भारत के सांस्कृतिक इतिहास की विरासत को संजोकर रखने में उत्तराखंड राज्य का योगदान किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। उत्तराखण्ड राज्य को अनेकों महान विभूतियों ने अपनी कर्मस्थली बनाया जो आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण, कला, साहित्य, आर्थिक, देश की रक्षा एवं सुरक्षा जैसे अनेकों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विश्वप्रसिद्ध हुए हैं। देश की इन्हीं महान विभूतियों की कतार में स्थान प्राप्त करने वाली सुप्रसिद्ध हस्तियों में सबसे चर्चित और विख्यात प्रतिष्ठित नाम चंद्रावती लखनपाल का आता है।
चंद्रावती लखनपाल भारत की महान वीरांगना नारी वह भारत के स्वाधीनता संग्राम की सेनानी, आर्यसमाज कार्यकर्ता, शिक्षाशास्त्री के साथ सुप्रसिद्ध लेखिका और कर्मठ जनप्रतिनिधि भी थीं। चन्द्रावती लखनपाल का जन्म 29 दिसम्बर सन 1904 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सन 1926 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इनका विवाह समाजसेवी और आर्य समाज के प्रखर विद्वान सत्यव्रत सिद्धान्तलकार से हुआ था। आर्य विद्वान पति के प्रोत्साहन से इन्होंने अंग्रेजी से एम.ए. किया था। चन्द्रावती ने भारत के स्वाधीनता प्राप्ति संग्राम में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय सहारनपुर जिले के अंतर्गत अनेक गांवों में स्वदेशी और शराब बन्दी का महत्त्वपूर्ण सन्देश फैलाया था।
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एक समय अमेरिका और यूरोप में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को बेहद गलत तरीके से पेश किया जा रहा था, एक अमेरिकी महिला कैथरीन मेयो ने विवादास्पद पुस्तक मदर इंडिया लिखी, उक्त पुस्तक में भारतीय महिलाओं को केंद्रित करते हुए भारतीय संस्कृति और सभ्यता की कथित निंदा की गई थी। चंद्रावती लखनपाल ने मदर इंडिया नामक पुस्तक का जवाब लिखा था, मेयो की पुस्तक पर उनकी प्रतिक्रिया सर्वप्रथम सन 1928 में गुरुकुल कांगड़ी द्वारा प्रकाशित की गई थी। चंद्रावती लखनपाल ने समस्त देशवासियों से आग्रह किया कि – वो न केवल मेयो के उन सामाजिक बुराइयों के सभी संदर्भों का खंडन करें, जिनमें भारतीय समाज बंधे हुए थे, बल्कि आत्मस्वीकृति करने और उन बुराइयों को खत्म करने का बीड़ा भी उठाएं। उन्होंने कहा था कि – “क्या हिंदू मिस मेयो की चुनौती स्वीकार करते हैं, यदि वे करते हैं तो मैं अपनी आंखों के सामने एक नए भारत की सुबह देख सकती हूं।”
चंद्रावती को जून सन 1932 में आगरा में हुए संयुक्त प्रान्तीय राजनीतिक सम्मेलन में नेत्री चुना गया था। जब सम्मेलन की सूचना प्रसारित हुई तो बहुत संख्या में लोग एकत्रित हुए और जैसे ही चंद्रावती लखनपाल उनके मध्य पहुंचीं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के पश्चात इन्हें एक वर्ष के कारावास की सजा दी गयी थी। जेल से रिहा होने के पश्चात वह अध्यापन के क्षेत्र में चली गईं। देहरादून के महादेवी इण्टर कॉलेज तथा कन्या गुरुकुल में इन्होंने सन 1938 से सन 1952 तक प्रधानाध्यापिका का पद सम्भाला था। चन्द्रावती लखनपाल को देहरादून में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर रहते हुए भी इन्होंने साहित्य के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि की थी। उन्होंने भारत सेवक समाज के अंर्तगत अनेक ग्राम सेवा केन्द्र स्थापित किये थे। स्त्रियों की दशा पर लिखित पुस्तक के लिए चंद्रावती लखनपाल को हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सेकसरिया पुरस्कार और शिक्षा मनोविज्ञान पुस्तक के लिए मंगला प्रसाद पुरस्कार प्रदान किया गया था।
मदर इण्डिया और पाषाण शिक्षा जैसी श्रेष्ठ शास्त्रीय कृतियों की रचनाओं के लिए भी उन्हें सम्मानित किया गया था। असहाय महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए उन्होंने अपनी सम्पूर्ण चल–अचल सम्पत्ति को दान में देकर सन 1964 में एक ट्रस्ट स्थापित किया था। चंद्रावती लखनपाल को अपनी बहुमुखी योग्यताओं और सेवाओं के कारण सन 1952 में राज्यसभा के सदस्य के लिए चुना गया था। राज्यसभा के सदस्य पद को उन्होंने सन 1962 तक सुशोभित किया। देहरादून में राज्यसभा सांसद चन्द्रावती लखनपाल ने उस समय गांव वालों के सहयोग से पेयजल व्यवस्था डाँडा के गांवों में करने के लिए एक टंकी बनवाई थी। इस टंकी में रेलवे पाइप से पानी देने पर सरकारी अनुमति पर समस्या खड़ी हो गई थी। पानी की विकट समस्या से परेशान लोग वहां से 5 मील दूर जाकर पानी लाते थे।
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चन्द्रावती लखनपाल ने दिल्ली जाकर तत्कालीन रेल मंत्री लालबहादुर शास्त्री से उक्त समस्या पर यह बातचीत की और इसके लिए आयोजित सम्मेलन में पधारने का आग्रह किया। लालबहादुर शास्त्री सम्मेलन में उत्तरी क्षेत्र के जनरल मैनेजर कौल को अपने साथ ले गए और जनता और अधिकारी को आमने-सामने कर दिया। जिस काम को सालों लिखा-पढ़ी में ही बीत जाते वह कार्य चंद्रावती लखनपाल ने बेहद सूझबूझ का परिचय देते हुए लालबहादुर शास्त्री की सहायता से तत्काल ही पूरा करा दिया था। राज्यसभा सांसद के रूप में इन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए अनेक सराहनीय कार्य किये थे। महान स्वाधीनता सेनानी और शिक्षाशास्त्री चन्द्रावती लखनपाल का देहावसान 31 मार्च सन 1969 को हुआ था।
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