इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी ने खुद को कश्मीर मुद्दे का शायद सलाहकार मान लिया है। उसे लगता है कि पाकिस्तान का इस संबंध में दुष्प्रचार, कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रोना—पिटना ‘कश्मीर को एक खास मुद्दा’ बनाता जिसका ‘समाधान होना’ जरूरी है। यह बात संगठन की तरफ से कल कही गई, जिसके प्रतिनिधियों को पाकिस्तान ने अपने कब्जाए कश्मीर के हिस्से में घुमाया था। पड़ोसी इस्लामी देश ने विश्व मीडिया के लिए उनसे अपने मन की बात उगलवाने की यह असफल कोशिश ही की है।
ओआईसी के महासचिव जनरल हिसेन ब्राहिम ताहा का ताजा बयान है कि ‘कश्मीर मुद्दे को सुलझाने का एकमात्र तरीका बातचीत ही है’। इस्लामिक देशों के संगठन के महासचिव ने बेशक ये बेमांगी सलाह ‘इस्लामी ब्रदरहुड’ की खातिर की है। उन्होंने बेवजह तथ्यों से परे जाकर पाकिस्तानी राग अलापते हुए कश्मीर को ‘विवादित’ बताया है। ताहा ने आगे सलाह दी कि ‘भारत और पाकिस्तान को साथ बैठकर बातचीत करनी होगी’।
इस्लामिक देशों के संगठन के महासचिव इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने यहां तक कहा है कि उनका संगठन ‘कश्मीर मुद्दे पर भारत तथा पाकिस्तान के बीच बातचीत के रास्ते तलाश रहा है’। जैसा पहले बताया, ओआईसी के महासचिव ताहा कल पीओके में थे और वहीं उन्होंने मीडिया से बातचीत में उक्त बातें कहीं।
विशेषज्ञों का कहना है कि क्या ओआईसी को नहीं पता कि भारत की दृष्टि से ‘कश्मीर’ अगर मुद्दा है तो बस इस संदर्भ में कि पाकिस्तान के कब्जे वाले इसके हिस्से को भारत के साथ शामिल करना। भारतीय संसद ने 1994 में एकमत से प्रस्ताव पारित करके जम्मू-कश्मीर को फिर से अखंड बनाने का संकल्प लिया हुआ है।
ताहा की ‘सलाह’ से बात आगे बढ़कर उनके इस संगठन की इस मामले में सक्रियता तक जा पहुंची। उन्होंने कहा, ‘कश्मीर मुद्दे के संदर्भ में सबसे पहली चीज है कि पाकिस्तान तथा भारत के बीच बातचीत का रास्ता निकाले। उन्होंने कहा कि वे पाकिस्तान सरकार तथा बाकी के देशों के साथ मिलकर इस संबंध में एक खाका भी तैयार करने में लगे हुए हैं’।
ताहा ने मीडिया से कहा कि ‘हमें इस संबध में संगठन के सदस्य देशों की मदद चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि कूटनीतिक मुद्दों पर चर्चा सड़क पर खड़े होकर खुले में नहीं की जा सकती’। ताहा का कहना है कि ‘हम यहां आए ही इसलिए हैं कि अपने सहयोगियों, अंतरराष्ट्रीय समुदाय तथा संगठन के सदस्य देशों की तरफ से भारत तथा पाकिस्तान के बीच एक लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर विवाद को सुलझाने का रास्ता तलाशें। इसके लिए ही हम ओआईसी की एकजुटता, हमदर्दी और दृढ़ संकल्प जताने यहां आए हैं’।
ओआईसी महासचिव ने भारत की दृष्टि से एक चुभने वाली बात करते हुए कहा कि वे ‘कश्मीर भी इस्लामिक संगठन ओआईसी का हिस्सा है’। कश्मीर को लेकर उन्होंने बेमतलब में अपनी जिम्मेदारी भी खुद ओढ़ ली। उन्होंने कहा, ‘कश्मीर मुद्दे को लेकर बातचीत तथा समाधान ढूंढने की हमारी सामूहिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारी बनती है’।
मीडिया ने इस मौके पर उन देशों का जिक्र किया जो ओआईसी के सदस्य तो हैं लेकिन ‘कश्मीर’ को भूलकर भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाए हुए हैं, उनके संबंध तो भारत के साथ मजबूत हो रहे हैं। इस पर ताहा का कहना था कि ‘सभी देश संप्रभु हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ओआईसी सिर्फ ऐसे प्रस्तावों पर काम कर रहा है जो सदस्य देशों से जुड़े हुए हैं।
ताहा की इस बेमांगी सलाह के संबंध में कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि क्या ओआईसी को नहीं पता कि भारत की दृष्टि से ‘कश्मीर’ अगर मुद्दा है तो बस इस संदर्भ में कि पाकिस्तान के कब्जे वाले इसके हिस्से को भारत के साथ शामिल करना। भारतीय संसद ने 1994 में एकमत से प्रस्ताव पारित करके जम्मू—कश्मीर को फिर से अखंड बनाने का संकल्प लिया हुआ है।
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