16 सितम्बर 2022 को ईरान के इतिहास में एक बड़ा मोड़ आया। महसा की मौत ने ‘मजहब को बचाने में जुटी’ ईरान की कट्टर शिया सत्ता को हिला कर रख दिया है। हिजाब विरोधी आंदोलन दूर-दूर तक थमता नहीं दिख रहा
दिसम्बर 2010 में अरब जगत में ‘अरब स्प्रिंग्स’ नाम से शासन के दमन के विरुद्ध एक चिनगारी भड़की थी। अरब में जलजला सा आ गया था। उसके बाद अरब के शासकों को समझ आ गया था कि जनता ठान ले तो उनकी दादागीरी नहीं टिक सकती।
आज ईरान में जो स्थिति है, उसे देखकर अनेक विशेषज्ञ यह सोचने को विवश हैं कि कहीं यह ‘अरब स्प्रिंग्स’ जैसा बवंडर तो नहीं? क्या शिया बहुल ईरान में ‘सुप्रीम लीडर’ के दिन गिनती के रह गए हैं? क्या अब इस्लामवादियों की शरियाई ठसक को लोग ढोने के लिए तैयार नहीं हैं, अब वे इसे उतार फेंकने का मन बना चुके हैं?
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ईरान बेशक, उफान पर है। 16 सितम्बर, 2022 के बाद से पुलिसिया और सैन्य कार्रवाइयों, सरकार के धमकी भरे बयानों के बावजूद; सुप्रीम लीडर कहे जाने वाले सैयद अली होसैनी खामेनेई की ‘बस, अब और बर्दाश्त नहीं’ जैसी धमकियों के बावजूद, देश में इन दिनों एक क्रांति-सी धधक रही है। अभी तक के अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार, सैकड़ों प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं, हजारों सलाखों के पीछे हैं और कुछ फांसी चढ़ाए जा चुके हैं। इनमें क्या महिलाएं, क्या पुरुष, क्या वृद्ध और क्या बच्चे! सब सत्ता के दमन में पिसे हैं, और न जाने कितने, कब तक पिसते, पिटते, कुचलते रहेंगे, झुलसते रहेंगे… हिजाब से लगी आग से उपजे खामेनेई की ‘शरियाई ठसक’ में।
कई देशों पर साजिश का आरोप
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हिजाब की तपिश झेल रहे ईरान ने हिजाब विरोधी आंदोलन के पीछे ब्रिटेन, इस्राएल और कुर्द गुटों के साथ ही अमेरिका तथा उसके सहयोगी देशों पर आरोप मढ़ा है। ईरान का कहना है, कि उसके यहां अशांति इन देशों या गुटों के सहयोग से फैलाई जा रही है। अधिकृत रिपोर्ट के आधार पर गत नवम्बर में एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना था कि कम से कम 21 लोगों पर ऐसे आरोप लगाए गए हैं, जिनमें उन्हें फांसी पर लटकाया जा सकता है।
लंदन के एक मानवाधिकार समूह का कहना है कि वर्तमान में ईरान, चीन को छोड़कर किसी भी अन्य देश के मुकाबले हर साल सबसे ज्यादा लोगों को फांसी चढ़ाता है। हिजाब विरोधी आंदोलन में अभी तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, हजारों गिरफ्तार हैं। इनमें 40 विदेशियों सहित देश के अनेक प्रमुख अभिनेता, पत्रकार तथा वकील शामिल हैं। यूरोप से जुड़े एक गुट के कथित 12 लोगों पर भी तोड़फोड़ का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाने के साथ कहा गया है कि ये लोग जर्मनी तथा नीदरलैंड्स में रह रहे विद्रोही तत्वों के एजेंटों से जुड़े हैं जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया है। लेकिन वे ऐसा कुछ कर पाते, उससे पहले ही उन्हें धर-दबोचा गया।
सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं ईरानी पत्रकार मसीह
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छात्रों ने थामी कमान
इस पूरे आंदोलन में एक बार फिर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं पूरी सरगर्मी से कमान थामे हुए हैं, उनके संबल को बनाए रखने को आम नागरिक बड़ी संख्या में आहुतियां देने को तैयार बैठे हैं। तेहरान, मश्शाद, इसफाहन, कराज से लेकर शिराज तक… हर बड़े शहर की सड़कें पिछले करीब 3 महीने से सैकड़ों, हजारों प्रदर्शनकारियों के नारों से गूंज रही हैं। ‘हिजाब नहीं पहनेंगे, जो करना हो, कर लो’,‘खामेनेई मुर्दाबाद’, ‘अब जुल्म नहीं सहेंगे’, ‘तानाशाहों, गद्दी छोड़ो’ जैसे नारों की गूंज से ईरान का आसमान पटा पड़ा है।
महसा अमीनी। एक 22 साल की लड़की। तेहरान में एक मेट्रो स्टेशन के बाहर पुलिस द्वारा पकड़ ली गई। पुलिस यानी ईरान की ‘मोरल पुलिस’। वह, जिसका काम है शरियाई रीति-रिवाज लागू करवाना-राजी से या डंडे के जोर से। महसा को थाने ले जाकर तीन दिन तक ‘मोरेलिटी’ यानी नैतिकता का कथित ‘सबक’ सिखाया गया। उस ‘सबक’ से बेदम महसा को अस्पताल में वेंटिलेटर पर डाल दिया गया…जहां उसकी मौत हो गई! सत्ता की इस बेरहम ‘मोरेलिटी’ की अस्पताल से सबसे पहले खबर दी नीलोफर हमीदी ने और महसा को सक्केज में सुपुर्दे-खाक किए जाने की वहीं से रिपोर्ट की इलाहे मोहम्मदी ने! इन दोनों महिला पत्रकारों की खबरों से ही पश्चिमी मीडिया को पूरी घटना की जानकारी हुई और फिर तो ईरान की ‘मोरेलिटी’ दुनिया के सामने आ गई!…और जैसी कि आशंका थी, अक्तूबर के आखिर में शिया हुक्मरानों ने दोनों को अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए, इस्राएली गुप्तचर एजेंसी मोसाद और पश्चिमी ताकतों की ‘जासूस’ करार देकर जेल में ठूंस दिया।
लेकिन खबर तो उससे कहीं पहले अपना असर दिखा चुकी थी। ईरान की महिलाओं और छात्रों ने सड़कों पर उतरकर सत्ता को ललकारा कि ‘महसा का सच बताओ, वह कैसे मरी?’ खामेनेई की पुलिस ने कह दिया कि ‘थाने में उसकी तबियत बिगड़ी इसलिए अस्पताल में भर्ती कराया जहां इलाज के दौरान वह चल बसी!’ लेकिन यह कोरा झूठ था, जनता समझ गई! समझ गई कि दाल में कुछ काला है, क्योंकि महसा के भाई के सामने उसे गाड़ी में जबरन बैठाया गया था और उस वक्त उसने काला हिजाब नहीं पहना हुआ था।
सरकार के इस झूठ से गुस्सा और भड़क उठा और चिनगारी लपटों में बदल गई।
जिस हिजाब के नाम पर महसा की मौत हुई थी, उसको सरेआम जलाया जाने लगा, जिन बालों को ‘इस्लामी रिवाज’ के हिसाब से ढके रहने का मजहबी कायदा है, उन्हें जलाया जाने लगा। और महिलाओं की हिम्मत देखिए कि उन्होंने यह करते हुए अनेक वीडियो बनाए और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिए। कई इस्लामी देशों की तरक्कीपसंद महिलाओं की तरफ से ही नहीं, पश्चिम से भी समर्थन बढ़ता गया। ईरान और हिजाब पूरी दुनिया में चर्चा के, बहसों के बिंदु बन गए।
आत्महत्या या हत्या?
29 नवम्बर को दक्षिण मध्य ईरान के फिरोजाबाद शहर से लापता हुए 17 साल के युवा इलियाद रहमानीपुर की तीन दिन बाद लाश मिली।लाश के आसपास शराब की बोतलें और नींद की गोलियां बिखरी पाई गईं। पुलिस ने बताया कि ‘उसने आत्महत्या कर ली है’। लेकिन इलियाद के परिजन ऐसा मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं कि इस लड़के का स्वभाव ऐसा कभी रहा ही नहीं कि वह आत्महत्या करता। पुुलिस झूठ बोल रही है। उनके अनुसार, हिजाब विरोधी आंदोलन में भाग लेने की वजह से पुलिस ने उसे मार डाला, लेकिन पुलिस उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है।
मोरेलिटी पुलिस के विरुद्ध एप
ईरान में मोरेलिटी पुलिस के विरुद्ध युवाओं में जबरदस्त आक्रोश देखने में आया है। वहां उन्होंने ‘गरशाद’ नाम से एक मोबाइल एप बनाया है, बताया जा रहा है कि इस एप को अभी तक 20 लाख से ज्यादा लोग डाउनलोड कर चुके हैं। सुनने में यह भी आया कि इस एप के माध्यम से युवा संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे हैं, आंदोलन के लिए और समर्थन जुटा रहे हैं। सरकार को जब इस एप का पता चला तो तेहरान में फौरन मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगा दी गई।
थमी नहीं है आग
ईरान के अनेक शहर इससे धधक उठे और आज भी आंदोलन की प्रचंडता में कमी नहीं आई है। एक के बाद एक शहर से समाचार आने लगे कि महिलाओं और पुरुषों के जत्थे सड़कों पर उतरकर सरकार को ललकार रहे हैं। इस बीच आंदोलन की तपिश ने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को तपाना शुरू कर दिया। छात्र-छात्राएं कक्षाएं छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े। कक्षाओं से सरकार को कोसते नारे गूंजने लगे। धीरे-धीरे छात्र आंदोलन के केन्द्र में आते गए और आज भी पुलिस और सैनिकों का सबसे पहला निशाना किसी विश्वविद्यालय का परिसर ही होता है।
अभी भी ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन थमता नहीं दिख रहा। एक तरफ नई सोच और नई दिशा के पैरोकार आम ईरानी हैं तो दूसरी तरफ सुप्रीम लीडर की मजहबी हुकूमत है। स्कूल और विश्वविद्यालयों की छात्राएं ईरान की कट्टरपंथी हुकूमत में बदलाव की मांग लेकर प्रदर्शन कर रही हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में छात्राओं को कराज और सानंदाज की सड़कों पर बिना हिजाब पहने मार्च करते देखा गया, वे कट्टर सोच से आजादी के नारे लगा रही थीं।
‘फीफा’ तक पहुंचा ताप
कतर में चल रही विश्व कप फुटबाल प्रतियोगिता में 21 नवम्बर को इंग्लैंड के विरुद्ध अपने मैच से पहले, ईरान के खिलाड़ियों ने अपना राष्ट्रगीत नहीं गाया, इसकी बजाय वे चुपचाप खड़े रहे। महसा अमीनी और हिजाब विरोधी आंदोलन के प्रति समर्थन जताने का यह उनका अपना तरीका था। लेकिन ईरान सरकार को उनका यह तरीका रास नहीं आया। बाद में, एक खबर आई कि ईरान में उन खिलाड़ियों के घर वालों को धमकियां दी गईं कि ‘वे अपने ‘लड़के’ को समझा लें, नहीं तो…!’
सत्ता का दमन और प्रबल प्रतिरोध
अक्तूबर माह के शुरू में राजधानी तेहरान में शरीफ यूनिवर्सिटी आॅफ टेक्नोलॉजी में भीषण संघर्ष छिड़ा, जब ईरानी सुरक्षा बलों ने विश्वविद्यालय को घंटों तक घेरे रखा और अंदर छात्रों पर जमकर डंडे बरसाए। बताया गया कि वहां पुलिस ने गोलियां भी चलाई। कितने ही छात्र-छात्राओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
इधर, 5 दिसम्बर को खबर आई कि ईरान की हुकूमत प्रदर्शनकारियों के दबाव में आकर ‘मोरेलिटी पुलिस’ को भंग कर रही है। लेकिन आधिकारिक तौर पर इस खबर की पुष्टि नहीं हो पाई है। ईरान सराकर की तरफ से एक बयान जारी कर कहा गया है कि वह हिजाब कानून पर गौर कर रही है। देश के एटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफर मुंतजेरी ने कहा है कि ईरान की संसद और न्यायपालिका कानून की समीक्षा कर रहे हैं, जिसके तहत ईरान में महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना जरूरी है।
ईरान में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की मौत, हजारों गिरफ्तारियों के अलावा गत 6 दिसम्बर को पांच हिजाब विरोधी प्रदर्शनकारियों को मौत की सजा दी गई। यह सजा उन्हें प्रदर्शन को काबू कर रहे एक सैनिक की मौत के आरोप में दी गई। 11 अन्य लोगों को लंबी कैद की घोषणा की गई, जिनमें 3 बच्चे भी शामिल हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार, अभी तक करीब 500 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है और 5 हजार से ज्यादा गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ईरान सरकार की कथित ‘मोरेलिटी’ का एक और उदाहरण सामने आया है। खराज्मी और आर्क विश्वविद्यालयों के करीब 1200 छात्रों को 7 दिसम्बर को पेट में भयंकर दर्द, उल्टी और चक्कर आने की शिकायतों के चलते अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। छात्रों को इसमें सरकार की साजिश दिखती है, क्योंकि अगले दिन यानी 8 दिसम्बर को छात्रों ने हुकूमत के विरुद्ध एक बड़े प्रदर्शन का ऐलान किया हुआ था। कहना न होगा कि ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन से ‘मजहब खतरे में’ आ गया है।
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