उत्तराखंड में अवैध मजारों को गिराने का काम शुरू। राज्य की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने को ऐसी कार्रवाई जरूरी
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के आसपास के जंगलों में बनीं 17 अवैध मजारों को वन विभाग ने ध्वस्त कर दिया। देहरादून वन प्रमंडल के वन संरक्षक नीतीश मणि त्रिपाठी ने बताया कि पहले अतिक्रमण चिन्हित किए गए। इसमें पाया गया कि ये मजारें पिछले कुछ वर्षों में ही अवैध रूप से बनाई गई थीं। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में लव जिहाद के साथ-साथ मजार जिहाद भी काफी समय से चल रहा है। इसके तहत सरकारी भूमि पर कब्जा कर मुस्लिम समुदाय द्वारा अवैध मजारें बना दी जाती हैं। कुछ समय बाद उसी जगह पर पक्का निर्माण कर कई तरह के कथित अवैध कार्य भी किए जाते हैं।
जमीन जिहाद और लव जिहाद को ‘पाञ्चजन्य’ बराबर उठाता रहा है। इस कारण उत्तराखंड में ये दोनों मुद्दे आम लोगों की चर्चा के केंद्र में आए। इसका प्रभाव सरकार पर भी पड़ा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन मुद्दों को गंभीरता से लिया और अधिकारियों को उचित कदम उठाने को कहा। इसके बाद वन विभाग ने पहले एक सर्वेक्षण करवाया। इसमें 17 मजारें चिन्हित की गई। इन मजारों को अवैध के साथ-साथ सरकारी जमीन पर अतिक्रमण माना गया। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने इन्हें तोड़ने के आदेश दिए। जानकारी के अनुसार दो दिन के भीतर ही इन मजारों को तोड़ कर ईंट, गारे और टीन-टप्पर भी वन विभाग के कर्मचारी अपने साथ ले गए।
उत्तराखंड सरकार से इस तरह की कार्रवाई की अपेक्षा बहुत दिनों से की जा रही थी। मई महीने में दिल्ली में ‘पाञ्चजन्य’ द्वारा आयोजित ‘मीडिया महामंथन’ में भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष यह सवाल आया था। उस समय उन्होंने कहा था, ‘‘मैं बोलता कम हूं और कार्रवाई में ज्यादा विश्वास रखता हूं।’’ अब उनके आश्वासन के अनुरूप ही कार्रवाई हुई है। इससे राज्य के उन लोगों में खुशी है, जो इन मुद्दों को लेकर चितिंत रहा करते हैं।
देवबंदी नहीं मानते मजारों को
दिलचस्प बात यह है कि मुसलमानों में देवबंदी लोग मजारों को नहीं मानते। उनका मानना है कि सिर्फ मदीना, मुनव्वरा में हजरत मुहम्मद साहब की कब्र तक जाना और सफर करना ही जायज है।
सनातन समाज की चिंता
मजारों के आसपास मुसलमान दुकानें खोलते हैं और धूप, अगरबत्ती और हरी चादरें बेचते हैं। इनके ग्राहक मुसलमानों से ज्यादा हिंदू हैं, क्योंकि ‘मजारों’ में जाने वाले ज्यादातर लोग हिंदू होते हैं। यह सनातन समाज के लिए चिंता की बात है।
जानकारी के अनुसार ढहाई गई मजारों के नीचे मानव अवशेष नहीं मिले हैं। बता दें कि किसी मजार के बारे में यह कहा जाता है कि इसके नीचे फलां ‘पीर’ है। ‘पीर’ के नाम पर लोग मजारोें में जाते हैं और उसकी पूजा करने लगते हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि अधिकतर मजारें फर्जी होती हैं। वहां कोई पीर नहीं होता है। कुछ लोग जमीन पर कब्जा करने के लिए ‘मजार’ बनाने का काम निरंतर करते रहते हैं। जहां एक बार मजार बन जाती है, तो बन ही जाती है। वोट बैंक की राजनीति के कारण किसी ‘मजार’ को तोड़ना आसान नहीं होता है, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने ऐसा कर दिखाया है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय द्वारा देहरादून, उधमसिंह नगर, हरिद्वार, नैनीताल जिलों में बड़ी संख्या में अवैध मजारें बनाई गई हैं। यहां तक कि सुदूर पौड़ी, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा आदि जिलों में भी अवैध मजारें और दरगाहें बनाई गई हैं। इस कारण देवभूमि का सनातन स्वरूप बिगड़ने लगा है। अब सरकार की कार्रवाई से लोगों को विश्वास हो रहा है कि देवभूमि की सनातन पहचान बनी रहेगी। कुछ समय पहले रामनगर और तराई वन प्रमंडल में भी इसी तरह की अवैध मजारें हटाई गई थीं।
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