पाकिस्तान में फिर एक बार वही हुआ। 22 नवंबर को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर (थार) जिले के मीठी निवासी लव कुमार मेघवाड़ नाम के सिंधी हिंदू लड़के को पुलिस ने कुफ्र (ईशनिंदा) के आरोप में गिरफ्तार किया था। लव ने भगवान को संबोधित करते हुए एक फेसबुक पोस्ट में भगवान के बजाय ‘मौला’ का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान में यह कुफ्र है। इस पर लव के खिलाफ पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298 और 153ए के तहत मामला दर्ज किया गया है।
लव कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया है और पाकिस्तान के शरीयत कानून के अनुसार इस पर उसे मृत्यु की भी सजा हो सकती है। उसका दोष केवल यही है, जैसा कि माना गया है, उसने इस्लाम की बेअदबी की है, या तिरस्कार- असम्मान किया है। हो सकता है कि उसको मृत्यु दंड दिया जाए, जिसकी बहुत संभावना है। इस तरह पाकिस्तान की जो लगभग एक प्रतिशत हिन्दू आबादी है, उसमें से एक और व्यक्ति कम हो सकता है। यह अतिश्योक्ति नहीं, वरन सच है। पाकिस्तान न केवल मुस्लिम आबादी बढ़ाते जाने के लिए पूरी तरह बौखला चुका है, बल्कि उस आबादी की तुलना में हिन्दू आबादी कम करने के लिए भी बेहद बेचैन रहता है। पाकिस्तान में जनसंख्या वृद्धि की दर पूरे विश्व के औसत (0 दशमलव 9 प्रतिशत) से दुगुने से भी अधिक (1 दशमलव 9 प्रतिशत) है और इन दिनों पूरा पाकिस्तान इन सपनों में गद्गद् है कि 2075 तक उसकी आबादी 100 करोड़ हो जाएगी।
‘जिए सिंध फ्रीडम मूवमेंट’ के संस्थापक और केंद्रीय मुख्य आयोजक जफर साहितो ने एक पोस्ट में कहा है कि लव कुमार ने (अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में) भगवान से शिकायत की थी कि उसे अफसोस होता है जब हर दिन हिंदू लड़कियों को उनके घरों से अगवा किया जाता है और यह कि उनके परिवारों पर क्या बीतती होगी। उसने भगवान से शिकायत की थी कि जब ऐसी लड़कियों के माता-पिता रोते हैं तो भगवान उनकी नहीं सुनते। जहां तक ईश्वर के लिए ‘मौला’ शब्द के प्रयोग का सवाल है, तो सिंध में हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी ईश्वर के लिए मौला, भगवान, धारी, ईश्वर शब्द का प्रयोग करते हैं।
लेकिन बात किसी अपराध की नहीं है, बल्कि इससे कहीं गहरी है। लव कुमार से पहले प्रोफेसर नूतन कुमार कुफ्र के आरोप में कई वर्षों से पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं। उनका मूल अपराध यह है कि वे हिन्दू क्यों हैं। वे मुसलमान क्यों नहीं बने। लव कुमार मेघवाड़ का मूल अपराध यह है कि उसने परोक्ष रूप से ही सही, पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों के रोजाना हो रहे अपहरणों और जबरन कन्वर्जन की बात, उस पर कोई कार्रवाई कभी न होने की बात क्यों कही। पाकिस्तान में मुस्लिम अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाना भी मौत की सजा सुनाए जाने लायक अपराध है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाया था, तो इसका बहुत विरोध किया गया था और पूरे विश्व में यह प्रचार किया गया था कि किस तरह से भारत में एक मुसलमान विरोधी सरकार है और जो यहां के तथाकथित अल्पसंख्यक हैं, वे कहने लगे थे कि यह सरकार अल्पसंख्यक विरोधी है। लेकिन अब पाकिस्तान में या अन्यत्र हिन्दुओं पर इस तरह अत्याचार होने पर सीएए का विरोध करने वाले यह सारे लोग मुंह सिल कर बैठे नजर आते हैं।
सीएए भारत ने लाया, लेकिन वास्तव में इस्लाम का लक्ष्य पूरे विश्व को इस्लाम में कन्वर्ट करना है। इस्लाम जिस कयामत की अवधारणा पर विश्वास करता है, जिसके तहत सारे मुसलमानों को जन्नत और गैर मुसलमानों को दोजख माने नरक मिलना है, वह कयामत तब आयेगी जब लगभग पूरा विश्व इस्लाम में कन्वर्ट हो जाएगा। इसी कारण हर प्रकार के जिहाद का मुख्य लक्ष्य पूरे विश्व को इस्लाम में कन्वर्ट करा लेना है।
वास्तव में सीएए में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक विवाद जैसा कुछ भी नहीं है। बात केवल इतनी है कि पाकिस्तान गणतंत्र नहीं है और भारत एक गणतंत्र और जनतंत्र है। बात केवल इतनी है कि भारत एक सभ्य और उदार देश है, जबकि पाकिस्तान एक इस्लामी देश है। बात केवल इतनी है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज में जितनी भी स्वतंत्रताएं दी गयी हैं, उनका अनुचित लाभ अल्पसंख्यक होने की आड़ लेकर उठाया जा रहा है। बात केवल इतनी है कि पाकिस्तान में इसका ठीक विपरीत किया जा रहा है, व्यवस्थित ढंग से किया जा रहा है और अल्पसंख्यक हिन्दुओं के सफाए के इरादे से किया जा रहा है। कुफ्र का आरोप उसका सिर्फ एक औजार है।
सीएए भारत ने लाया, लेकिन वास्तव में इस्लाम का लक्ष्य पूरे विश्व को इस्लाम में कन्वर्ट करना है। इस्लाम जिस कयामत की अवधारणा पर विश्वास करता है, जिसके तहत सारे मुसलमानों को जन्नत और गैर मुसलमानों को दोजख माने नरक मिलना है, वह कयामत तब आयेगी जब लगभग पूरा विश्व इस्लाम में कन्वर्ट हो जाएगा। इसी कारण हर प्रकार के जिहाद का मुख्य लक्ष्य पूरे विश्व को इस्लाम में कन्वर्ट करा लेना है।
भारत के इस्लामीकरण की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ने की आशंका से डरा हुआ? मौत के डर से बड़ा डर शायद ही कोई और होता हो। सच्चा डर यही है कि पाकिस्तान में रहने वाला कोई हिन्दू यह सुनिश्चित नहीं हो सकता है कि पलक झपकते ही उसके जीवन का अंत हो सकता है, उस पर कुफ्र का आरोप लगाकर उसे मौत की सजा दी जा सकती है, उसका अपहरण हो सकता है, जबरन कन्वर्जन हो सकता है, बलात्कार हो सकता है, कुछ भी हो सकता है, किसी भी क्षण हो सकता है।
जब भारत स्वतंत्र, या विभाजित हुआ था तो बांग्लादेश में और पाकिस्तान में 10 प्रतिशत से अधिक हिन्दू समाज था, जो आज लगभग एक प्रतिशत रह गया है। किसी भी देश में मुसलमानों के बहुसंख्यक होने पर उन्हें अल्पसंख्यकों की अधिकार की कोई चिंता होने का कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है। यह भी उसी इस्लामी धारणा के अनुरूप है कि पूरी दुनिया में इस्लाम को विजेता होना ही है, और जो गैर मुसलमान हैं उनको तो हारना
ही है।
वापस सीएए विरोध के बिन्दु पर लौटें। इस्लाम का वही एजेंडा भारत में भी है। अगर भारत पाकिस्तान या अन्यत्र प्रताड़ित किए जा रहे हिन्दुओं को शरण देता है, तो इससे इस्लाम का एजेंडा कमजोर पड़ता है।
इस्लाम का एजेंडा कमजोर पड़ने का अहसास होते ही भारत में तीन शब्द प्रचलित हुए- ‘डरा हुआ मुसलमान’। किस बात से डरा हुआ? क्या भारत के इस्लामीकरण की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ने की आशंका से डरा हुआ? मौत के डर से बड़ा डर शायद ही कोई और होता हो। सच्चा डर यही है कि पाकिस्तान में रहने वाला कोई हिन्दू यह सुनिश्चित नहीं हो सकता है कि पलक झपकते ही उसके जीवन का अंत हो सकता है, उस पर कुफ्र का आरोप लगाकर उसे मौत की सजा दी जा सकती है, उसका अपहरण हो सकता है, जबरन कन्वर्जन हो सकता है, बलात्कार हो सकता है, कुछ भी हो सकता है, किसी भी क्षण हो सकता है।
इस पृष्ठभूमि में सीएए का प्रावधान वास्तव में इन अल्पसंख्यकों की जीवनरक्षा का प्रावधान है। जान और माल की, सम्मान और न्याय की सुरक्षा का प्रावधान। उन अल्पसंख्यकों के पास जल्द से जल्द पाकिस्तान से निकल भागने के अलावा जान बचाने का कोई विकल्प नहीं है।
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