उत्तराखंड की महान विभूति : जानिए छायावादी युग के महान कवि सुमित्रानंदन पंत के बारे में सबकुछ

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उत्तराखंड ब्यूरो

हिंदी साहित्य में छायावादी युग साहित्य के चार प्रमुख स्तंभों में से एक है। छायावादी युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, रामकुमार वर्मा और सुमित्रानंदन पंत जैसे कवियों का युग कहा जाता है। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता थी।

सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म देवभूमि उत्तराखण्ड के बागेश्वर में ग्राम कौसानी में 20 मई सन 1900 को हुआ था। जन्म के मात्र छह घंटे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया था। बचपन में उनका नाम गोसाई दत्त रखा गया था। सन 1910 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गए, यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया था। शिक्षा प्राप्त करने काशी गये और वहां क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहां से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कॉलेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए। सन 1918 के समयकाल तक वह हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इस समय की उनकी कविताएं वीणा में संकलित हैं। सन 1921 में असहयोग आंदोलन के समयकाल में महात्मा गांधी के भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे। इलाहाबाद में ही उनकी काव्य चेतना का विकास हुआ था। सन 1926 में उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित हुआ था। कुछ समय पश्चात वह अल्मोडा वापस आ गये, जहां कुछ वर्षों के बाद उन्हें घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और कर्ज से जूझते हुए पिता का निधन हो गया था। सुमित्रानंदन पन्त को कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी बेचना पड़ा था। सन 1931 में वह कुँवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर, प्रतापगढ़ चले गये और अनेक वर्षों तक वहीं रहे। सन 1938 में उन्होंने प्रगतिशील मासिक पत्रिका ‘रूपाभ’ का प्रकाशन तथा सम्पादन किया था। शमशेर, रघुपति सहाय आदि के साथ वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुडे रहे थे।

श्री अरविन्द आश्रम की यात्रा से उनमें आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ था। उनकी विचारधारा भी योगी अरविन्द से प्रभावित हुई जो बाद की उनकी रचनाओं ‘स्वर्णकिरण’ और ‘स्वर्णधूलि’ में देखी जा सकती है। “वाणी” तथा “पल्लव” में संकलित उनके छोटे गीत विराट व्यापक सौंदर्य तथा पवित्रता से साक्षात्कार कराते हैं। “युगांत” की रचनाओं के लेखन तक वे प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े प्रतीत होते हैं। “युगांत” से “ग्राम्या” तक उनकी काव्ययात्रा प्रगतिवाद के निश्चित व प्रखर स्वरों की उद्घोषणा करती है। उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पडाव हैं – प्रथम में वे छायावादी हैं, दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिवादी तथा तीसरे में अरविन्द दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी दिखाई देते हैं। सन 1907 से सन 1918 के काल को स्वयं उन्होंने अपने कवि-जीवन का प्रथम चरण माना है। इस काल की कविताएँ “वाणी” में संकलित हैं। सन 1922 में उच्छ्वास और सन 1926 में “पल्लव” का प्रकाशन हुआ था। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियां हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं।

सुमित्रानंदन पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं ‘पल्लव’ में संगृहीत हैं, जो सन 1918 से सन 1925 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है। इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता ‘परिवर्तन’ भी सम्मिलित है। ‘तारापथ’ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने “ज्योत्स्ना” नामक एक रूपक की रचना भी की है। उन्होंने “मधुज्वाल” नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह भी निकाला और डॉ.हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से “खादी के फूल” नामक कविता संग्रह भी प्रकाशित करवाया था। उनका संपूर्ण साहित्य “सत्यं शिवं सुन्दरम्” के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है, जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं वहीं, दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के चित्र मिलते हैं। उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत हैं। सुमित्रानंदन पंत परंपरावादी आलोचकों और प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी आलोचकों के सामने कभी नहीं झुके थे। उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्व मान्यताओं को कभी नकारा नहीं, उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को “नम्र अवज्ञा” कविता के माध्यम से खारिज किया था। वह “गा कोकिला संदेश सनातन, मानव का परिचय मानवपन” कहते थे।

सुमित्रानंदन पंत सन 1950 से सन 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे थे। सन 1958 में ‘युगवाणी’ से ‘वाणी’ काव्य संग्रहों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन ‘चिदम्बरा’ प्रकाशित हुआ, जिस पर सन 1968 में उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सन 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। सन 1961 में वह ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित हुये थे। हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया था। सन 1964 में विशाल महाकाव्य ‘लोकायतन’ का प्रकाशन हुआ था, कालान्तर में उनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए थे। वह जीवन-पर्यन्त रचनारत ही रहे, अविवाहित सुमित्रानंदन पंत जी अंतस्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भावना रही। सुमित्रानंदन पंत का देहावसान 28 दिसम्बर सन 1977 को हुआ था।

सुमित्रानंदन पंत के नाम पर उत्तराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे ग्राम कौसानी में उनके पुराने घर को, जिसमें वह बचपन में रहा करते थे, ‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। संग्रहालय में उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, चश्मा, कलम, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किये गये उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां भी यहां मौजूद हैं। सन 2015 में सुमित्रानंदन पन्त की याद में एक डाक-टिकट जारी किया गया था। संग्रहालय में उनकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यान माला का आयोजन होता है। यहाँ से ‘सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व और कृतित्व’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम ‘सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान’ कर दिया गया है।

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