गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने स्पष्ट कहा कि पूर्ण मुक्ति के लिए औपनिवेशिक मानसिकता से आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने गोवा को मौज-मस्ती की धरती से मंथन की धरती बनाने पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने गोवा के सर्वांगीण विकास के लिए अपनी योजनाओं का खाका भी खींचा। गोवा में पाञ्चजन्य के सागर मंथन कार्यक्रम के सुशासन संवाद में श्री प्रमोद सावंत के साथ पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के प्रमुख अंश
प्रधानमंत्री के पंच प्रण में विशेष उल्लेख है कि औपनिवेशिक दासता की मानसिकता से मुक्त हुए बिना भारत आगे नहीं बढ़ सकता। गोवा में औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के लिए तथ्यों के तौर पर चीजें लोगों के बीच जाएं, कड़वाहट के तौर पर न जाएं, इसके लिए आप क्या पहल करेंगे?
सबसे पहले मैं नमन करता हूं स्वातंत्र्य वीरों को, चाहे वे गोवा के रहे हों या देश भर से आए सत्याग्राही हों, जिन्होंने गोवा मुक्ति संग्राम में बलिदान दिया, त्याग किया। यह सही है कि देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है और गोवा अपनी मुक्ति की 61वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन पूर्ण मुक्ति के लिए औपनिवेशिक मानसिकता से आगे बढ़ने की जरूरत है। लोगों को इस औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति मिले, हम इसी बात को लेकर चल रहे हैं।
गोवा में भाजपा दोबारा सत्ता में है। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर की समाज में जो छवि थी, सादा, विनम्र और निष्ठावान की, वैसी ही छवि आपकी भी है। लेकिन छवि के साथ सुशासन भी हो, यह अटल जी के समय में देश ने पहली बार अनुभव किया था। सुशासन के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
आपने सुशासन की बात की, आपने अटल जी को याद किया। इस अवसर पर मैं सबसे पहले अटल जी का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने सत्याग्रहियों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा, पेंशन आदि सुविधाएं दीं। और आज की यह सभा जहां हो रही है, इस स्थान का उद्घाटन भी अटल जी के ही हाथों हुआ था, और यह गोवा के लिए बहुत बड़ी बात है। और, उसी सुशासन को लेकर मनोहर पर्रीकर जी हमेशा चलते थे। इसमें मैं कहूंगा कि सबसे आगे हम हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जो आत्मनिर्भर भारत का मिशन है, उसमें हमारा ‘स्वयंपूर्ण गोवा’ सुशासन का एक संकल्प है। हम इसी को लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं।
गोवा के लिए आत्मनिर्भरता का एक बड़ा अंश पर्यटन से जुड़ा हुआ है। इसे देखें तो गोवा की छवि मौज-मस्ती के एक ठिकाने की है। परंतु इस राज्य की एक बड़ी सांस्कृतिक विरासत भी है। क्या गोवा मौज-मस्ती का ठिकाना ही बना रहेगा या फिर गोवा की असली कहानी बताने के बारे में या सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के बारे में भी सोचा जा सकता है?
गोवा को लोगों ने हमेशा पर्यटन गंतव्य के तौर पर देखा है। यहां युवा वर्ग सूर्य, रेत और समुद्र (सन, सैंड एंड सी) और बीच पर्यटन के लिए आता है। इसे मौज-मस्ती के ठिकाने के रूप में देखा गया है। इससे इतर, गोवा आध्यात्मिक पर्यटन, बुद्धिजीवी पर्यटन, वेलनेस पर्यटन के लिए भी जाना जाए, इसके लिए हमारी कोशिश चल रही है। हम इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इन प्रयासों से गोवा भविष्य में इस प्रकार के पर्यटन के लिए भी जाना जाएगा।
11 दिसम्बर को पूरा देश गोवा की उपलब्धियां देख रहा था। गोवा के खाते में दो चीजें थीं। एक अलग एयरपोर्ट की बात थी। गोवा एक छोटा-सा राज्य है परंतु कनेक्टिविटी की दृष्टि से इसकी बहुत-सी जरूरतें बाकी थीं। और आपने आयुर्वेद में संभावनाएं देखी। आप स्वयं डॉक्टर हैं, इसलिए तो कहीं आपका इस पर जोर नहीं है या सचमुच आप ऐसी संभावनाएं देखते हैं कि गोवा आयुर्वेद का भी एक हब हो सकता है?
मैं धन्यवाद करूंगा भारत सरकार के आयुष मंत्रालय का। जब हमारे श्रीपाद नायक जी आयुष मंत्री थे, तभी दिल्ली के बाद दूसरा आयुष अस्पताल गोवा में प्रारंभ हुआ। इसके अलावा यहां 8 दिसंबर से 11 दिसंबर तक चार दिन का विश्व आयुर्वेद सम्मेलन हुआ। आयुर्वेद और गोवा की दृष्टि से वह बहुत ही महत्वपूर्ण था। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आयुर्वेद सम्मेलन के समापन के दिन ही मोपा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और आयुष अस्पताल का उद्घाटन किया। मुझे लगता है कि गोवा के पर्यटन में एक बड़ा योगदान इन दोनों परियोजनाओं से मिलेगा। गोवा जैसे छोटे राज्य में मोपा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट दूसरा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है।
अभी सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी आई थी कन्वर्जन को लेकर। छल-बल से, किसी भी तरह से कन्वर्जन स्वीकार्य नहीं है। उस टिप्पणी को कहीं और सरसरी निगाह से देखा जा सकता है मगर गोवा में तो वह ‘मैग्नीफाइईग’ ग्लास से देखने वाली बात है। गोवा का अपना इतिहास है। आप उन टिप्पणियों को कैसे देखते हैं और आगे का रास्ता कैसा है?
गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा 1961 से अभी तक समान नागरिक संहिता का पालन करता आ रहा है। बीच-बीच में यहां छोटी-मोटी कन्वर्जन की घटनाएं होती थीं परंतु हमारी सरकार ने इस तरह की गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी है। इस सिलसिले में एक-दो गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। इससे आगे गोवा के लोग, चाहे वे हिंदू हों, कैथोलिक हों, सभी समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, भाईचारे के साथ यहां रहते हैं। परंतु कुछ लोग, जो स्थानांतरित होकर यहां आए हैं, उन लोगों को गरीबी के कारण या अन्य किसी कारण हो, कन्वर्जन के लिए कुछ लोग प्रवृत्त करते हैं, लेकिन इस तरह की कार्रवाई आगे सहन नहीं की जाएगी।
गोवा की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा अभी पर्यटन पर निर्भर है। आने वाले वर्षों में बाकी दुनिया गोवा को कैसे देखे? यहां की अर्थव्यवस्था में और कौन-से कारक, कौन से आयाम हो सकते हैं, किन चीजों को जोड़ने की कल्पना आपके मन में है?
अगर यहां की अर्थव्यवस्था की बात करें तो सबसे पहले खनन है। यहां से लौह अयस्क निर्यात होता था जो राज्य की अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान करता था। वर्ष 2012 से 2022 तक सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध से खनन यहां बंद हो चुका था, परंतु अब हम फिर यहां खनन शुरू कर सके हैं। तीन चीजें हो चुकी हैं। पहला, खनन जो बंद था, अब उसे हम नीलामी करके प्रारंभ कर रहे हैं। दूसरा, भारत सरकार ने 58 ग्रेड से नीचे के अयस्क पर जो 50 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया था, उसे केंद्र सरकार द्वारा हटाए जाने के बाद हम गोवा का लौह अयस्क निर्यात कर सकते हैं। तीसरे, डम्प और खारिज अयस्क को बड़ी मात्रा में हम यहां से नीलाम कर सकते हैं। पर्यटन के साथ लौह आयरन अयस्क निर्यात भी गोवा की अर्थव्यवस्था में योगदान करेगा। इसके अलावा हमारी जो पीपीपी परियोजनाएं हैं, जैसे मोपा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, ये भी राज्य के राजस्व में योगदान करेंगी।
दुनिया का सबसे युवा देश, उसकी राजनीतिक इच्छाएं, ये सब बहुत सारे बदलाव चाहते हैं। आपकी राजनीति परंपरागत राजनीति से अलग कैसे हैं? आपकी कार्यसंस्कृति बाकी से अलग कैसे है? प्रमोद सावंत के मन में क्या चलता है, गोवा की जकड़न खत्म करने के लिए आने वाले समय में उनकी योजनाएं क्या हैं?
इस संबंध में मैं यह कहना चाहूंगा कि माननीय प्रधानमंत्री का सपना है नवभारत निर्माण करना। नवभारत का निर्माण करते वक्त गोवा किसी भी चीज में पीछे न छूटे, चाहे वो पर्यटन हो, चाहे आईटी क्षेत्र चाहे वह औद्योगिक क्षेत्र हो, चाहे इलेक्ट्रॉनिक्स एवं विनिर्माण क्षेत्र में हो, हरेक क्षेत्र में हम देश के साथ आगे बढ़ें। इसलिए राज्य के लिए काम करना, राज्य के लोगों के लिए काम करना, यहां तक कि हर क्षेत्र में हम डबल इंजन की सरकार का फायदा गोवा के लोगों को कैसे दे सकें, इसके लिए हमारी सरकार लगातार काम कर रही है।
अपने कार्यकाल में आपने गोवा के लिए कुछ लक्ष्य तय किए हैं, कुछ प्राथमिकताएं तय की हैं। वे भौतिक लक्ष्य क्या हैं जिन्हें मापा जा सकता है, परखा जा सकता है, और यह देखा जा सकता है कि अपने वादों की कसौटी पर जो प्रमोद सावंत ने कहा था, वह करने के लिए वे प्रयत्नशील हैं या वह किया?
किसी राज्य का मूल्यांकन होता है तो वह सतत विकास लक्ष्य पर होता है। 2019 में जब मैं मुख्यमंत्री बना तो हम सतत विकास लक्ष्य में 7वें नंबर पर थे। 2021 में जब राज्य का मूल्यांकन हुआ तो हम सतत विकास लक्ष्य में चौथे नंबर पर पहुंचे। यही राज्य का वास्तविक मूल्यांकन हो सकता है। सतत विकास लक्ष्य संख्या 6 यानी स्वच्छ जल एवं स्वच्छता में राज्य के लिए हमें सौ प्रतिशत अंक मिले। इसी तरह लक्ष्य संख्या 7 यानी विद्युतीकरण एवं अक्षय ऊर्जा में हमें 100 प्रतिशत अंक मिले। सौ प्रतिशत अंक पाने वाला गोवा एकमात्र राज्य है। मैं बड़े गर्व से कहूंगा कि सतत विकास लक्ष्य में हम प्रथम एक, दो स्थान पर पहुचें, इसके लिए ही हमारी पूरी कोशिश रहेगी। हमारे अगला विजन और मिशन बुनियादी ढांचा विकास और मानव संसाधन विकास है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जो आत्मनिर्भर भारत का विजन है, उसके लिए हमारा जो पहले स्वयंपूर्ण गोवा 1.0 मिशन था, उसमें 10 बिंदु थे। इसमें हर घर को नल से जल, हर घर का विद्युतीकरण, शौचालय, बीमा आदि था। इसमें लगभग 95 प्रतिशत लोगों तक हम लक्ष्य बिंदुओं पर पहुंचे हैं। इसे सौ प्रतिशत हासिल करना हमारा इस बार का लक्ष्य रहेगा। और दूसरा, स्वयंपूर्ण गोवा 2.0 में हमने कौशल विकास पर जोर दिया है। इसे पूरा करना ही हमारा लक्ष्य रहेगा।
राजनीति में सतत विकास लक्ष्य के लिए आपकी क्या सोच है। कहते हैं कि लोकतंत्र के लिए विपक्ष जरूरी है, विपक्ष मजबूत होना चाहिए। भारत में कहा गया कि कांग्रेसमुक्त भारत। आपने शायद इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है।
मैं इस बारे में कहूंगा कि विपक्ष बिल्कुल मजबूत रहना चाहिए, विपक्ष जरूरी है। परंतु यदि कोई हमारे पक्ष में आना चाहता है, तो हम स्वागत करने के लिए तैयार हैं।
हम आगे गोवा में यंग थिंकर्स मीट भी करेंगे जिसमें देशभर के युवा यहां आएंगे। हमारा प्रयास है कि गोवा की धरती सिर्फ मस्ती की धरती ही नहीं बल्कि मंथन की धरती भी बने।
मैं पाञ्चजन्य को बहुत-बहुत बधाई देता हूं कि सागर मंथन में सुशासन संवाद के लिए आप सभी गोवा आए। मैं चाहता हूं कि दुनिया गोवा को केवल मौज-मस्ती के लिए ही न जाने बल्कि मंथन के लिए भी इसे जाना जाए। हमने यहां नए विश्वविद्यालय खोले हैं जिनमें नवाचारी परियोजनाएं होती हैं। हम आगे दिव्यांग लोगों के लिए चार दिन का पर्पल महोत्सव करने जा रहे हैं। गोवा को अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, विश्व आयुर्वेद सम्मेलन के जैसे अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मेलनों के लिए जाना गया है। मैं गोवा में थिंक टैंक का स्वागत करता हूं।
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