दिल्ली नगर निगम के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भाजपा को 104 वार्ड पर जीत मिली। चुनावी पंडितों का कहना है कि दिल्ली सरकार की मुफ्त योजनाओं के कारण आम आदमी पार्टी को जीत मिली है। यदि भाजपा इन योजनाओं की काट ढूंढ पाती तो परिणाम कुछ और होता
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में लगातार 15 वर्ष तक राज करने वाली भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। नगर निगम के 250 वार्ड में से भाजपा को 104 वार्ड पर जीत मिली, वहीं आम आदमी पार्टी (आआपा) को 134 वार्ड पर विजय मिली। आआपा को पहली बार दिल्ली नगर निगम में जीत मिली है। भाजपा प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा का कहना है, ‘‘हालांकि हार तो हार ही होती है, लेकिन 15 वर्ष तक शासन करने के बाद भी भाजपा को 104 वार्ड पर जीत मिली। इसका अर्थ है कि दिल्ली के लोगों ने भाजपा को नकारा नहीं है। यह अलग बात है कि कुछ कारण ऐसे रहे, जिनका समाधान भाजपा नहीं कर पाई।’’
शायद डॉ. पात्रा का इशारा दिल्ली सरकार की उन योजनाओं की ओर है, जिनमें दिल्ली के लोगों को बिजली में कुछ छूट और पानी मुफ्त में मिल रहा है। इसके साथ ही दिल्ली नगर निगम की बसों में महिलाओं को नि:शुल्क सफर की सुविधा मिली है। एक खबरिया चैनल के अनुसार मुफ्त की योजनाओं का लाभ लेने वाले 55 प्रतिशत लोगों ने आआपा को वोट दिया। जनकपुरी में रहने वाले अबोध कुमार कहते हैं, ‘‘आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि उसने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो काम किया है, उस कारण उसे नगर निगम में जीत मिली है। ऐसा नहीं है। आआपा उन लोगों के दम पर जीती है, जिन्हें मुफ्त का माल बहुत अच्छा लगने लगा है।’’
यह बात भी उतनी ही सही है कि कुछ लोगों ने आआपा के उस मुद्दे को भी पसंद किया, जिसमें उसने दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों को हटाने की बात कही। शायद यही कारण है कि लोगों ने साफ-सफाई का काम भी आआपा को दे दिया। श्याम विहार के गणेश पांडे कहते हैं, ‘‘आम आदमी पार्टी को जीत तो मिली, पर उसके सामने कूड़े के पहाड़ों के अलावा अपेक्षाओं का भी पहाड़ खड़ा है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आआपा दिल्ली से कूड़ों के पहाड़ों का सफाया करेगी। यदि वह ऐसा नहीं कर पाई तो 2024 और 2025 के चुनावों में आआपा के नेता दिल्ली वालों का सामना नहीं कर पाएंगे।’’ यह सही बात है।
अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के साथ ही दावा किया था कि वे यमुना को साफ कर देंगे। उनका यह दावा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। उलटे यमुना और गंदी हो गई है। इसको लेकर दिल्ली के लोगों में नाराजगी भी दिखने लगी है। पहाड़गंज में रहने वाले मनीष दलाल कहते हैं, ‘‘2013 में जिन लोगों ने आआपा को वोट दिया था, उनमें से एक बड़ा वर्ग उससे दूर हो चुका है और यह क्रम रुका नहीं है। यही कारण है कि नाराजगी केबाद भी भाजपा को लोगों ने वोट किया और उसे 104 वार्ड पर जीत मिली।’’
यू ट्यूबर अमित श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘दिल्ली विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी सीटें जीतने वाले केजरीवाल सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही भाजपा को अच्छे प्रदर्शन से रोक नहीं पाए। यकीनन यह केजरीवाल के पतन का आरंभ है।’’ डॉ. प्रदीप भटनागर भी इसी बात को थोड़ा अलग अंदाज में कहते हैं, ‘‘एमसीडी के परिणाम केजरीवाल को खुश नहीं, बल्कि चिंतित कर रहे हैं, क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को 55 प्रतिशत मत मिले थे और दो साल बाद हुए एमसीडी चुनाव में 42 प्रतिशत। मतलब केजरीवाल को सीधा-सीधा 13 प्रतिशत मतों का नुकसान हुआ है और यह उनके लिए चिंता का विषय है।’’
बुर्के में पार्षद
सीलमपुर वार्ड नंबर 225 से शकीला बेगम ने जीत हासिल की है। जीत के बाद जब एक पत्रकार उनकी प्रतिक्रिया लेने के लिए पहुंचा तो वे सिर से पांव तक काले बुर्के में थीं। चेहरा भी ढका हुआ था। उन्होंने अपना बयान भी बुर्के में रहकर ही दिया। शकीला बेगम तीसरी बार पार्षद बनी हैं। इस बार उन्होंने बतौर निर्दलीय जीत हासिल की है। 2017 में वे बसपा के टिकट पर जीती थीं। इस बार उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की सीमा शर्मा रहीं। इस सीट पर आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार नसरीन बानो थीं। वहीं असदुद्दीन औवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से शबनम, तो कांग्रेस से मुमताज उम्मीदवार थीं। ऐसे में पत्रकार पूजा मल्होत्रा का यह सवाल सही जान पड़ता है कि किसी ने शकीला बेगम को देखा भी है या यूं ही उनके नाम पर वोट डाल दिया? शकीला बेगम तीन बार से जीत रही हैं, उनकी पांच उपलब्धियां कोई गिना सकता है?
आआपा से छिटके मुस्लिम मतदाता
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वे कभी जाली टोपी लगाकर ईद में सेवइयां खाते हैं, बाटला हाउस कांड की जांच की मांग करते हैं, मस्जिदों के इमामों को वेतन देते हैं, सीएए का समर्थन करते हैं। इसके बावजूद मुसलमान मतदाता उनसे दूर हो रहे हैं। एमसीडी चुनाव में मुस्लिम-बहुल ज्यादातर सीटों पर आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। कई मुसलमान पार्षद निर्दलीय जीते हैं। कांग्रेस के नौ पार्षद जीते हैं। इनमें से सात मुसलमान हैं। यानी अधिकतर मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी की जगह कांग्रेस को पसंद किया या फिर निर्दलियों को। ये वहीं वार्ड हैं, जहां 2020 में दंगा हुआ था और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शन हुए थे।
यह बात सिर्फ लिखने तक नहीं है, दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम सामने आते ही यह दिखने भी लगा। इसलिए केजरीवाल ने परिणाम सामने आने के बाद अपने पहले भाषण में ही स्पष्ट कर दिया, ‘‘हम सभी को दिल्ली की हालत सुधारनी है और मुझे भाजपा और कांग्रेस सहित सभी के सहयोग की आवश्यकता है। खासकर केंद्र और प्रधानमंत्री की मदद और आशीर्वाद की जरूरत है।’’ जिन्हें केजरीवाल की आठ साल पुरानी राजनीति याद होगी, उनकी आक्रामकता याद होगी, उन्हें इस भाषा के पीछे का अर्थ पता है।
एक बात यह भी दिख रही है कि दिल्ली के लोगों ने भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं है। तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के विधानसभा क्षेत्र शकूर बस्ती में तीन वार्ड हैं। इनमें से आआपा को एक भी वार्ड पर जीत नहीं मिली। नगर निगम के टिकट बेचने के आरोपी और विधायक अखिलेशपति त्रिपाठी और आतिशी के क्षेत्र से आआपा का एक भी पार्षद नहीं जीत सका। मनीष सिसोदिया, दिलीप पांडे, अमानतुल्ला खान, गोपाल राय के क्षेत्र से आम आदमी पार्टी एक-एक सीट ही निकाल पाई। दिल्ली नगर निगम चुनाव के परिणाम देखकर तो यही लगता है कि मानो कांग्रेस खुद को मिटाकर आम आदमी पार्टी को आगे बढ़ा रही है। बीते आठ साल में ऐसे कई मौके आए जब कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए खुद को पीछे रखा।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पहली सरकार भी 2013 में कांग्रेस ने अपनी मदद से बनवाई थी। इस बार तो कांग्रेस ने बिल्कुल बेमन से चुनाव लड़ा। शायद उसे लग रहा होगा कि जीत तो मिलनी नहीं है, फिर आम आदमी पार्टी की जीत की राह में रोड़ा क्यों बनें। कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी की जीत में उसके कार्यों से ज्यादा योगदान कांग्रेस का है।
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