और सीता ने वनवास के दौरान अपना समय गुजारा था।

ईसाईयत से विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ”मावली मेला” भी संकट में आया

जहां के कण-कण में भगवान राम बसे हैं वहा का जनजाति समाज ईसाई मतान्तरण के विरोध में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। प्रचुर वन संपदा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए देश भर में विशेष पहचान रखनेवाले इस नारायणपुर में अपनी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए यहां हर साल विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ”मावली मेला” आयोजित होता है। हजारों साल की इस प्रथा पर भी चर्च के कारण से संकट उत्पन्न हो गया है।

मेले के शुभारंभ के समय रस्म अदायगी में देवी-देवता और आंगादेव के साथ-साथ क्षेत्र के सभी पुजारी बड़ी संख्या में माता मावली के परघाव रस्म अदायगी में शामिल होते हैं और माता मावली का आशीर्वाद लेकर परघाव की रस्म में जुलूस निकालकर बुधवारी बाजार में देवी-देवताओं के मिलन के बाद आड़मावली माता मंदिर के ढाई परिक्रमा की रस्म पूरी करते हैं। शोभा यात्रा के दौरान देवी देवताओ और आंगा देवों का जगह जगह पर मिलन और नाचने गाने का सिलसिला चलता रहता है। इस मेले में यहां की संस्कृति को देखने के लिए महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के कई जिलों के लोगों के साथ ही विदेश से भी लोग आते हैं। मेला क्षेत्र का सबसे बड़ा लोक उत्सव है। लेकिन आज इसी उत्सव को आयोजित करनेवालों का दर्द है कि अब हमारे युवा इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं ले रहे। घरों में जनसंख्या भले ही बढ़ी हो, लेकिन मेले में आनेवालों की कमी हो रही है। ईसाई मिशनरी के भ्रम एवं जनजाति परम्पयरा से दूर करने की उनकी साजिश में भोला-भाला समाज फंसता जा रहा है। यही कारण है कि आज बस्तर संभाग में ईसाइयों के आतंक के कारण जनजातीय समाज के द्वारा घोषित किए गए बंद एवं चक्काजाम को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है।

ईसाई छल जारी रहा तो नष्ट हो जाएगी दंडकारण्य संस्कृति

जनजाति समाज ने यूंही किसी घटना के प्रतिकार में बंद का आह्वान नहीं किया, बल्कि इसके पीछे चर्च षड्यंत्रकारियों की वो अनैतिक नीतियां हैं, जिसका बुरा प्रभाव जनजाति समाज पर पड़ रहा है। अब ये इससे पूरी तरह से मुक्त होना चाहते हैं। जनजाति समाज के आज अधिकांश लोग खुले तौर पर यह कहते नजर आ रहे हैं कि जिस तेजी से ईसाई छल एवं मतांतरण का खेल हो रहा है, यदि इसी प्रकार चलता रहा तो हमारी संस्कृति पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। पहले देव उठाने के लिए लोगों की भीड़ लगती थी लेकिन अब लोगों को इसके लिए भी बुलाना पड़ता है। वनवासी समाज हिंसक नहीं है बल्कि उसे अपनी परंपराएं सबसे ज्यादा प्यारी हैं, इसलिए आज वह ईसाई मतांतरण के विरोध में सड़कों पर विरोध करने के लिए मजबूर है।

पहले गरीब और बीमार लोगों को बना रहे शिकार

नारायणपुर में गरांजी गांव निवासी सीताराम पटेल का कहना है कि कोई भी हमारी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश करेगा तो हम उसका विरोध करेंगे । यहां जनजाति समाज का यह भी मानना है कि यदि उनकी जमीन पर गैर वनवासी को दफनाया जाएगा तो उनकी जमीन कलुषित हो जाएगी। देवता नाराज होंगे और उनकी शक्ति भी कम होगी। उनका एक आरोप यह भी है कि चर्च जानेवाले लोगों में एक बात समान रूप से देखी जा सकती कि वह किसी न किसी बीमारी से जूझते नजर आते हैं।

ईसाई मिशनरी सबसे पहले गरीब और बीमार लोगों को ही अपना शिकार बना रही है। लालच देकर बड़े पैमाने पर ईसाई मतांतरण किया जा रहा है। इस साजिश को अंजाम देने के किए ईसाइयों ने जनजातीय किशोरियों, युवतियों को प्रेम जाल में फंसाना शुरू किया है। चंगाई सभा में विभिन्न बीमारियों के ‘ईसाई’ बनने के बाद ठीक हो जाने की बात कही जाती है, जिससे प्रभावित होकर सैकड़ों लोगों ने यहां ईसाई मत अपना लिया है ।

मतांतरित ईसाई बना रहे जनजाति रीति-रिवाजों का मजाक

जनजाति गौरव समाज के अध्यक्ष पुरुषोत्तम शाह का कहना है कि पूरे जिले में ईसाइयों के द्वारा अवैध मतांतरण की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, जिससे न सिर्फ समाज में वैमनस्यता बढ़ रहा है, बल्कि मैत्रीपूर्ण संबंध का ताना-बाना भी टूट रहा है। जनजातीय क्षेत्रों में मतांतरित ईसाइयों के द्वारा जनजाति संस्कृति, पूजन पद्धति, परंपरा एवं रीति-रिवाजों का उपहास उड़ाया जा रहा है। आरोप यह भी है कि मूल संस्कृति को मानने वाले जनजाति नागरिकों पर हमला करने के अलावा उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई, जिसके बाद से पूरे क्षेत्र में तनाव का माहौल है।

मूल जनजाति समाज के संरक्षकों का मिशनरी से विरोध स्वाभाविक

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीएस रावते का इस बात पर जोर है कि बस्तर में मतांतरण पहले कभी हिंसक नहीं रहा, जोकि अब होने लगा है। यदि इसी तरह चलता रहा तो बस्‍तर की मूल जनजाति संस्कृीति पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। इसलिए मूल जनजाति समाज के संरक्षकों का मिशनरी से विरोध स्वाभाविक है। सर्व आदिवासी समाज महिला प्रभाग की अध्यक्ष रंजना का चर्च पर आरोप है कि बस्तर संभाग के नारायणपुर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत एडक़ा के आश्रित ग्राम गौरों में मूल जनजातीय संस्कृति मानने वाले ग्रामीणों पर नव मतांतरित ईसाइयों के समूह ने पादरी के नेतृत्व में प्राणघातक हमला किया। ईसाइयों ने लाठी-डंडों एवं धारदार हथियारों का प्रयोग कर मूल जनजातीय संस्कृति के लोगों के हत्या का प्रयास किया था। बीते 31 दिसंबर और एक जनवरी को ईसाई उपद्रवियों ने आतंक मचाते हुए जनजाति नागरिकों पर जानलेवा हमला किया, जिसमें बड़ी संख्या में जनजाति नागरिक घायल हुए हैं, जिसका कि हम सभी विरोध कर रहे हैं ।

उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद जनजाति समाज ने पुलिस के समक्ष आरोपियों की सूची सौंपी और शिकायत दर्ज कराई। इसके बावजूद पुलिस-प्रशासन ने उचित कार्रवाई नहीं की। इन सभी घटनाक्रमों के चलते जनजाति समाज ने शांतिपूर्ण तरीके से बस्तर संभाग के सभी जिलों में बंद का आह्वान किया, जिसके बाद देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में इसका असर दिखाई देने लगा है। वह कहती हैं कि सुकमा एसपी की मतांतरण के संबंध में जारी पत्र को सरकार यदि गंभीरतापूर्वक लेती तो पूरे छत्तीसगढ़ बस्तर संभाग सहित नारायणपुर के भोले-भाले समाज को सड़कों पर नहीं आना पड़ता। जनजाति समाज के हितों की रक्षा करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। तत्कालिक एसपी सुकमा ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा था कि स्थानीय आदिवासियों को बहला-फुसलाकर मतांतरण किया जा रहा है। ईसाई मिशनरी मतांतरण के लिए वनवासियों को लगातार प्रेरित कर रहे हैं। इसके बावजूद राज्य सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

मतांतरण की अनैतिक गतिविधियां

छत्तीसगढ़ में रोमन कैथोलिक चर्च से जुड़े लोगों की संख्या 2.25 लाख और मेनलाइन चर्च से जुड़े लोगों की संख्या लगभग 1.5 लाख है। इसमें से अधिकांश जनजाति समाज से मतांतरित होकर ईसाई बने हैं। यह लोगों की संख्या आधिकारिक रूप से घोषित ईसाइयों की है जो आधिकारिक रूप से बने चर्चों में जाते हैं। लेकिन राज्य में कई असंगठित पैराचर्च जोकि हर जनजातीय बस्ती में मौजूद हैं। ऐसे असंगठित पैराचर्चों में जानेवाले लोगों की राज्य भर में कुल संख्या 9 लाख है, जिसमें कि बस्तर संभाग के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। अब ऐसे असंगठित चर्च में रविवार को होनेवाली प्रार्थना सभाओं में गैर-ईसाई जनजातियों को शामिल किया जाता है, जिसके बाद विभिन्न तरीके से उनके मतांतरण की योजना बनाई जाती है। इन असंगठित चर्च के मायाजाल के माध्यम से ही जनजातियों की शुरुआती स्क्रीनिंग होती है, जिसके बाद धन, नौकरी, विवाह, स्वास्थ्य, समाज और अन्य प्रकार के प्रलोभन देकर उन्हें ईसाई बनाया जाता है।

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