भारत और इसकी सनातन संस्कृति को नष्ट करने के लिए सदियों से आक्रमण होते रहे हैं। जो भी आक्रांता आए वे भारत के ही रहकर हो गए। लेकिन इस्लामिक आक्रांताओं के साथ ऐसा नहीं हुआ। वह चाहे गोरी हो या गजनवी या औरंगजेब, इन सभी ने हिंदुस्तान की आत्मा पर चोट किया। मंदिरों को तोड़ने और इन्हें लूटने की चेष्टाएं जारी रहीं। इतिहास में भी इन आक्रांताओं का महिमा मंडन किया गया। मुगलों को महान बताया गया। यह सिलसिला आज भी जारी है। एनसीपी के नेता जितेंद्र अव्हाड़ ने हाल ही में छत्रपति शंभा जी महाराज को लेकर विवादित बयान दिया है। साथ ही यह भी कहा कि औरंगजेब हिंदू विरोधी नहीं था।
कोई हिंदुत्व पर चोट करता है तो कोई भगवा पर। महापुरुषों के योगदान को भुला दिया जाता है। गुरुओं के बलिदान को भी भूल जाते हैं। या उनके बलिदान को भुलाने की कोशिश करते हैं। क्या गुरु तेगबहादुर जी का शीश इस क्रूर मुगल आक्रांता औरंगजेब ने नहीं कटवाया था? उनके अनुयायियों को आरे से नहीं चीरा गया था? वीर साहिबजादों का बलिदान याद नहीं है क्या?
गुरु तेग बहादुर जी को औरंगजेब ने हिन्दुओं की मदद करने और इस्लाम नहीं अपनाने के कारण मौत की सजा सुनाई थी और उनका सिर कलम करा दिया था। धर्म और मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर का स्थान अद्वितीय है और एक धर्म रक्षक के रूप में उनके महान बलिदान को समूचा विश्व नहीं भूल सकता।
उस समय हिंदुस्तान में औरंगजेब का शासन था। पूरी कट्टरता और निर्ममता के साथ इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया जा रहा था। हर तरफ जुल्म का साम्राज्य था और खून की नदियां बहाकर लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश किया जा रहा था।
मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवा दी गईं और पुजारियों, साधु-संतों की हत्याएं की गईं। हिन्दुओं पर लगातार बढ़ते अत्याचारों और भारी-भरकम नए-नए कर लाद दिए जाने से भयभीत बहुत सारे हिन्दुओं ने उस दौर में धर्म परिवर्तन कराकर मजबूरन इस्लाम अपना लिया। औरंगजेब के अत्याचारों के उसी दौर में कुछ कश्मीरी पंडित मदद की आशा और विश्वास के साथ गुरु तेग बहादुर के पास पहुंचे और कहा कि उनके पास अब दो ही रास्ते बचे हैं कि या तो वे मुस्लिम बन जाएं या अपना सिर कटाएं। उनकी पीड़ा सुन गुरु जी ने गुरु नानक की पंक्तियां दोहराते हुए कहा:-
जे तउ प्रेम खेलण का चाउ। सिर धर तली गली मेरी आउ।।
इत मारग पैर धरो जै। सिर दीजै कणि न कीजै।।
गुरु जी ने कहा कि तुम लोग बादशाह से जाकर कहो कि हमारा पीर तेग बहादुर है, अगर वह मुसलमान हो जाए तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।
कश्मीरी पंडितों ने यह संदेश औरंगजेब तक पहुंचाया। औरंगजेब क्रोध से आगबबूला हो गया। उसने गुरु तेग बहादुर को दिल्ली बुलाकर उनके परम प्रिय शिष्यों मतिदास, दयालदास और सतीदास के साथ बंदी बना लिया। औरंगजेब के फरमान पर जल्लादों ने भाई मतिदास को दो तख्तों के बीच एक शिकंजे में बाधकर उनके सिर पर आरा रखकर आरे से चीर दिया और उनकी बोटी-बोटी काट दी।
धर्मांध औरंगजेब ने भाई दयालदास को गर्म तेल के कड़ाह में डालकर उबालने का हुक्म दिया। सैनिकों ने उसके हुक्म पर उनके हाथ-पैर बांधकर उबलते हुए तेल के कड़ाह में डालकर उन्हें बड़ी दर्दनाक मौत दी। भाई सतीदास को आततायी औरंगजेब ने कपास से लपेटकर जिंदा जला देने का हुक्म दिया। भाई सतीदास का शरीर धू-धूकर जल गया।
औरंगजेब के आदेश पर काजी ने गुरू तेग बहादुर से कहा कि हिन्दुओं के पीर! तुम्हारे सामने तीन ही रास्ते हैं, पहला, इस्लाम कबूल कर लो, दूसरा, करामात दिखाओ और तीसरा, मरने के लिए तैयार हो जाओ। गुरु तेग बहादुर ने तीसरा रास्ता चुना। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करने का हुक्म सुना दिया। दिल्ली के चांदनी चौक के खुले मैदान में एक विशाल वृक्ष के नीचे गुरु तेग बहादुर समाधि में लीन थे, वहीं औरंगजेब का जल्लाद जलालुद्दीन तलवार लेकर खड़ा था। काजी के इशारे पर जल्लाद ने गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया।
ये सब सुनकर भी यदि मुगलों का गुणगान किया जाए तो यह विडंबना ही कही जाएगी। जिन्होंने भारत की माटी को निर्दोष लोगों के रक्त से लाल किया उन्हें कोई कैसे क्षमा कर सकता है?
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