कहानी संग्रह समाज में मौजूद मगर उपेक्षित कर दिये गये उन मुद्दों और पहलुओं को उजागर करती है जिनके विषय में प्रायः हमारा आधुनिक समाज बात करने से हिचकिचाता है
सुप्रसिद्ध कथाकार, रंगकर्मी व कवि सच्चिदानंद जोशी जी की कहानी संग्रह ‘पुत्रिकामेष्टि’ कहानियों की दुनिया में एक नया हस्तक्षेप है। इसमें कुल मिलाकार 14 कहानियां हैं सभी कहानियां अपने आप में विशिष्ट हैं। यह कहानी संग्रह समाज में मौजूद मगर उपेक्षित कर दिये गये उन मुद्दों और पहलुओं को उजागर करती है जिनके विषय में प्रायः हमारा आधुनिक समाज बात करने से हिचकिचाता है। इन सभी कहानियों के किरदार आपकों अपने आस-पास की दुनिया से रूबरू होने का एक मौका देते हैं उनकी समस्यांए और चितांए आपके और हमारे जीवन में घटित हो रही घटनाओं का ही एक सिंहावलोकन है।
पुस्तक का शीर्षक ही अपने आप में विशिष्ट है यह एक नये विचार एक नये दृष्टिकोण को जन्म देता है और अनायास ही ऐसा कौतुहल पाठक के मन में पैदा करता है कि वह इन कहानियों से गुजरे बिना रह नहीं सकता। भारतीय समाज में पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का प्रचलन एक आम बात है मगर पुत्रिकामेष्टि यज्ञ यह वास्तव में एक नयी दृष्टि है, संवेदनशीलता, आत्मीयता, स्त्रीयों के प्रति सम्मान तथा थर्ड जेन्डर के साथ हो रहे अन्याय और भेदभावपूर्ण व्यवहार और वस्तुस्थिति का सटीक वर्णन यहां मिलता है। समसामयिक दृष्टि से भी यह विषय महत्वपूर्ण है।
यह कहानी हमें पारंपरिकता और आधुनिकता से लबरेज मिश्रित समाज का दर्शन कराती है। कहानी हमें रूबरू कराती है उस आधुनिक नयी पीढी जो वर्ग, जाति, लिंग आदिके भेदभाव को दरकिनार कर मानवता और प्रेम की राह पर अग्रसर है। इस कहानी में पिता के रूप में परंपरागत, रूढीवादी समाज पर तंज कसा गया है, वहीं दूसरी ओर जातिगत संरचना और बंधे-बधांये ढांचे से हटकर सोचने वाली नयी पीढी, नयी सोचको परिलिक्षित करती है।जहां आधुनिकता ने पश्चिमीकरण की चादर नहीं ओढी हैं नैतिक मूल्य आज भी किसी न किसी रूप में जिंदा हैं। प्रेम, दया, मानवीयता, अहिंसा, क्षमा जैसे उच्च आदर्श आज भी विद्यमान है।
निर्माल्य कहानी भारतीय समाज में मौजूद संस्कारों में नामकरण संस्कार की महता को भी उजागर करता है। व्यक्ति के नाम के पीछे पूरी एक कहानी छिपि होती है। आपके नाम से आपके गुणों की पहचान होती है। कहा भी गया है जतो नाम ततो गुण’’ अर्थात जैसा नाम वैसा गुण’निर्माल्य कहानी में केन्द्रीय पात्र का नाम ही अपने आप में विशिष्ट है, पूरी कहानी का आकर्षण ही इस नाम के पीछे के रहस्य पर केन्द्रीत है। यह एक कलाकार के संघर्ष की कहानी है जिसका जीवन का ध्येय ही अपने कला के माध्यम से अपनी पहचान बनाना है। समाज में आज भी ऐसे कई जीवन हैं जो निर्माल्य जैसी परिस्थिति के शिकार हैं जो अपने प्राकृतिक अधिकारों से भी वंचित हैं। जो एकाकी जीवन जीने के लिए विवश हैं। किसी भी रिश्तें में सामाजिक स्वीकार्यता कितनी मायने रखती है यह बात कहानी के माध्यम से उजागर होती है।
क्षमा छोटन को चाहिए यह हमें एक ऐसे समाज से रूबरू कराती है जो आधुनिकता की ओर कदम बढाते हुए भी अपने मूल्यों को नहीं भूला है। जिसका फलक व्यापक है और जडे गहरी है। यह कहानी हमें पारंपरिकता और आधुनिकता से लबरेज मिश्रित समाज का दर्शन कराती है। कहानी हमें रूबरू कराती है उस आधुनिक नयी पीढी जो वर्ग, जाति, लिंग आदिके भेदभाव को दरकिनार कर मानवता और प्रेम की राह पर अग्रसर है। इस कहानी में पिता के रूप में परंपरागत, रूढीवादी समाज पर तंज कसा गया है, वहीं दूसरी ओर जातिगत संरचना और बंधे-बधांये ढांचे से हटकर सोचने वाली नयी पीढी, नयी सोचको परिलिक्षित करती है।जहां आधुनिकता ने पश्चिमीकरण की चादर नहीं ओढी हैं नैतिक मूल्य आज भी किसी न किसी रूप में जिंदा हैं। प्रेम, दया, मानवीयता, अहिंसा, क्षमा जैसे उच्च आदर्श आज भी विद्यमान है। संबन्धों की गरमाहट और शीतल छांव आज भी बनी हुई है बस सबकुछ भूलकर एक कदम आगे बढाने की देरी है। यह बात हमारे पारिवारिक और सामाजिक संबन्धों पर भी निर्भर करती है।
अपना घर, बेसन की पपड़िया यह दो कहानियां प्रेम और अपनत्व के भाव से सराबोर हैं वहीं दूसरी ओर सीनियर सीटीजन की अवस्था के प्रति एक आक्रोश भी व्यक्त होता है आज हम तमाम तरह की भौतिक सुख सुविधाओं से लबरेज आधुनिक जीवन जी रहें हैं विकास के नित नये-नये आयामों को छू रहें हैं मगर हमारे अपने जिन्हें हमारी सबसे अधिक आश्यकता है वह उपेक्षित हैं चाहें हम बच्चों की बात करें या सीनियर सिटीजन की। आधुनिक जीवन शैली की त्रासदी को भी यह कहानियां व्यक्त करती हैं।
नमाज कहानी हमें निस्वार्थ कर्म करने की प्रेरणा देती है ईश्वर की पूजा अर्चना या पांच बार की नमाज अदा करने से भी अधिक सुख और आत्मसंतुष्टी मानवसेवा और जनकल्याण जैसे कार्यों में परिणत होने से प्राप्त होता है। संतोष ही परम सुख है। नमाज कहानी को हम सौहार्द और संवेदना की कहानी कह सकते है। आज के परिवेश में कथित विमर्श करने वाले और सामाजिक सौहार्द खराब करने की कोशिश करने वाले तथाकथित प्रगतिशील वामीपंथियों को यह कहानी पढ़नी चाहिए।
संग्रह की कुछ कहानियां जैसे पुत्रिकामेष्टि, निर्माल्य, क्षमा छोटन को चाहिए यह वास्तव में इन पर उपन्यास भी लिखा जा सकता था लेेकिन इनको पढ़ कर लगता है कि लेखक अपनी व्यस्तता के कारण इनका संक्षेपण कर कहानी में समेट दिया है। इस संग्रह की कई कहानियां जिनपर नाटक और फिल्म बनाई जानी चाहिए जिससे इन गंभिर विषयों को समाज को एक दृष्टि मीले। साथ ही इन कहानियों को विश्वविद्यालयी राजनीति से उपर उठ कर हिन्दी के पाठयक्रमों में भी लगाया जाना चाहिए और इन पर शोध होना चाहिए। अंत में सभी कहानियां सराहनीय व पठनीय हैं, भाषा बहुत सरल व सहज है। उनकी कहानियों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति चिंतन साफ झलकता है।
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