13 दिसंबर सन 2001 को आतंकवादियों ने एक दुस्साहसिक हमले में भारत की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था भारतीय संसद को निशाना बनाया था। इस कायरतापूर्ण हमले को संसद परिसर की सुरक्षा में तैनात सतर्क सुरक्षा बलों ने विफल कर दिया था। केंद्रीय सुरक्षा बल के सैनिकों अदम्य साहस और वीरता का परिचय देकर लोकतंत्र के इस सर्वोच्च मंदिर की रक्षा करने हुए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया था। उत्तराखण्ड के मातबर सिंह नेगी उक्त आतंकी हमले के समय भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा सचिवालय के सुरक्षा सहायक थे, इस आतंकी हमले में आतंकियों का बहादुरी से सामना करते हुए देश की सुरक्षा हेतू बलिदान किया था। मातबर सिंह नेगी को मरणोपरांत भारत सरकार ने सन 2001 में शांतिकाल में वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया था। वीरता के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र का शांतिकाल में वहीं महत्व है जो युद्धकाल के समय परमवीर चक्र का है।
देवभूमि उत्तराखण्ड के जिला पौड़ी गढ़वाल के विकासखंड एकेश्वर की मवालस्यूं पट्टी के ग्राम सासौं की भूमि पर जन्मे और पले–बढ़े मातबर सिंह नेगी भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा सचिवालय के सुरक्षा सहायक थे। 13 दिसम्बर सन 2001 को भारतीय संसद की सुरक्षा में तैनात दिल्ली पुलिस के पांच कर्मचारियों नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में महिला कर्मचारी कमलेश कुमारी, संसद में सुरक्षाकर्मी जगदीश यादव और मातबर सिंह नेगी के लिये यह दिन भी सामान्य दिनों की ही तरह था। सुरक्षा में तैनात सभी कर्मचारी एवं सुरक्षाकर्मी बेहद सतर्क और तत्परता के साथ अपने दैनिक कर्त्तव्य का पालन कर रहें थे। एक तरफ यह सभी सुरक्षाकर्मी संसद के भीतर मौजूद तमाम बड़े नेताओं, मंत्रियों व सांसदों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिये अपनी जान को दांव पर लगाये हुए थे तो वहीं दूसरी और आतंकवादियों का एक आत्मघाती दल उनकी तरफ तेजी से चला आ रहा था। पूर्वाह्न लगभग साढ़े दस बजे गृह मंत्रालय का स्टीकर लगी एक सफेद अंबेसडर कार ने संसद भवन के परिसर में प्रवेश किया, उस समय कुछ सांसदों की गाडियां भी आवागमन कर रही थी। किसी को अंदाजा तक नहीं था कि उक्त सफेद रंग की कार में पांच आत्मघाती आतंकवादी हैं और कार में भारी मात्रा में भयानक विस्फोटक आरडीएक्स भी भरा हुआ है। भारतीय संसद के गेट नंबर 11 से भारत के उपराष्ट्रपति बाहर निकलने वाले थे, इसलिये उनकी गाडियों का काफिला उपराष्ट्रपति महोदय का वहां इंतजार कर रहा था। सफेद अंबेसडर को गेट नंबर 11 की ओर तेजी से बढ़ते देख कर गेट नंबर 2 पर तैनात सर्तक मातबर सिंह नेगी ने मुस्तैदी दिखाते हुए गेट को बंद कर दिया था। गेट की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों ने कार को रोका तो एकदम भयानक गोलीबारी शुरु हो गई और लगभग 45 मिनट तक लोकतंत्र का यह मंदिर मूक होकर अत्याधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों के अचानक हुए आक्रमण से तत्काल प्रतिक्रियां सजग सुरक्षाकर्मियों का आमने–सामने का संघर्ष देखता रहा। सुरक्षा बलों ने आत्मघाती आतंकवादियों को मौत के घाट उतारकर संसद भवन परिसर में उपस्थित सभी भारत सरकार के मंत्रियों व सांसदों के जीवन की रक्षा करते हुए भारतीय अस्मिता की भी रक्षा की थी। आतंकवादी हमले के समय उनके रास्ते को बाधित कर गेट बंद करते समय आतंकवादियों की गोलियों से मातबर सिंह नेगी गम्भीर रुप से घायल हो गए थे, उन्हें तत्काल हस्पताल ले जाया गया वहां उन्होंने मातृभूमि की रक्षार्थ यज्ञ में अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान किया। जिस लोकतंत्र के महान मंदिर की सुरक्षा का प्रहरी बनने पर उन्हें गर्व था उसी लोकतंत्र की अस्मिता बचाने के लिये उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान किया था।
भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले में देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वालों में राज्यसभा सचिवालय के सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव, मातबर सिंह नेगी, केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल की कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी, दिल्ली पुलिस के उप निरीक्षक रामपाल और नानक चंद, दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल ओम प्रकाश, बिजेन्दर सिंह और घनश्याम तथा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के एक माली देशराय भी सम्मिलित थे।
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