मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड की वेबसाइट पर जो कुछ लिखा है कि उसका अर्थ यह है कि मदरसा का उद्देश्य पिछड़े अल्पसंख्यकों के बीच शिक्षा का विकास करना है। राज्य विधान सभा ने स्कूली शिक्षा विभाग के लिये 21 सितंबर 1998 में इस बाबत अधिनियम पारित करते हुए मदरसा बोर्ड का गठन किया था, लेकिन उस लक्ष्य को पीछे छोड़कर मदरसे रास्ते से भटके दिखाई दे रहे हैं। यहां हिन्दू बच्चों को दाखिला देकर उन्हें मजहबी शिक्षा दी जा रही है।
अब सवालिया रूप देकर तर्क दिया जा रहा है कि मदरसा तो दीनी अरबिया तालीम देने के लिए है। वहां अल्लाह के बारे में नहीं, तो फिर किसके बारे में पढ़ाया जाएगा? लेकिन बड़ा सवाल यह है कि मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड के लक्ष्य से आज मदरसे क्यों भटक गए हैं। क्या वे किसी अन्य लक्ष्य से प्रेरित हैं।
मदरसा बोर्ड उद्देश्यों के बारे में लिखा है, ”इसका मुख्य उद्देश्य परंपरागत मदरसों को दीनी तालीम के साथ-साथ उनके छात्रों को आधुनिक शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ना है। मदरसा अधुनिकीकरण योजना के अन्तर्गत मदरसों को शासकीय योजनाओं से जोड़ना, पर्यवेक्षण करना तथा समय-समय पर राज्य सरकार को सलाह देना है।”
यहां दी गई परिभाषा और उद्देश्य से पूरी तरह साफ नहीं होता है कि मध्य प्रदेश में मदरसे सिर्फ मुसलमानों के लिए ही संचालित हो रहे हैं। विशेषकर इस्लाम को मानने वाले अल्पसंख्यक न लिखकर, सामान्य ”अल्पसंख्यक” शब्द लिखा हुआ है। इसका संवैधानिक भाषा में अर्थ होता है कि भारत में रहने वाला प्रत्येक अल्पसंख्यक मुसलमान समेत जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी या सिख इन मदरसों में अध्ययन के लिए जा सकते हैं। किंतु, मध्य प्रदेश के मदरसों में सिर्फ हिन्दू बच्चे बड़ी संख्या में मिल रहे हैं।
इस संबंध में पूछे जाने पर सहायक प्रशासनिक प्रभारी शकील अहमद ने बताया कि मदरसे में आकर शिक्षा कोई भी ले सकता है। किसी बच्चे को आप यहां आने से कैसे रोक सकते हैं? आगे उन्होंने कहा कि प्रेस से बातचीत करने से मना कर दिया।
वहीं मदरसा बोर्ड के सचिव देवभूषण प्रसाद का कहना है कि हमने पहले से नियमों में बहुत बदलाव किए हैं और उन्हें दीनी तालीम के अलावा आधुनिक शिक्षा से जुड़ी जानकारियां भी मुहैया करा रहे हैं। फिलहाल शासन का ऐसा कोई नियम नहीं है कि सिर्फ मुसलमान ही यहां शिक्षा लेने आएंगे। आगे उन्होंने दीनी तालीम को एच्छिक दिए जाने का भी दावा किया है।
वहीं दूसरी ओर व्यवहार में विदिशा, दतिया समेत तमाम जिलों के मदरसों में हिन्दू बच्चों की बहुतायत है, उनके बीच ‘तालीमुल इस्लाम’ जैसी पुस्तकों को पढ़ाया जा रहा है। इससे कई सवाल खड़े होते हैं। लेकिन, उन सवालों का जवाब कोई नहीं दे रहा है।
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