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इस वर्ष भारत की अंतरिक्ष में नई उड़ान, इन पांच देशों के क्लब में शामिल होकर रचा इतिहास

- विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से अर्जित कुल 22 करोड़ यूरो में से पिछले 8 वर्षों में 18 करोड़ 70 लाख यूरो अर्जित किए गए जो कि यूरोपीय उपग्रहों के प्रक्षेपण से अर्जित विदेशी मुद्रा का लगभग 85 प्रतिशत है।

by WEB DESK
Dec 28, 2022, 07:09 pm IST
in विज्ञान और तकनीक
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2022 में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाते हुए दुनियाभर में अलग मुकाम हासिल किया है। इस साल का 18 नवंबर देश के लिए वह शुभ दिवस साबित हुआ जिस दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश का पहला प्राइवेट रॉकेट ‘विक्रम-एस’ आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा के लॉन्चपैड से सुबह 11.30 बजे लॉन्च किया था। इस रॉकेट ने एक साथ तीन सैटलाइट्स को उनकी कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ ही भारत दुनिया भर में चुनिंदा निजी अंतरिक्ष सेवा प्रदाता देशों अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के क्लब में शामिल हो गया, जो प्राइवेट कंपनियों के रॉकेट को स्पेस में भेजते हैं। इस रॉकेट ने एक साथ तीन सैटलाइट्स को उनकी कक्षा में स्थापित किया है।

भारत के लिए दुनिया भर में अंतरिक्ष से जुड़ी तमाम संभावनाओं के नए द्वार खुले

उल्लेखनीय है कि इस रॉकेट का निर्माण हैदराबाद की एक स्टार्ट-अप कंपनी ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ ने किया है। विक्रम-एस रॉकेट का नाम भारत के मशहूर वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करनेवाला भारत का यह कदम अपने आप में क्रांतिकारी है। अभी तक भारत में सिर्फ ‘इसरो’ ही था जिसके माध्यम से राकेट संबंधी कार्य किया जा सकता था, किंतु निजी भागीदारी के सामने आने से देश के लिए दुनिया भर में अंतरिक्ष से जुड़ी तमाम संभावनाओं के नए द्वार खुल गए हैं।

विक्रम रॉकेट छह मीटर लंबा रॉकेट दुनिया के पहले कुछ रॉकेटों में से एक है, जिसमें रोटेशन की स्थिरता के लिए 3डी प्रिंटेड सॉलिड प्रोपेलेंट लगे हैं। यह उन 80 प्रतिशत तकनीकों को मान्यता दिलाने में मदद करेगा, जिनका उपयोग विक्रम-1 कक्षीय वाहन में किया जाएगा, जिसे अगले साल लॉन्च किया जाना है। विक्रम-एस का प्रक्षेपण सब-ऑर्बिटल रहा, जिसका अर्थ है कि यान ऑर्बिटल वेलोसिटी से कम गति से यात्रा करने में सक्षम है। इसका मतलब यह भी है कि जब अंतरिक्ष यान बाहरी अंतरिक्ष में पहुंचता है, तो वह पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में नहीं रहता। उड़ान में पांच मिनट से भी कम समय लेने में सक्षम है। इसके उलट आनेवाले नए वर्ष में लॉन्च किया जानेवाला विक्रम-1 एक बड़ा यान है, जो ऑर्बिटल में उड़ान भरेगा।

भारत में इस तरह हुई अंतरिक्ष यान संबंधी निजी कंपनी की शुरूआत

वर्ष 2018 में इसरो के वैज्ञानिक पवन कुमार चंदना और नागा भारत डाका ने अपनी नौकरी छोड़कर अंतरिक्ष से जुड़ी अपनी कंपनी चलाने का फैसला किया। फिर पवन चंदना और नागा भारत डाका ने ”स्काईरूट एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड” नाम से स्टार्टअप बनाया। इसरो में अपने कार्यकाल के दौरान पवन चांदना ने भारत के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी एमके III जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम किया हुआ है। वही दूसरी ओर, डाका ने इसरो में फ्लाइट कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में सभी महत्वपूर्ण हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर काम किया। दरअसल, दोनों का सपना एलन मस्क के ‘स्पेसएक्स’ की तरह स्काईरूट को अंतरिक्ष के क्षेत्र में स्थापित करना है। दोनों ही आईआईटी से पढ़े हैं। पवन कुमार चंदना ने आईआईटी खड़गपुर और नागा भारत डाका ने आईआईटी मद्रास से पढ़ाई की है।

इनका कहना है-

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री एवं पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का इस संबंध में कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अधीन भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र अब बड़ी संख्या में विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के माध्यम से एक प्रमुख विदेशी मुद्रा अर्जक के रूप में उभर रहा है। भारत ने अब तक 385 विदेशी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं, जिनमें से 353 इस सरकार के अंतर्गत पिछले आठ वर्षों में प्रक्षेपित (लॉन्च) किए गए हैं और जो सभी प्रक्षेपणों का लगभग 90 प्रतिशत है। विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से अर्जित कुल 22 करोड़ यूरो में से पिछले 8 वर्षों में 18 करोड़ 70 लाख यूरो अर्जित किए गए जो कि यूरोपीय उपग्रहों के प्रक्षेपण से अर्जित विदेशी मुद्रा का लगभग 85 प्रतिशत है।

डॉ. जितेंद्र सिंह का कहना है कि यह बहुत गर्व की बात है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन ( इसरो- आईएसआरओ ) ने अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल, यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), इटली, जापान, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, फ़िनलैंड, लिथुआनिया, लक्ज़मबर्ग, मलेशिया, नीदरलैंड, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, स्पेन, स्विटज़रलैंड जैसे उन्नत देशों से सम्बन्धित उपग्रहों को ऑन-बोर्ड ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन ( पोलर सैटेलाईट लांच व्हीकल – पीएसएलवी ) और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 ( जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लाँच वहीकल मार्क 3- जीएसएलवी मार्क-III ) के प्रक्षेपक (लॉन्चर) व्यावसायिक समझौते के अंतर्गत अपने वाणिज्यिक उपक्रमों के माध्यम से सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।

इस साल प्रधानमंत्री मोदी ने किए अंतरिक्ष उद्योग के लिए ये बड़े काम

मोदी सरकार द्वारा निजी भागीदारी के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलने के पूर्व न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ( एनएसआईएल ) जोकि अंतरिक्ष विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है, उसे अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए एक वाणिज्य-उन्मुख दृष्टिकोण लाने का अधिकार दिया गया। वहीं एंड- टू- एंड अंतरिक्ष गतिविधियों के संचालन में गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रचार और परस्पर सहयोग (हैंडहोल्डिंग) के लिए सिंगल-विंडो एजेंसी के रूप में इन-स्पेस आईएन- एसपीएसीई के गठन के मूर्त रूप दिया गया। परिणामस्वरूप अंतरिक्ष ( स्पेस ) के साथ जुड़े समुदाय में उल्लेखनीय रुचि जागृत हुई और इस समय ऐसे 111 स्टार्ट-अप्स इन-स्पेस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत हो चुके हैं।

इस तरह के क्रांतिकारी सुधारों का ही यह परिणाम है कि प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (लांच व्हीकल मार्क 3) के रूप में भारत द्वारा सबसे भारी व्यावसायिक प्रक्षेपण जिसे 23 अक्टूबर को 36 वनवेब उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने का कार्य सफलता के साथ पूरा किया गया है, इसके बाद इस निजी अंतरिक्ष क्षेत्र की भारतीय कंपनी मेसर्स स्काईरूट एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद द्वारा 18 नवंबर, 2022 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित रॉकेट से भारत के पहले निजी विक्रम-सबऑर्बिटल (वीकेएस) का पथप्रदर्शक और ऐतिहासिक प्रक्षेपण हुआ है।

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