श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में स्थित मस्जिद का होगा निरीक्षण, जानें वहां मस्जिद कैसे बनी

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अरुण कुमार सिंह

मथुरा मेें श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में बनाई गई मस्जिद का मामला भी गर्म हो चुका है। स्थानीय न्यायालय ने काशी की तरह ही मथुरा की मस्जिद का निरीक्षण करने का आदेश दिया है। कहा जा रहा है कि 2 जनवरी, 2023 से निरीक्षण शुरू हो जाएगा।

 

इन दिनों मथुरा स्थित भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि परिसर में बनी मस्जिद को लेकर वैसी ही सरगर्मी है, जैसी काशी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर है। काशी में न्यायालय के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण हुआ और अब उसी आधार पर यह मामला अदालत में आगे बढ़ रहा है। ठीक उसी तर्ज पर मथुरा का मामला भी आगे बढ़ता दिख रहा है। गत 24 दिसम्बर  को मथुरा के अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) के न्यायालय ने श्रीकृष्ण जन्म स्थान—ईदगाह मामले में एक अभूतपूर्व आदेश दिया है। इसके अनुसार शाही मस्जिद ईदगाह का अमीन से निरीक्षण कराया जाएगा। इसकी रिपोर्ट 20 जनवरी को न्यायालय के सामने प्रस्तुत की जाएगी।
बता दें कि गत आठ दिसंबर को ‘हिंदू सेना’ नामक एक संगठन ने याचिका दायर कर मांग की थी कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से मस्जिद ईदगाह को हटाया जाए। इसकी सुनवाई करते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) सोनिका वर्मा ने उपरोक्त आदेश दिया है।

हिंदू पक्ष बता रहा है अपनी जीत

इस आदेश को हिंदू पक्ष अपनी बहुत बड़ी जीत बता रहा है, वहीं मुस्लिम पक्ष ने इसे असंवैधानिक बताकर इसका विरोध किया है। ‘शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी’ के सचिव तनवीर अहमद ने कहा है कि हम इस आदेश को निरस्त करने की मांग अदालत से करेंगे, क्योंकि यह असंवैधानिक है। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने इस निरीक्षण का विरोध करते हुए कहा है कि मंदिर और मस्जिद के लिखित समाधान के बावजूद यह आदेश दिया गया है। विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार का मानना है कि जिस किसी भी व्यक्ति के पास सत्य का सामना करने की हिम्मत है और उसके पास छुपाने को कुछ नहीं है, वह निरीक्षण का विरोध नहीं करेगा, क्योंकि निरीक्षण से वर्तमान परिस्थिति का सत्य सामने आएगा। हम उत्सुकता से इस आदेश के पूरा होने की प्रतीक्षा करेंगे।

बता दें कि अनेक संगठन श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में स्थित मस्जिद ईदगाह को बराबर हटाने की मांग करते रहे हैं। इसलिए विभिन्न न्यायालयों में 10 वाद दायर हुए हैं, जो अभी लंबित हैं। सर्वाधिक चर्चा में रही 16 अक्तूबर, 2021 की सुनवाई।
इस दिन मथुरा के जिला न्यायालय ने सुनवाई के लिए उस याचिका को स्वीकार कर लिया था, जिसमें निवेदन किया गया था कि ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ और ‘शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी’ के बीच 1968 में हुए समझौते को रद्द कर मस्जिद हटाई जाए और पूरी जमीन ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ को दी जाए।
यह याचिका ‘भगवान् श्रीकृष्ण विराजमान’ और लखनऊ की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री समेत आठ लोगों ने दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन के माध्यम से दायर हुई इस याचिका के बाद पूरे सनातन जगत् में एक नई हलचल दिखी थी।

इन मुकदमों पर न्यायालय ने जिस तरह का रुख दिखाया है, उससे लगने लगा है कि अब मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी अवैध मस्जिद भी हट सकती है। हालांकि जिस तरह श्रीराम जन्मभूमि के मामले को सेकुलर और जिहादी तत्व बरसों तक लटकाते रहे, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इस मामले को भी ये लोग बरसों तक लटकाने का प्रयास करेंगे। लेकिन सबसे अच्छी बात यह हुई है कि न्यायालय इस मामले को सुनने के लिए तैयार हो गया है। सनातन जगत् के लिए यही पहली जीत माननी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले 30 सितंबर, 2021 को न्यायालय ने इन्हीं लोगों की एक अर्जी यह कहते हुए निरस्त कर दी थी कि केवल भक्त के आधार पर कोई वाद दायर नहीं कर सकता है। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए इस तरह के कुछ निर्णयों का उदाहरण देते हुए 12 अक्तूबर, 2021 को एक बार पुनः याचिका लगाई गई। अधिवक्ता विष्णु जैन ने जिला न्यायालय में यह पक्ष रखा कि श्रीराम जन्मभूमि मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भगवान और भक्त दोनों वाद दायर कर सकते हैं। इसलिए इस आधार पर हमारा वाद निरस्त करना ठीक नहीं है। इस पर एक घंटे तक बहस हुई और इसके बाद जिला न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने याचिका को स्वीकार कर लिया। इस याचिका में चार लोग प्रतिवादी बनाए गए हैं। ये हैं- अध्यक्ष (उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड), सचिव (शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी), प्रबंध न्यासी (श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट) और सचिव (श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान)।

मामला 13.37 एकड़ जमीन का है, जो श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर है। हममें से जो भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि गया है, उसने अवश्य देखा है कि जन्मस्थान के साथ ही एक मस्जिद है, जिसे ईदगाह भी कहा जाता है। यह मस्जिद 13.37 एकड़ जमीन की परिधि में ही है। इसी मस्जिद को हटाने की मांग की जा रही है।

मंदिर को कई बार तोड़ा गया

इस मामले को समझने के लिए इतिहास में जाना होगा। एक पौराणिक कथा के अनुसार सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुल देवता (श्रीकृष्ण) की स्मृति में कटरा केशवदेव में एक मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद चौथी शताब्दी में राजा विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया। 1017 में लुटेरा महमूद गजनवी ने उस मंदिर को तोड़ दिया। 100 से अधिक वर्ष तक उसी अवस्था में वह मंदिर रहा। 1150 में जज्ज नामक व्यक्ति ने उस मंदिर को फिर से बनवाया। इसके बाद 16वीं शताब्दी के प्रारंभ में सिकन्दर लोदी ने मंदिर तुड़वा दिया। 1618 में ओरछा के राज वीर सिंह बुंदेला ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि, जिसे कटरा केशवदेव भी कहा जाता है, पर 33,00000 रु खर्च करके एक मंदिर बनवाया। उस समय इतने पैसे से बने इस मंदिर की भव्यता देखने योग्य थी। पूरे भारत से हिन्दू उस मंदिर के दर्शन के लिए आते थे। मुगल शासक औरंगजेब, जो मजहबी कट्टरता से भरा था, इस मंदिर की भव्यता से बहुत चिढ़ता था। अतः उसने 1669 में इस मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। इसके बाद मंदिर को गिराकर 1670 में वहां मस्जिद बना दी गई। इसके बाद 1770 में मथुरा और उसके आसपास मराठों का राज हो गया। मराठों ने उस मस्जिद को गिराकर फिर से मंदिर बना दिया। जब मराठा इस क्षेत्र में कमजोर हुए तो फिर से वहां मस्जिद बना दी गई। इस तरह वहां हिन्दू-मुसलमानों के बीच टकराव होता रहा।

मुसलमानों का कोई अधिकार नहीं

इसके बाद अंग्रेज आए। 1815 में अंग्रेजों ने इस स्थान को नीलाम कर दिया। नीलामी में ईदगाह सहित इस जमीन को बनारस के राजा पटनीमल ने ले लिया। इस पर वे मंदिर बनाना चाहते थे, लेकिन मुस्लिम पक्ष के विरोध के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए। कई साल तक ऐसे ही चलता रहा। 1923 में अदालत ने इस जमीन पर राजा पटनीमल के वंशजों का ही अधिकार माना और यह भी कहा कि इस पर मुसलमानों का कोई अधिकार नहीं है। 1944 की शुरुआत में पंडित मदनमोहन मालवीय मथुरा आए तो वे जन्मभूमि को देखने के लिए गए। वहां की स्थिति से वे बहुत दुःखी हुए। मंदिर के नाम पर केवल खंडहर था और उसके पास ही एक मस्जिद शान से खड़ी थी। उन्होंने दुःखी मन से वहां के लोगों से बात की और यह जाना कि इस जगह का मालिक कौन है। मथुरा के लोगों ने उन्हें बताया कि राजा पटनीमल के वंशज इसके मालिक हैं। वे उनसे मिले और आग्रह किया कि आप उस स्थान पर मंदिर बनवाएं, क्योंकि वहां हिन्दू आते हैं और खंडहर देखकर बहुत दुःखी मन से वापस जाते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि उनके पास पैसे नहीं हैं और यदि आप बनवाना चाहते हैं, तो पूरी जमीन आपके नाम से कर दी जाएगी। जो स्थिति थी, उसको देखकर मालवीय जी तैयार हो गए और 8 फरवरी, 1944 को राजा पटनीमल के वंशजों ने इस जमीन का मालिकाना अधिकार मालवीय जी और दो अन्य को दे दिया। इसके कुछ दिन बाद मालवीय जी अस्वस्थ हो गए इसलिए वे मंदिर का कार्य शुरू नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने यह कार्य जुगल किशोर बिरला को सौंपा। इन्हीं जुगल किशोर ने 21 फरवरी, 1951 को ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ बनाया। ट्रस्ट ने मंदिर बनाने की दिशा में कदम उठाने शुरू किए तो स्थानीय लोग भी आगे आए। लगभग तीन साल तक लोगों ने श्रमदान करके पूरी जमीन को समतल बनाया। फिर 1957 में मंदिर की नींव रखी हनुमान प्रसाद पोद्दार ‘भाई जी’ ने। यह मंदिर 1958 में बनकर तैयार हो गया। समतली के दौरान गर्भगृह मिला, जिसका जीर्णोद्धार रामनाथ गोयनका ने कराया। इसके बाद वहां अनेक मंदिर और भवन बने। आज जो भव्य रूप श्रीकृष्ण जन्मभूमि का दिखता है, उसको कई चरण में पूरा किया गया है। अंतिम चरण 1982 में पूरा हुआ है।

सेकुलर शरारत

1 मई, 1958 को ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ बनाया गया। कुछ लोगों का मानना है कि ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ का गठन एक षड्यंत्र के अन्तर्गत कुछ सेकुलर लोगों के इशारे पर हुआ। ऐसे ही लोगों के इशारे पर 1959 में मुसलमानों ने एक और मुकदमा किया। यह मुकदमा चल ही रहा था कि ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ ने समझौते की पहल की। माना जाता है कि इसी पहल के लिए उस समय के कुछ सेकुलर नेताओं ने ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ का गठन करवाया। इसके बाद 1968 में ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ और ‘शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी’ के बीच समझौता हो गया। इसके अनुसार जो जहां है, वहीं रहेगा। यानी जहां मस्जिद है, वह वहीं बनी रहेगी। मुसलमान तो यही चाहते थे, क्योंकि उन्हें पता है कि मस्जिद की जगह उनकी नहीं है। इस समझौते का नुकसान केवल हिन्दू पक्ष को हुआ। शताब्दियों से जो जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से रही है, उसके एक हिस्से पर जबर्दस्ती मस्जिद बनाई गई और बाद में उसके अस्तित्व को बचाने के लिए सेकुलर नेताओं की सहायता से एक फर्जी समझौता कराया गया। वादी पक्ष का कहना है कि पूरी जमीन ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ के नाम है इसलिए ‘श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ’ को समझौता करने का कोई अधिकार ही नहीं है।

अब समय ही बताएगा कि इस मामले पर न्यायालय क्या निर्णय देगा। तब तक हम सनातन-धर्मी प्रभु से प्रार्थना करें कि इस मामले का भी हल वैसा ही निकले, जैसा कि श्रीराम जन्मभूमि का निकला। जय श्रीकृष्ण!

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