तकनीक में उभरते अवसरों की धरती है भारत

हम उन पांच शीर्ष देशों में हैं जहां सबसे ज्यादा ‘अवसर’ मौजूद हैं।

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बालेन्दु शर्मा दाधीच

आईसीटी के क्षेत्र में भारत पांच सर्वाधिक अवसर वाले देशों में शामिल है। दुनिया के बाजार का आकार देखेंगे तो समझ जाएंगे कि हमें अभी काफी रास्ता तय करना है

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के क्षेत्र में हम उन पांच शीर्ष देशों में हैं जहां सबसे ज्यादा ‘अवसर’ मौजूद हैं। हमारे देश में गैप्स हैं क्योंकि आजादी के बाद जिस मुकाम से हमने यात्रा शुरू की, वह बहुत मुश्किल था। और उसके बाद के सात-आठ दशक में हमने अनगिनत क्षेत्रों में दहाड़ती-ललकारती समस्याओं और चुनौतियों का समाधान तलाशने में अपनी बहुत सारी ऊर्जा और संसाधन खर्च किए हैं।

हमारे पास अमेरिका या इंग्लैंड जैसी ‘लक्जरी’ नहीं थी जिन्हें सत्तर के दशक में कंप्यूटर के आगमन के बाद सीधे सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिला। अपने भविष्य की चिंता करना और उसे संवारने का उपक्रम करना भारत के लिए भी आवश्यक था किंतु उससे कहीं बड़ी प्राथमिकता अपने वर्तमान को संभालने की थी। फिर भी, अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद, आज हम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में जहां खड़े हैं, वह एक अहम मुकाम है। दुनिया उसे हैरत और प्रशंसा की नजर से देखती है।

अपनी विदेश यात्राओं के दौरान मैंने अनेक देशों में सामान्य नागरिकों को आईटी के क्षेत्र में भारत की तरक्की को सराहते हुए देखा है। अमेरिका में विमान यात्रा करते समय अनेक बार सहयात्रियों ने मुझसे मेरे देश के बारे में पूछा और भारत का जिक्र आने पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कहा कि भारत के लोग आईटी में बहुत अच्छे होते हैं। इसी तरह के अनुभव मुझे ब्रिटेन, रूस, जापान और चीन में भी हुए हैं हालांकि वे सभी विमान में हुए हों, ऐसा नहीं है।

हमारा भारत ऐसा ही धावक है और फिर भी आज आईसीटी के क्षेत्र में उसकी तुलना अगर विकसित पश्चिमी देशों के साथ की जाती है तो एक तरफ तो यह फख्र की बात है, लेकिन दूसरी तरफ इस तुलना में अज्ञानता और भेदभाव भी छिपे हैं, भले ही ऐसा अनभिज्ञता में ही क्यों न किया जा रहा हो। अगर विकासमान देशों की परिस्थितियों, चुनौतियों और विषमताओं को ध्यान में रखा जाए तो आईसीटी में हमारा दर्जा और भी बेहतर महसूस होगा।

मैंने विदेशियों को भारतीयों का इस बात के लिए मजाक बनाते हुए भी देखा है कि ये तो ‘आईटी सपोर्ट’ वाले लोग हैं। हकीकत में इस तरह के मजाक में एक किस्म का ईर्ष्या भाव भी निहित है, इसलिए मैं इसे सकारात्मक रूप में देखता हूं। अगर किसी शहर में बहुत सारे विद्वान रहते हों तो क्या यह कहकर उसका मजाक बनाया जा सकता है कि इस शहर में तो पढ़ाकू भरे पड़े हैं!

याद रखिए, कोई बाहरी व्यक्ति जब दो देशों के बीच तुलना करता है तो सौ में से 99 बार वह उनकी पृष्ठभूमियों से अपिरिचित रहते हुए तुलना करता है। ये तुलनाएं बेमानी हैं क्योंकि बिना कोच, बिना पौष्टिक खुराक और बिना अच्छे जूतों के दौड़ लगाने वाले धावक की जीत उस प्रतिद्वंद्वी की जीत से कहीं बड़ी है जिसने किसी भी कमी का अनुभव न किया हो।

हमारा भारत ऐसा ही धावक है और फिर भी आज आईसीटी के क्षेत्र में उसकी तुलना अगर विकसित पश्चिमी देशों के साथ की जाती है तो एक तरफ तो यह फख्र की बात है, लेकिन दूसरी तरफ इस तुलना में अज्ञानता और भेदभाव भी छिपे हैं, भले ही ऐसा अनभिज्ञता में ही क्यों न किया जा रहा हो। अगर विकासमान देशों की परिस्थितियों, चुनौतियों और विषमताओं को ध्यान में रखा जाए तो आईसीटी में हमारा दर्जा और भी बेहतर महसूस होगा।

लेकिन तुलनाओं की जो हकीकत है, सो है। अगर मुझसे पूछा जाए कि आईसीटी में ‘काबिलियत’ का पैमाना क्या होगा तो मेरा जवाब होगा-आईसीटी से जुड़े अनुसंधान और विकास, नवाचार, कौशल, तकनीकी शिक्षा का परिपक्व स्तर, आधुनिकतम प्रौद्योगिकी में दखल, कुशल पेशेवरों की उपलब्धता और राज्य तथा लोगों का वैज्ञानिक मानस। आप अनुमान लगा सकते हैं कि कुशल पेशेवरों की उपलब्धता के अतिरिक्त बाकी सभी पैमानों में हम शीर्ष पांच देशों में नहीं गिने जाएंगे। हां, विश्व के बड़े-बड़े संस्थानों के नेतृत्व के लिए भारत ने सुयोग्य तथा मेधावी पेशेवर उपलब्ध कराए हैं, जो कि एक निर्विवाद सत्य है।

सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सन् 2021 में भारत ने आईटी और सेवाओं के क्षेत्र में कुल 178 अरब डॉलर का निर्यात किया। इसमें से 95 अरब डॉलर का निर्यात आईटी सेवाओं के खाते में गया और 39 अरब डॉलर की रकम बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट (कॉल सेंटर जैसी कारोबारी प्रक्रियाओं) के खाते से आई। इन दोनों का साझा योगदान लगभग 75 प्रतिशत का रहा। बाकी 25 प्रतिशत में आप अन्य सभी क्षेत्रों को रख सकते हैं जिनमें हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर भी शामिल हैं।

खुशी की बात है कि अनुसंधान के क्षेत्र में हमारा दखल बढ़ रहा है जो 2021 में इंजीनियरिंग शोध और विकास से आई 36 अरब डॉलर की धनराशि से स्पष्ट होता है। किंतु दुनिया के बाजार का आकार देखेंगे तो आप समझ जाएंगे कि हमें अभी काफी रास्ता तय करना है। सन 2021 में इंजीनियरिंग शोध और विकास का बाजार 1300 अरब डॉलर का था।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट इंडिया में ‘निदेशक-भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं।)

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